ETV Bharat / state

कारगिल युद्ध के 25 साल : 15 हजार फीट की ऊंचाई पर जवानों ने लहराया था जीत का तिरंगा, चूरू के 7 जवान हुए थे शहीद - Kargil Vijay Diwas

author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 26, 2024, 9:27 AM IST

आज कारगिल विजय के 25 साल पूरे हो गए हैं. इस बीच इस युद्ध में बलिदान और साहस की अनगिनत कहानियां सुनने को मिलती है. चूरू के जवान शहीद सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़ ने भी इस युद्ध में अदम्य साहस और शौर्य दिखाया था, लेकिन अफसोस कायर पाकिस्तान की धोखेबाजी ने इस जवान की जान ले ली. दूधवाखारा गांव में आज भी सरकारी विद्यालय और पार्क इनके नाम पर है. पेश है खास रिपोर्ट...

Etv Bharat
Etv Bharat (Etv Bharat)
कारगिल विजय के 25 साल (VIDEO : ETV BHARAT)

चूरू. कारगिल, जो जुड़ा है वीरगाथा से, बलिदान से और साहस की अनगिनत कहानियों से. यही वो जगह है जहां साल 1999 में भारतीय सेना ने घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी फौजियों से लोहा लेते हुए जीत का परचम ऊंची-ऊंची चोटियों पर लहराया था. जिसे आज 26 जुलाई को 'विजय दिवस' के रूप में मनाते हैं. आज उस विजयी दिवस के 25 साल पूरे हुए हैं. इस जंग में हमारे वीर सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के दम पर ना केवल विजय प्राप्त की, बल्कि दुनिया में अपनी बहादुरी का परचम भी लहराया. कारगिल युद्ध की इस विजय ने साबित कर दिया था कि भारत मां की रक्षा के लिए इसके वीर सपूत अपने लहू से देश की धरती को सींच सकते हैं, लेकिन देश की अखंडता और संप्रभुता पर आंच नहीं सहन कर सकते. यह युद्ध दुश्मन की कायरता और हिंदुस्तान के रणबांकुरों के शौर्य की कुछ ऐसी ही दास्तां है.

कारगिल युद्ध में प्रदेश के 52 और चूरू जिले के सात सैनिकों ने अपनी आहुति दी थी, जिनमें एक चूरू के दूधवाखारा गांव के शहीद सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़ भी शामिल थे. सुमेर सिंह 2 राज रेफ बटालियन में थे, जिनकी 18 वर्ष की उम्र में पहली पोस्टिंग दिल्ली में लगी थी और कारगिल युद्ध में 13 जून को मातृभूमि की रक्षा करते करते वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इनके नाम से दूधवाखारा गांव में आज भी एक सरकारी स्कूल है. गांव में ही उनका एक मंदिर भी है और पार्क का भी नाम उनके नाम से रखा गया है.

इसलिए चुना देश सेवा को : 15 अगस्त 1955 को चूरू के दुधवाखारा में डूंगर सिंह राठौड़ के घर जन्मे सुमेर सिंह ने गांव की ही स्कूल में उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई के साथ-साथ उनकी खेलकूद में भी रूचि थी. 1971 में जब भारत-पाक युद्ध चल रहा था तब रेडियो पर वीर जवानों के किस्से सुनकर इन्होंने भी देश सेवा के लिए सेना में जाने की ठान ली. 26 अप्रैल 1975 में सुमेर सिंह 2 राजपूताना राइफल में भर्ती हुए.

इसे भी पढ़ें : कारगिल विजय दिवस : युद्ध में अलवर के फौजी अमर चंद ने भी लिया था दुश्मनों से लोहा, जानिए कैसा था युद्ध में सैनिकों का जज्बा - Kargil Vijay Diwas

भारत की चौकियों पर किया कब्जा : 1999 में कारगिल में ऑपरेशन विजय अभियान शुरू हुआ. उस वक्त सुमेर सिंह की पोस्टिंग कारगिल में थी. कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया था. इनमें एक चौकी तेलोलिंग पहाड़ी पर स्थित थी. बर्फ के रेगिस्तान में 15 हजार फीट उंचाई पर स्थित तेलोलिंग पहाड़ी पर पहुंचना और फिर दुश्मनों से लोहा लेना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन मातृभूमि की रक्षा का जज्बा लिए जमाव बिन्दू में भी वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटा दी. युद्ध के दौरान 13 जून 1999 करीब 4 बजे अचानक घात लगाए बैठे घुसपैठियों ने छुपकर मशीनगन से फायरिंग शुरू कर दी. इस दौरान दुश्मनों की तरफ से आया मशीनगन ब्रस्ट फायर इस योद्धा के शरीर को आर-पार कर गया और वे घायल हो गए. घायल होने के बावजूद 2 राजरेफ का यह जाबांज योद्धा ​तेलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराकर शहीद ​हो गया. इनके साथी नायक दिगेन्द्र सिंह ने दुश्मनों को करारा जवाब देते हुए उनके नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया. 17 जून 1999 को शहीद सुमेर सिंह के पैतृक गांव दुधवाखारा में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

इसे भी पढ़ें : कारगिल विजय की रजत जयंती: सेना ने लगाई हथियारों की प्रदर्शनी, बच्चों से लेकर बड़ों तक में दिखा जोश - Kargil Vijay Diwas

युद्ध में आधे से ज्यादा जवान : राजस्थान के रिटायर्ड सेना मेडल कैप्टन मदन सिंह शेखावत बताते हैं कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने धोखा देकर हमारे इलाके में कब्जा किया था. कारगिल युद्ध में 18 ग्रेनेडियर, 17 जाट और 2nd राज रेफ ने हिस्सा लिया था. इन तीनों रेजीमेंट में राजस्थान के 60 प्रतिशत जवान थे. जिन्होंने बहादुरी के दम पर इस युद्ध को लड़ा था और विजय प्राप्त की थी. 2 महीने चले इस संघर्ष में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों को हमारा इलाका वापस ले उन्हें खदेड़ा था और उनको वापस अपने इलाके में भेजने में कामयाब रहे थे. दो महीनों से भी ज्यादा समय चले इस युद्ध में जिले के 7 बहादुर वीर जवान मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं -

  1. सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़, दूधवाखारा
  2. सतवीर सिंह शेखावत, रामपुरा बेरी तहसील राजगढ़
  3. महेंद्र सिंह गोदारा, सुरतपुरा, तहसील राजगढ़
  4. बजरंग लाल सूलखाणीया, तहसील राजगढ़
  5. शीशराम नोरंगपुरा
  6. विनोद कुमार कटेवा, हरपालु
  7. राजकुमार पूनिया, भेसली

कारगिल विजय के 25 साल (VIDEO : ETV BHARAT)

चूरू. कारगिल, जो जुड़ा है वीरगाथा से, बलिदान से और साहस की अनगिनत कहानियों से. यही वो जगह है जहां साल 1999 में भारतीय सेना ने घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी फौजियों से लोहा लेते हुए जीत का परचम ऊंची-ऊंची चोटियों पर लहराया था. जिसे आज 26 जुलाई को 'विजय दिवस' के रूप में मनाते हैं. आज उस विजयी दिवस के 25 साल पूरे हुए हैं. इस जंग में हमारे वीर सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के दम पर ना केवल विजय प्राप्त की, बल्कि दुनिया में अपनी बहादुरी का परचम भी लहराया. कारगिल युद्ध की इस विजय ने साबित कर दिया था कि भारत मां की रक्षा के लिए इसके वीर सपूत अपने लहू से देश की धरती को सींच सकते हैं, लेकिन देश की अखंडता और संप्रभुता पर आंच नहीं सहन कर सकते. यह युद्ध दुश्मन की कायरता और हिंदुस्तान के रणबांकुरों के शौर्य की कुछ ऐसी ही दास्तां है.

कारगिल युद्ध में प्रदेश के 52 और चूरू जिले के सात सैनिकों ने अपनी आहुति दी थी, जिनमें एक चूरू के दूधवाखारा गांव के शहीद सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़ भी शामिल थे. सुमेर सिंह 2 राज रेफ बटालियन में थे, जिनकी 18 वर्ष की उम्र में पहली पोस्टिंग दिल्ली में लगी थी और कारगिल युद्ध में 13 जून को मातृभूमि की रक्षा करते करते वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इनके नाम से दूधवाखारा गांव में आज भी एक सरकारी स्कूल है. गांव में ही उनका एक मंदिर भी है और पार्क का भी नाम उनके नाम से रखा गया है.

इसलिए चुना देश सेवा को : 15 अगस्त 1955 को चूरू के दुधवाखारा में डूंगर सिंह राठौड़ के घर जन्मे सुमेर सिंह ने गांव की ही स्कूल में उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई के साथ-साथ उनकी खेलकूद में भी रूचि थी. 1971 में जब भारत-पाक युद्ध चल रहा था तब रेडियो पर वीर जवानों के किस्से सुनकर इन्होंने भी देश सेवा के लिए सेना में जाने की ठान ली. 26 अप्रैल 1975 में सुमेर सिंह 2 राजपूताना राइफल में भर्ती हुए.

इसे भी पढ़ें : कारगिल विजय दिवस : युद्ध में अलवर के फौजी अमर चंद ने भी लिया था दुश्मनों से लोहा, जानिए कैसा था युद्ध में सैनिकों का जज्बा - Kargil Vijay Diwas

भारत की चौकियों पर किया कब्जा : 1999 में कारगिल में ऑपरेशन विजय अभियान शुरू हुआ. उस वक्त सुमेर सिंह की पोस्टिंग कारगिल में थी. कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया था. इनमें एक चौकी तेलोलिंग पहाड़ी पर स्थित थी. बर्फ के रेगिस्तान में 15 हजार फीट उंचाई पर स्थित तेलोलिंग पहाड़ी पर पहुंचना और फिर दुश्मनों से लोहा लेना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन मातृभूमि की रक्षा का जज्बा लिए जमाव बिन्दू में भी वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटा दी. युद्ध के दौरान 13 जून 1999 करीब 4 बजे अचानक घात लगाए बैठे घुसपैठियों ने छुपकर मशीनगन से फायरिंग शुरू कर दी. इस दौरान दुश्मनों की तरफ से आया मशीनगन ब्रस्ट फायर इस योद्धा के शरीर को आर-पार कर गया और वे घायल हो गए. घायल होने के बावजूद 2 राजरेफ का यह जाबांज योद्धा ​तेलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराकर शहीद ​हो गया. इनके साथी नायक दिगेन्द्र सिंह ने दुश्मनों को करारा जवाब देते हुए उनके नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया. 17 जून 1999 को शहीद सुमेर सिंह के पैतृक गांव दुधवाखारा में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

इसे भी पढ़ें : कारगिल विजय की रजत जयंती: सेना ने लगाई हथियारों की प्रदर्शनी, बच्चों से लेकर बड़ों तक में दिखा जोश - Kargil Vijay Diwas

युद्ध में आधे से ज्यादा जवान : राजस्थान के रिटायर्ड सेना मेडल कैप्टन मदन सिंह शेखावत बताते हैं कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने धोखा देकर हमारे इलाके में कब्जा किया था. कारगिल युद्ध में 18 ग्रेनेडियर, 17 जाट और 2nd राज रेफ ने हिस्सा लिया था. इन तीनों रेजीमेंट में राजस्थान के 60 प्रतिशत जवान थे. जिन्होंने बहादुरी के दम पर इस युद्ध को लड़ा था और विजय प्राप्त की थी. 2 महीने चले इस संघर्ष में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों को हमारा इलाका वापस ले उन्हें खदेड़ा था और उनको वापस अपने इलाके में भेजने में कामयाब रहे थे. दो महीनों से भी ज्यादा समय चले इस युद्ध में जिले के 7 बहादुर वीर जवान मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं -

  1. सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़, दूधवाखारा
  2. सतवीर सिंह शेखावत, रामपुरा बेरी तहसील राजगढ़
  3. महेंद्र सिंह गोदारा, सुरतपुरा, तहसील राजगढ़
  4. बजरंग लाल सूलखाणीया, तहसील राजगढ़
  5. शीशराम नोरंगपुरा
  6. विनोद कुमार कटेवा, हरपालु
  7. राजकुमार पूनिया, भेसली
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.