कानपुर : शहर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में एक छात्र के अंक पत्रों में अंकों के संशोधन के बाद एक कर्मी की गिरफ्तारी हुई थी. वहीं अब पिछले तीन माह में हुए अंकों के संशोधनों की जांच करने का फैसला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक ने लिया है. इससे विवि के प्रशासनिक अफसरों से लेकर कर्मियों में खलबली मची है. जांच में अंकों में जो भी बदलाव किए गए हैं वह किन परिस्थितियों में किए गए?, बदलाव का समय क्या था? इसे भी देखा जाएगा. सीसीटीवी फुटेज खंगाल जाएंगे. सभी दस्तावेज भी चेक किए जाएंगे.
कुलपति के निर्देश के बाद विश्वविद्यालय की डिप्टी रजिस्ट्रार अंजली मौर्य जांच करेंगी. आशंका जताई है कि अंक संशोधन के इस खेल में विवि के बड़े अफसरों के अलावा बाहरी लोग भी इसमें शामिल हो सकते हैं. विश्वविद्यालय के स्टूडेंट सपोर्ट सेल के रिकॉर्ड रूम में प्रशासनिक अफसरों को 27 जुलाई को एक लिफाफा पड़ा मिला था. कर्मचारियों ने इसे खोलकर देखा तो उसमें 2013 के बीएससी अंतिम वर्ष के छात्र नेहाल हुसैन का रिकॉर्ड था.
चतुर्थ श्रेणी कर्मी ने किया था अंकों से छेड़छाड़ : लिफाफे में रोल नंबर और अंकों का पूरा विवरण था. जांच में इस पन्ने और ऑनलाइन चढ़े अंकों में चार अंक का अंतर मिला. मूल रिकॉर्ड के दस्तावेज में नंबरों को ओवरलैप कर उसे पास किया गया था, जबकि वह फेल था, फिर जांच में जब यह बात सामने आई कि चतुर्थ श्रेणी कर्मी जगदीश पाल ने हाथ से लिख अंकों में छेड़छाड़ की थी. इसके बाद विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अफसरों ने जगदीश पाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी. अब इस घटना के बाद पिछले तीन माह के दौरान के सभी अंक संशोधन आवेदनों को दोबारा सत्यापन कराया जाएगा.
पुराने मामले से जुड़े हो सकते हैं तार : विश्वविद्यालय में अंकों की गड़बड़ी गया पहला मामला नहीं है. साल 2011 से 15 के दौरान बीएससी कर चुके गोरखपुर के बरगदवा निवासी छात्र संतोष कुमार ने डिग्री के लिए आवेदन किया था. विश्वविद्यालय के स्टूडेंट सपोर्ट सेल ने रिकॉर्ड का सत्यापन किया तो मामला संदिग्ध मिला. अंक तालिका व रिकॉर्ड में रखे दस्तावेजों के मुताबिक पहले साल के चार प्रश्न पत्रों में 96 अंकों की गड़बड़ी सामने आई.
विवि के प्रशासनिक अफसर जिम्मेदार : विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अफसरों का कहना है कि नंबर बढ़ाने के लिए छात्र फर्जी मार्कशीट बनवा सकता है, लेकिन कंपनी सत्यापन के लिए जब दस्तावेज विश्वविद्यालय भेजती है तो इस तरीके के छात्रों को फौरन ही पकड़ा जा सकता है. हालांकि एक बड़ा सवाल यह भी है कि जब विश्वविद्यालय के अंदर ही छात्रों के अंकों के संशोधन में गड़बड़ी हो रही है तो कहीं ना कहीं इसके लिए प्रशासनिक अफसर ही जिम्मेदार हैं.
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