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कांकेर में नक्सलियों की मिट रही दहशत, आतंक पर भारी पड़ा विकास, महला गांव में लौटी रौनक

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले का एक गांव नक्सली दहशत से कैसे वीरान हो गया, जानिए इस रिपोर्ट में

KANKER NAXAL VILLAGE
कांकेर के महला गांव से ग्राउंड रिपोर्ट (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 3 hours ago

Updated : 19 minutes ago

कांकेर: कांकेर जिले से 180 किलोमीटर दूर कोयलीबेड़ा ब्लॉक के परतापुर क्षेत्र में महला गांव है. ये गांव शुरू से ही नक्सल प्रभावित गांव है. परतापुर एरिया कमेटी के नक्सलियों की इस गांव में दहशत थी. नक्सली गांव आते, गांव के लोगों को परेशान करते, उनसे नक्सल संगठन में शामिल होने का दबाब बनाते और फिर जंगल चले जाते. इसी दहशत के बीच महला गांव के लोगों की जिंदगी कट रही थी.

नक्सली दहशत से साल 2009 में पूरा गांव हुआ खाली: साल 2007- 08 में नक्सलियों ने गांव के सरपंच और एक ग्रामीण की हत्या कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों ने गांव छोड़ना शुरू कर दिया. साल 2009 में पूरा गांव खाली हो गया. ग्रामीण अपने ही क्षेत्र में शरणार्थी बन गए. महला गांव के लोग अपना घर, खेत सब कुछ छोड़कर चले गए.

कांकेर में नक्सलियों की दहशत पर तमाचा (ETV BHARAT)

साल 2008 के आंकड़ों के मुताबिक महला गांव में 45 परिवार रहते थे. गांव की कुल जनसंख्या 176 थी. साल 2009 में पूरा गांव खाली हो गया. वे पखांजूर जाकर रहने लगे. चूंकि यहां के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय खेती था, इसलिए पखांजूर में सिर्फ रोजी मजदूरी करके अपना घर चला रहे थे. लेकिन उन्हें गुजर बसर में काफी मुश्किल होने लगी. साल बीतते गए. इस दौरान गांव वालों ने कई बार प्रशासन से गांव के पास कैंप खोलने की मांग की. कांकेर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया कि लगभग 400 आवेदन गांव वालों ने इन सालों में कैंप खोलने के लिए दिया.

KANKER NAXAL VILLAGE
कांकेर का महला गांव (ETV Bharat Chhattisgarh)

साल 2018 में महला गांव में खुला बीएसएफ कैंप: ग्रामीणों की मांग पर साल 2018 में गांव से 1 किलोमीटर दूर बीएसएफ कैंप खोला गया. कैंप खुलने के बाद भी साल 2018, 2019, 2020 में नक्सली हमले होते रहे. इन नक्सली हमलों में 4 जवान शहीद भी हुए. लेकिन जवानों का हौसला बरकरार था. जवान लगातार सर्चिंग करते रहे. धीरे धीरे नक्सली घटनाओं में कमी आने लगी. इधर कैंप खुलने के बाद साल 2022 से गांव के परिवार धीरे धीरे वापस लौटने लगे. अब स्थिति ये है कि पूरा गांव फिर से बस गया है. गांव वाले बताते है कि अब गांव में स्थिति पहले जैसे नहीं है.

KANKER NAXAL VILLAGE
नक्सलियों की दहशत से पूरा गांव हो गया था खाली (ETV Bharat Chhattisgarh)

गांव के ग्रामीण से जानिए गांव में कैसी थी स्थिति: गांव के जागेश्वर दर्रो बताते हैं कि पहले गांव में नक्सलियों का दबदबा रहता था. लोगों को जीने के लिए डर का सामना करना पड़ता था. गांव वाले डरे डरे रहते थे. इसी तरह जीवन यापन चल रहा था. नक्सली गांव आकर मारकाट करते थे, लोगों को परेशान करते थे. नक्सली लीडर प्रभाकर, बोपन्ना अपनी टीम के साथ इस इलाके में रहते थे. नक्सली गांव वालों को अपना काम छोड़कर संगठन में शामिल होने को कहते थे. गांव में कई लोगों की हत्या नक्सलियों ने की, जिसके बाद गांव के किसान मजदूर परेशान होने लगे और गांव के सभी लोगों ने पलायन किया.

जागेश्वर आगे बताते हैं कि गांव छोड़कर सभी पखांजूर रहने चले गए. लेकिन सभी खेती किसानी वाले लोग थे, इसलिए बढ़ती महंगाई के कारण वहां जीवन यापन संभव नहीं हो पाया.

मैं उस समय पढ़ता था और घर वाले रोजी मजदूरी करते थे. जिसके बाद कैंप खुलने के बाद गांव वालों ने वापस गांव आने का मन बनाया और गांव लौटने लगे. पहले जो समस्या थी, वह अब नहीं है. सुरक्षा बलों और शासन प्रशासन के कारण गांव में शांति मिली है: जागेश्वर दर्रो, ग्रामीण

नक्सलियों के डर के कारण गांव छोड़कर चले गए थे. नक्सली कहते थे कि हमारा काम करो, हमारा सामान लाओ, हमारे साथ रहो. जिसके बाद पूरे गांव के लोग यहां से चले गए. कैंप खुलने के बाद गांव वापस आ गए हैं. खेती किसानी कर रहे हैं. अभी शांति आ गई है: बरसादी पटेल, ग्रामीण

सामुदायिक पुलिसिंग से शुरू हुआ स्कूल: कैंप खुलने के बाद ग्रामीण वापस लौटने लगे. इसके बाद ग्रामीणों के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की कवायद शुरू हुई. गांव में साल 2008 में एक स्कूल भी खोला गया था, लेकिन नक्सलियों की इतनी दहशत थी कि कोई भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे. जिससे स्कूल खंडहर में बदल गए. लेकिन साल 2018 में सुरक्षा बलों का कैंप लगने के बाद साल 2022 में सामुदायिक पुलिसिंग के तहत स्कूलों का पुनिर्निमाण कराया गया. इस स्कूल में गांव के 35 बच्चे पढ़ रहे हैं.

पिछले एक साल से कांकेर में नक्सल अभियान में काफी तेजी आई है. महला गांव में सिक्यूरिटी फोर्स का कैंप खुलने के बाद पुलिस का भी सपोर्ट मिला. इस वजह से गांव वाले अब वापस गांव लौटने लगे हैं. स्कूल भी खुल गया है. जवानों ने गांव वालों का हौसला बढ़ाया. आसपास के इलाकों में भी नक्सली दहशत कम हो गई है. आने वाले दिनों में पूरी तरह से नक्सली प्रभाव खत्म हो जाएगा: इंदिरा कल्याण ऐलेसेला, एसपी

सड़क पानी की प्रशासन से मांग: महला गांव वापस लौटे ग्रामीण अब सुरक्षा मिलने से काफी खुश है. हालांकि उनकी कुछ मूलभूत समस्याओं को लेकर मांगें हैं. ग्रामीण बताते है कि गांव में बिजली की व्यवस्था तो है लेकिन पीने के पानी की समस्या है. हैंडपंप से पानी नहीं निकलता है. जिससे लोग परेशान हैं. इसके अलावा गांव वालों ने सड़क की भी मांग की है.

गांव में जल्द सड़क पानी और पीएम आवास के घर: महला गांव में ग्रामीणों की वापसी और मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया कि ''महला गांव धुर नक्सल प्रभावित गांव है. 16 अप्रैल 2024 को यहां बड़ा नक्सल एनकाउंटर हुआ, जिसमें 29 नक्सलियों को जवानों ने ढेर कर दिया. इसी गांव वालों की मांग के बाद गांव के पास कैंप खोला गया था. जिसके बाद गांव वाले वापस अपने गांव लौटे. खेती किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.''

कलेक्टर ने आगे बताया कि गांव वालों की मांग पर जल्द रोड बनाई जाएगी. जल जीवन मिशन के तहत सोलर आधारित पानी टंकी बनाने का काम जल्द पूरा कर लिया जाएगा. कलेक्टर ने कहा कि पूरा गांव खाली हो गया था, इसलिए साल 2011 की सूची में किसी भी ग्रामीण का नाम नहीं था. जिस वजह से यहां के गांव वालों को पीएम आवास योजना का लाभ नहीं मिला, लेकिन अब इस समस्या को दूर कर लिया गया है. गांव में 200 पीएम आवास के घर बनाए जा रहे हैं. जल्द ही गांव के आसपास रेत खदान की भी स्वीकृति दी जा रही है.

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कांकेर: कांकेर जिले से 180 किलोमीटर दूर कोयलीबेड़ा ब्लॉक के परतापुर क्षेत्र में महला गांव है. ये गांव शुरू से ही नक्सल प्रभावित गांव है. परतापुर एरिया कमेटी के नक्सलियों की इस गांव में दहशत थी. नक्सली गांव आते, गांव के लोगों को परेशान करते, उनसे नक्सल संगठन में शामिल होने का दबाब बनाते और फिर जंगल चले जाते. इसी दहशत के बीच महला गांव के लोगों की जिंदगी कट रही थी.

नक्सली दहशत से साल 2009 में पूरा गांव हुआ खाली: साल 2007- 08 में नक्सलियों ने गांव के सरपंच और एक ग्रामीण की हत्या कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों ने गांव छोड़ना शुरू कर दिया. साल 2009 में पूरा गांव खाली हो गया. ग्रामीण अपने ही क्षेत्र में शरणार्थी बन गए. महला गांव के लोग अपना घर, खेत सब कुछ छोड़कर चले गए.

कांकेर में नक्सलियों की दहशत पर तमाचा (ETV BHARAT)

साल 2008 के आंकड़ों के मुताबिक महला गांव में 45 परिवार रहते थे. गांव की कुल जनसंख्या 176 थी. साल 2009 में पूरा गांव खाली हो गया. वे पखांजूर जाकर रहने लगे. चूंकि यहां के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय खेती था, इसलिए पखांजूर में सिर्फ रोजी मजदूरी करके अपना घर चला रहे थे. लेकिन उन्हें गुजर बसर में काफी मुश्किल होने लगी. साल बीतते गए. इस दौरान गांव वालों ने कई बार प्रशासन से गांव के पास कैंप खोलने की मांग की. कांकेर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया कि लगभग 400 आवेदन गांव वालों ने इन सालों में कैंप खोलने के लिए दिया.

KANKER NAXAL VILLAGE
कांकेर का महला गांव (ETV Bharat Chhattisgarh)

साल 2018 में महला गांव में खुला बीएसएफ कैंप: ग्रामीणों की मांग पर साल 2018 में गांव से 1 किलोमीटर दूर बीएसएफ कैंप खोला गया. कैंप खुलने के बाद भी साल 2018, 2019, 2020 में नक्सली हमले होते रहे. इन नक्सली हमलों में 4 जवान शहीद भी हुए. लेकिन जवानों का हौसला बरकरार था. जवान लगातार सर्चिंग करते रहे. धीरे धीरे नक्सली घटनाओं में कमी आने लगी. इधर कैंप खुलने के बाद साल 2022 से गांव के परिवार धीरे धीरे वापस लौटने लगे. अब स्थिति ये है कि पूरा गांव फिर से बस गया है. गांव वाले बताते है कि अब गांव में स्थिति पहले जैसे नहीं है.

KANKER NAXAL VILLAGE
नक्सलियों की दहशत से पूरा गांव हो गया था खाली (ETV Bharat Chhattisgarh)

गांव के ग्रामीण से जानिए गांव में कैसी थी स्थिति: गांव के जागेश्वर दर्रो बताते हैं कि पहले गांव में नक्सलियों का दबदबा रहता था. लोगों को जीने के लिए डर का सामना करना पड़ता था. गांव वाले डरे डरे रहते थे. इसी तरह जीवन यापन चल रहा था. नक्सली गांव आकर मारकाट करते थे, लोगों को परेशान करते थे. नक्सली लीडर प्रभाकर, बोपन्ना अपनी टीम के साथ इस इलाके में रहते थे. नक्सली गांव वालों को अपना काम छोड़कर संगठन में शामिल होने को कहते थे. गांव में कई लोगों की हत्या नक्सलियों ने की, जिसके बाद गांव के किसान मजदूर परेशान होने लगे और गांव के सभी लोगों ने पलायन किया.

जागेश्वर आगे बताते हैं कि गांव छोड़कर सभी पखांजूर रहने चले गए. लेकिन सभी खेती किसानी वाले लोग थे, इसलिए बढ़ती महंगाई के कारण वहां जीवन यापन संभव नहीं हो पाया.

मैं उस समय पढ़ता था और घर वाले रोजी मजदूरी करते थे. जिसके बाद कैंप खुलने के बाद गांव वालों ने वापस गांव आने का मन बनाया और गांव लौटने लगे. पहले जो समस्या थी, वह अब नहीं है. सुरक्षा बलों और शासन प्रशासन के कारण गांव में शांति मिली है: जागेश्वर दर्रो, ग्रामीण

नक्सलियों के डर के कारण गांव छोड़कर चले गए थे. नक्सली कहते थे कि हमारा काम करो, हमारा सामान लाओ, हमारे साथ रहो. जिसके बाद पूरे गांव के लोग यहां से चले गए. कैंप खुलने के बाद गांव वापस आ गए हैं. खेती किसानी कर रहे हैं. अभी शांति आ गई है: बरसादी पटेल, ग्रामीण

सामुदायिक पुलिसिंग से शुरू हुआ स्कूल: कैंप खुलने के बाद ग्रामीण वापस लौटने लगे. इसके बाद ग्रामीणों के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की कवायद शुरू हुई. गांव में साल 2008 में एक स्कूल भी खोला गया था, लेकिन नक्सलियों की इतनी दहशत थी कि कोई भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे. जिससे स्कूल खंडहर में बदल गए. लेकिन साल 2018 में सुरक्षा बलों का कैंप लगने के बाद साल 2022 में सामुदायिक पुलिसिंग के तहत स्कूलों का पुनिर्निमाण कराया गया. इस स्कूल में गांव के 35 बच्चे पढ़ रहे हैं.

पिछले एक साल से कांकेर में नक्सल अभियान में काफी तेजी आई है. महला गांव में सिक्यूरिटी फोर्स का कैंप खुलने के बाद पुलिस का भी सपोर्ट मिला. इस वजह से गांव वाले अब वापस गांव लौटने लगे हैं. स्कूल भी खुल गया है. जवानों ने गांव वालों का हौसला बढ़ाया. आसपास के इलाकों में भी नक्सली दहशत कम हो गई है. आने वाले दिनों में पूरी तरह से नक्सली प्रभाव खत्म हो जाएगा: इंदिरा कल्याण ऐलेसेला, एसपी

सड़क पानी की प्रशासन से मांग: महला गांव वापस लौटे ग्रामीण अब सुरक्षा मिलने से काफी खुश है. हालांकि उनकी कुछ मूलभूत समस्याओं को लेकर मांगें हैं. ग्रामीण बताते है कि गांव में बिजली की व्यवस्था तो है लेकिन पीने के पानी की समस्या है. हैंडपंप से पानी नहीं निकलता है. जिससे लोग परेशान हैं. इसके अलावा गांव वालों ने सड़क की भी मांग की है.

गांव में जल्द सड़क पानी और पीएम आवास के घर: महला गांव में ग्रामीणों की वापसी और मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया कि ''महला गांव धुर नक्सल प्रभावित गांव है. 16 अप्रैल 2024 को यहां बड़ा नक्सल एनकाउंटर हुआ, जिसमें 29 नक्सलियों को जवानों ने ढेर कर दिया. इसी गांव वालों की मांग के बाद गांव के पास कैंप खोला गया था. जिसके बाद गांव वाले वापस अपने गांव लौटे. खेती किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.''

कलेक्टर ने आगे बताया कि गांव वालों की मांग पर जल्द रोड बनाई जाएगी. जल जीवन मिशन के तहत सोलर आधारित पानी टंकी बनाने का काम जल्द पूरा कर लिया जाएगा. कलेक्टर ने कहा कि पूरा गांव खाली हो गया था, इसलिए साल 2011 की सूची में किसी भी ग्रामीण का नाम नहीं था. जिस वजह से यहां के गांव वालों को पीएम आवास योजना का लाभ नहीं मिला, लेकिन अब इस समस्या को दूर कर लिया गया है. गांव में 200 पीएम आवास के घर बनाए जा रहे हैं. जल्द ही गांव के आसपास रेत खदान की भी स्वीकृति दी जा रही है.

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