कांकेर : छत्तीसगढ़ में पहले चरण में बस्तर में वोटिंग हुई. इसके बाद दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल को होगा.दूसरे चरण में कांकेर लोकसभा सीट पर मतदान होंगे.जहां का मुकाबला काफी दिलचस्प है. मतदान से पहले प्रत्याशी अब लोगों के घरों तक पहुंचकर अपने वादों को पहुंचा रहे हैं.बात करें इस लोकसभा सीट पर बड़े दलों के साथ निर्दलीय भी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं.लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है.
बैगा को बीजेपी ने जंग में उतारा : कांकेर लोकसभा सीट पर बीजेपी की ओर से भोजराज नाग मैदान में हैं. भोजराज नाग अंतागढ़ विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं.भोजराज सिरहा बैगा समाज से आते हैं. जिनका काम गांव के देवी देवताओं की पूजा करना और उनके आदेश का पालन करना होता है.भोजराज की बात करें तो वो लंबे समय से क्षेत्र में हो रहे धर्मांतरण का विरोध कर रहे हैं.आरएसएस से जुड़कर भोजराज अंदरूनी क्षेत्रों में जाकर हिंदुत्व की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं.
अयोध्या से आया था बुलावा : भोजराज नाग की सादगी और उनके हिंदुत्व के प्रति समर्पण को बीजेपी ने कभी दरकिनार नहीं किया.यही वजह है कि अयोध्या राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा समारोह में भोजराज नाग एकमात्र आदिवासी नेता थे जिन्हें बुलावा आया था.वहीं जब कांकेर लोकसभा से भोजराज का नाम सामने आया तो ये बात साफ हो गई कि कांकेर लोकसभा में बीजेपी राम का नाम लेकर अपनी नैया पार लगाएगी.
कांग्रेस के प्रत्याशी हैं जमींदार : वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने कोरर के जमींदार परिवार के बीरेश ठाकुर को मैदान में उतारा है. बिरेश ठाकुर साल 2019 में भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं.जिन्हें बीजेपी के मोहन मंडावी ने 6 हजार मतों से हराया था. कुल मिलाकर इस बार का चुनाव बैगा और जमींदार के बीच होगा. जबकि चुनावी रणभूमि में उतरे अन्य प्रत्याशी औपचारिकता निभा रहे हैं.
धर्मांतरित आदिवासी बीजेपी से नाराज : वरिष्ठ पत्रकार उगेश सिन्हा के मुताबिक बस्तर समेत कांकेर में धर्मांतरित लोगों की अच्छी खासी फौज तैयार हो चुकी है.जिसमें सबसे ज्यादा संख्या अंदरूनी गांवों और बीहड़ इलाकों में आदिवासी समुदाय की है. बीजेपी प्रत्याशी भोजराज नाग लगातार धर्मांतरण विरोधी अभियान में सक्रिय रहे हैं. धर्मांतरित आदिवासियों के आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर कई बार आंदोलन हो चुके हैं. जिससे कहीं न कहीं धर्मांतरित आदिवासियों सहित अन्य जाति के लोग जो इसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं इससे काफी ज्यादा नाराज हैं.
'' ईसाई समाज के लोग अपनी नाराजगी के कारण बीजेपी के खिलाफ वोट डाल सकते हैं. धर्मांतरित लोगों ने सर्व आदि दल के नाम से पार्टी का गठन का अपना स्वतंत्र प्रत्याशी विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी खड़ा किया है.लेकिन यदि वोट नहीं बटे तो नुकसान बीजेपी को हो सकता है.'' उगेश सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
कांकेर में बीजेपी की सियासत : 2016 में कांकेर लोकसभा सीट से बीजेपी के विक्रम उसेंडी सांसद बने.इसके बाद जब विधानसभा सीट खाली हुई तो उपचुनाव में बीजेपी ने भोजराज नाग को टिकट दिया. कांग्रेस ने मंतूराम पवार को उपचुनाव में उतारा.लेकिन मंतूराम पवार में आखिरी मौके पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया.जिसके बाद भोजराज नाग चुनाव जीत गए. उपचुनाव के बाद मंतूराम पवार बीजेपी में शामिल हुए.लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो बीजेपी के खिलाफ ही आग उगलकर राजनीति गर्म कर दी. इसके बाद मंतूराम 2023 में निर्दलीय चुनाव लड़े,लेकिन सफलता नहीं मिली.अब एक बार फिर मंतूराम बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
कांग्रेस और आप नेता हुए बीजेपी में शामिल : इसी तरह से आईएएस की नौकरी छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर 2018 में कांकेर से विधायक निर्वाचित होने वाले शिशुपाल शोरी भी बीजेपी प्रवेश कर चुके हैं. लेकिन शिशुपाल सोरी के साथ उनका कोई भी समर्थक बीजेपी में शामिल नहीं हुआ. वहीं आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने भी झाड़ू से यारी तोड़कर कमल अपने हाथों में उठाया है. कोमल हुंपेंडी भानुप्रतापपुर क्षेत्र में एक निश्चित वोट बैक भी है. बीजेपी का मानना है कि भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र में कोमल हुपेंडी के आने से बीजेपी को बढ़त मिलेगी.लेकिन जहां तक कोमल हुपेंडी के आम आदमी पार्टी के समर्थकों की बात है उन्होंने अब तक पार्टी नहीं छोड़ी है.
कैसा है कांकेर लोकसभा की विधानसभाओं का हाल : कांकेर लोकसभा सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं. जिसमें पांच विधानसभा सीटों में कांग्रेस के विधायक जीतकर आए हैं. लोकसभा क्षेत्र के अंदर आने वाले भानुप्रतापपुर सीट से कांग्रेस की सावित्री मंडावी, संजारी बालोद सीट से संगीता सिन्हा, गुण्डरदेही से कुंवरसिंह निषाद, डौंडी लोहारा से अनिला भेड़िया, वहीं नगरी सिहावा सीट से अंबिका मरकाम कांग्रेस के विधायक हैं. वहीं बीजेपी की बात करें तो कांकेर विधानसभा सीट से आशाराम नेताम ,अंतागढ़ सीट से विक्रम उसेंडी और केशकाल सीट से नीलकंठ टेकाम चुनाव जीते हैं.
बीजेपी के लिए प्लस प्वाइंट : लोकसभा चुनाव में बीजेपी मोदी की गारंटी को लेकर चुनाव में उतरी है.विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने मोदी की गारंटी को पूरा करने का काम किया है.जिसमें महतारी वंदन योजना, धान बोनस की राशि के साथ धान खरीदी के लिए किसानों से किया गया वादा पूरा किया गया है.वहीं बीजेपी ने कांकेर लोकसभा से हमेशा नए चेहरे को मौका दिया है.इस बार जिस कैंडिडेट को बीजेपी ने उतारा है,उसकी जमीनी पकड़ काफी अच्छी है.कांग्रेस और आप पार्टी के नेताओं का भाजपा प्रवेश बीजेपी के लिए अच्छी सूचना ला सकता है.
बीजेपी के लिए मुश्किलें :बीजेपी के लिए मुश्किलें भी हैं.
- बीजेपी के प्रत्याशी भोजराज नाग धर्मांतरण के विरोध में लड़ाई लड़ रहे है,जिसकी वजह से धर्मांतरित कर चुके लोग उनके खिलाफ वोटिंग कर सकते हैं.
- जिस तरह से संसदीय क्षेत्र से दिग्गजों को दरकिनार कर अंदरूनी क्षेत्र के बैगा को टिकट मिला है,ऐसे में गुटबाजी भी हो सकती है.
- भोजराज नाग के ऊपर एक आदिवासी महिला का अपहरण करने का मामला है. महिला के परिजन भी समाज प्रमुखों के साथ कलेक्टर, एसपी को ज्ञापन सौंप चुके हैं.
कांग्रेस के लिए क्या फायदेमंद - पिछले लोकसभा चुनाव में बीरेश ठाकुर मामूली अंतर से चुनाव हारे थे.लेकिन राज्य सरकार ने बीरेश ठाकुर को बस्तर विकास प्राधिकरण का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया.जिसके कारण वो 5 साल सक्रिय रहे. कांग्रेस के प्रत्याशी बीरेश ठाकुर का परिवार आठों विधानसभा क्षेत्र में निवास करता है.विधानसभा चुनाव 2023 में आपसी गुटबाजी के कारण मिली हार से कांग्रेसी सबक लेकर एकजुट होकर मैदान में नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस के लिए चुनौती : कांकेर में कांग्रेस के लिए मुश्किलें
- कांकेर लोकसभा में एक भी स्टार प्रचारक की सभा नहीं हुई.
- कांग्रेस के अंदर अब भी टिकट को लेकर स्थानीय नेताओं में नाराजगी है.जिसका असर लोकसभा चुनाव में हो सकता है.शिशुपाल जैसे नेता का पार्टी छोड़ना इसका उदाहरण है.
- कांग्रेस शासनकाल में जो नेता पदों पर रहकर जलवा बिखेरते थे,सत्ता जाने के बाद वो नजर नहीं आ रहे.जिससे पार्टी कई जगहों पर अपनों से ही लड़ रही है.