ETV Bharat / state

रंग-बिरंगे फूलों से सजा मां चामुंडा देवी और ब्रजेश्वरी देवी का द्वार, सुबह आरती के साथ ही आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुले मां के पट - Navaratri 2024

author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Apr 9, 2024, 10:03 AM IST

Updated : Apr 11, 2024, 12:08 PM IST

Navaratri 2024: कांगड़ा के मां चामुंडा देवी और मां ब्रजेश्वरी के दर्शन के लिए नवरात्र के पहले दिन श्रद्धालुओं का तांता लगने लगा है. भक्तों के दर्शन के लिए उचित व्यवस्था प्रशासन की ओर से की गई है. साथ ही माता मंदिर को भी आकर्षक रंग- बिरंगे फूलों से सजाया गया हैं.

Kangra Chamunda Devi Navratra 2024
नवरात्र में मां के दर्शन करते श्रद्धालु

कांगड़ा: नवरात्रि के पहले दिन जिला कांगड़ा के मंदिरों का स्वरूप भव्य लग रहा है. रंग-बिरंगे फूलों से की गई सजावट मंदिरों की शोभा में चार-चांद लगा रहे हैं. मां चामुंडा देवी और मां ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में भी रंग-बिरंगे फूलों की सजावट की गई है. प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां चामुंडा देवी और ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष में भी नवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भीड़ धीरे-धीरे उभरने लगी है.
भक्त दूर-दूर से आकर मां के मंदिर में अपनी मनोकामना के लिए पहुंच रहे हैं. मां यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करतीं हैं. सुबह की आरती के साथ ही मां चामुंडा देवी और मां ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में मां का कपाट दर्शन के लिए खोल दिया गया है.

चामुंडा मंदिर के मुख्य पुजारी ओम व्यास ने बताया कि "चामुंडा मंदिर सभी शक्तिपीठों में एक प्रसिद्ध मंदिर है. उन्होंने कहा कि चामुंडा नंदीकेश्वर के नाम से इस जगह को श्रद्धालु जानते हैं. यहां शिव शक्ति का भी स्थान है. चामुंडा मां भगवती का नाम है और नंदीकेश्वर भगवान शिव का नाम है. जालंधर पीठ के अंतर्गत यह स्थान आता है. जालंधर राक्षस को द्वारपाल के रूप में जाना जाता है". इस स्थान पर चंड और मुंड नाम के दो रक्षस थे, जो काफी बलशाली थे. उन्हें देवताओं से वरदान मिला हुआ था कि उन्हें कोई नहीं मार सकेगा.

इसके बाद सभी देवता इकट्ठे हुए और अपनी-अपनी शक्ति से एक पिंड तैयार किए और उस पिंड को स्त्री का रूप दिया और उस स्त्री को अंबिका का नाम दिया. इसी के साथ उस स्त्री को चंड और मुंड को मारने का काम देवताओं द्वारा दिया गया.यह दोनों राक्षस के सेवादार जंगलों में रहते थे और रात को मनुष्यों को पकड़ कर उन्हें खा जाते थे. इसी जगह तब जंगल हुआ करता था और माता ने यहां पर आकर रात को विश्राम किया.

वहीं रात को जब राक्षस के सेवक घूमने के लिए आए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर स्त्री यहां पर बैठी हुई है. इस बात की सूचना उन्होंने जाकर चंड और मुंड राक्षस को दी. सूचना मिलते ही दोनों राक्षसों ने अपने सेवादारों को कहा कि उस स्त्री को ले आओ और उसे हमारी पटरानी बना दो".

पुजारी ने कहानी में आगे बताया कि "जब राक्षस के सेवादार वापिस आए तो उन्होंने कहा कि हे देवी आप इस जंगल में क्या कर रही हैं? आपका स्थान इस जंगल में नहीं बल्कि चंड और मुंड राक्षसों के पटरानी बनने कर सिंहासन पर बैठना है. तब मां चामुंडा ने उनसे आग्रह किया जो रक्षा मुझे युद्ध में हराएगा उसकी मैं पटरानी बनूंगी. राक्षसों के सेवादारों ने कहा कि हमारे राक्षस राजा काफी बलशाली हैं और आप ऐसी शर्त मत रखो और हमारे साथ चल पड़ो.

मां चामुंडा ने अपना हठ नहीं छोड़ा और यही कहा कि जो मुझे युद्ध मे हराएग में उसकी ही पटरानी बनूंगी. इसके बाद मां चामुंडा और चंड-मुंड राक्षसों के बीच युद्ध हुआ. युद्ध में मां चामुंडा ने चंड-मुंड राक्षसों का सिर धड़ से अलग करके वध कर दिया. उनके सिर को अपने दोनों हाथों में लेकर उनकी आदि शास्त्री देवी के पास ले गई और उनको बताया हे माता आपने जो मुझे कार्य सौंपा था, उसे मैंने पूरा कर दिया है.

चंड और मुंड का जो सिर है वह मैं आपको सौंप रही हूं और मुझे आगे की आज्ञा दें. तब आदि शास्त्री देवी ने कहा कि अपने चंड और मुंड नाम के राक्षसों का संहार किया है तो आज से आप इस जगह पर चामुंडा मां के नाम से विख्यात होंगी. तभी से इस मंदिर में मां चामुंडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है".

पुजारी ने बताया कि "यह स्थान शमशान भूमि भी है. इस जगह पर हर दिन एक मुर्दे को जलाया जाता है. उन्होंने कहा कि एक अलौकिक स्थान है और जो भी श्रद्धालु यहां पर आकर अपनी मनोकामना मांगता है उसे मां उसे अवश्य पूरा करती हैं".

ये भी पढ़ें: 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ, इस दौरान भक्त रखे कुछ खास बातों का ख्याल

कांगड़ा: नवरात्रि के पहले दिन जिला कांगड़ा के मंदिरों का स्वरूप भव्य लग रहा है. रंग-बिरंगे फूलों से की गई सजावट मंदिरों की शोभा में चार-चांद लगा रहे हैं. मां चामुंडा देवी और मां ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में भी रंग-बिरंगे फूलों की सजावट की गई है. प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां चामुंडा देवी और ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष में भी नवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भीड़ धीरे-धीरे उभरने लगी है.
भक्त दूर-दूर से आकर मां के मंदिर में अपनी मनोकामना के लिए पहुंच रहे हैं. मां यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करतीं हैं. सुबह की आरती के साथ ही मां चामुंडा देवी और मां ब्रजेश्वरी देवी मंदिर में मां का कपाट दर्शन के लिए खोल दिया गया है.

चामुंडा मंदिर के मुख्य पुजारी ओम व्यास ने बताया कि "चामुंडा मंदिर सभी शक्तिपीठों में एक प्रसिद्ध मंदिर है. उन्होंने कहा कि चामुंडा नंदीकेश्वर के नाम से इस जगह को श्रद्धालु जानते हैं. यहां शिव शक्ति का भी स्थान है. चामुंडा मां भगवती का नाम है और नंदीकेश्वर भगवान शिव का नाम है. जालंधर पीठ के अंतर्गत यह स्थान आता है. जालंधर राक्षस को द्वारपाल के रूप में जाना जाता है". इस स्थान पर चंड और मुंड नाम के दो रक्षस थे, जो काफी बलशाली थे. उन्हें देवताओं से वरदान मिला हुआ था कि उन्हें कोई नहीं मार सकेगा.

इसके बाद सभी देवता इकट्ठे हुए और अपनी-अपनी शक्ति से एक पिंड तैयार किए और उस पिंड को स्त्री का रूप दिया और उस स्त्री को अंबिका का नाम दिया. इसी के साथ उस स्त्री को चंड और मुंड को मारने का काम देवताओं द्वारा दिया गया.यह दोनों राक्षस के सेवादार जंगलों में रहते थे और रात को मनुष्यों को पकड़ कर उन्हें खा जाते थे. इसी जगह तब जंगल हुआ करता था और माता ने यहां पर आकर रात को विश्राम किया.

वहीं रात को जब राक्षस के सेवक घूमने के लिए आए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर स्त्री यहां पर बैठी हुई है. इस बात की सूचना उन्होंने जाकर चंड और मुंड राक्षस को दी. सूचना मिलते ही दोनों राक्षसों ने अपने सेवादारों को कहा कि उस स्त्री को ले आओ और उसे हमारी पटरानी बना दो".

पुजारी ने कहानी में आगे बताया कि "जब राक्षस के सेवादार वापिस आए तो उन्होंने कहा कि हे देवी आप इस जंगल में क्या कर रही हैं? आपका स्थान इस जंगल में नहीं बल्कि चंड और मुंड राक्षसों के पटरानी बनने कर सिंहासन पर बैठना है. तब मां चामुंडा ने उनसे आग्रह किया जो रक्षा मुझे युद्ध में हराएगा उसकी मैं पटरानी बनूंगी. राक्षसों के सेवादारों ने कहा कि हमारे राक्षस राजा काफी बलशाली हैं और आप ऐसी शर्त मत रखो और हमारे साथ चल पड़ो.

मां चामुंडा ने अपना हठ नहीं छोड़ा और यही कहा कि जो मुझे युद्ध मे हराएग में उसकी ही पटरानी बनूंगी. इसके बाद मां चामुंडा और चंड-मुंड राक्षसों के बीच युद्ध हुआ. युद्ध में मां चामुंडा ने चंड-मुंड राक्षसों का सिर धड़ से अलग करके वध कर दिया. उनके सिर को अपने दोनों हाथों में लेकर उनकी आदि शास्त्री देवी के पास ले गई और उनको बताया हे माता आपने जो मुझे कार्य सौंपा था, उसे मैंने पूरा कर दिया है.

चंड और मुंड का जो सिर है वह मैं आपको सौंप रही हूं और मुझे आगे की आज्ञा दें. तब आदि शास्त्री देवी ने कहा कि अपने चंड और मुंड नाम के राक्षसों का संहार किया है तो आज से आप इस जगह पर चामुंडा मां के नाम से विख्यात होंगी. तभी से इस मंदिर में मां चामुंडा देवी की पूजा अर्चना की जाती है".

पुजारी ने बताया कि "यह स्थान शमशान भूमि भी है. इस जगह पर हर दिन एक मुर्दे को जलाया जाता है. उन्होंने कहा कि एक अलौकिक स्थान है और जो भी श्रद्धालु यहां पर आकर अपनी मनोकामना मांगता है उसे मां उसे अवश्य पूरा करती हैं".

ये भी पढ़ें: 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ, इस दौरान भक्त रखे कुछ खास बातों का ख्याल

Last Updated : Apr 11, 2024, 12:08 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.