भोपाल। क्या छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का चुनाव कमलनाथ के राजनीतिक जीवन का सबसे मुश्किल चुनाव बन गया है. मैदान में भले कमलनाथ नहीं है, लेकिन नकुलनाथ की उम्मीदवारी के साथ भी साख तो कमलनाथ की ही है. क्या कमलनाथ ये मान चुके हैं कि उनकी सियासी विरासत को बचाने का आखिरी दांव है ये चुनाव. इतना मुश्किल कि कमलनाथ को अपनी जवानी का हवाला देना पड़े. ये कहना पड़े कि उन्होंने जवानी के चालीस साल कहां खपा दिए. कमलनाथ इन चुनावों में जो इमोशनल अपील कर रहे हैं क्या उसकी वजह यही है.
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मैं अपनी आख़िरी साँस तक छिंदवाड़ा को समर्पित करना चाहता हूँ। pic.twitter.com/yRHFttV2i9
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) March 27, 2024
किसे दिया कमलनाथ ने जवानी का वास्ता
कमलनाथ को आपने पहले कब कब जज़्बाती होते देखा है. एमपी में सत्ता जाने के बाद भी कमलनाथ की राजनीति के अंदाज में कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं आया. लेकिन 2023 की हार और छिंदवाड़ा में भाजपा की नाकेबंदी क्या कमलनाथ को अहसास करा गई है कि इस बार चुनौती बड़ी है. क्या वजह है कि कमलनाथ अब अपनी सभाओं में छिंदवाड़ा को दिए गए अपने कीमती बरस का हवाला देते हैं. क्या वजह है कि कमलनाथ को अपने ही छिंदवाड़ा के लोगों को ये कहना पड़ रहा है कि उनकी आखिरी सांस भी छिंदवाड़ा के लिए है.
आखिरी सांस तक छिंदावड़ा के लिए समर्पित रहूंगा
छिंदवाड़ा की सभा में कमलनाथ ने कहा कि "मैंने अपनी जवानी के चालीस साल छिंदवाड़ा को समर्पित कर दिए. आज ये कहना चाहता हूं कि आखिरी सांस तक अपने आप को छिंदावड़ा के लिए समर्पित करता रहूंगा." हांलाकि, सीएम मोहन यादव ने कमलनाथ के इमोशनल कार्ड पर दांव खेलने में एक मिनट का भी वक्त नहीं लगाया और पलटवार करते हुए कहा कि "अगर चालीस साल बाद भी कमलनाथ को रोना पड़ रहा है, इमोशनल होना पड़ रहा है तो ये जनता के साथ केवल छलावा है."
1971 से 14 चुनाव, बीजेपी एक बार जीती
छिंदवाड़ा वो लोकसभा सीट है जहां 1971 से अब तक हुए 14 चुनाव में जनादेश बदल पाना बीजेपी के लिए हमेशा सबसे बड़ी चुनौती रही है. कोई हवा हो आंधी हो, लेकिन छिंदवाड़ा कमलनाथ के साथ कांग्रेस का हाथ थामे खड़ा रहा. 2014 की मोदी लहर में पूरे देश में आंधी चली बीजेपी की लेकिन छिंदवाड़ा बेअसर. 2019 के लोकसभा चुनाव में जो 29 में से 28 सीटों पर बीजेपी का कमल खिला, लेकिन छिदवाड़ा तब भी कमलनाथ के लिए खड़ा रहा. उसी के बाद से 2024 के आम चुनाव के नतीजे बदलने बीजेपी ने शुरुआत से ही केन्द्रीय नेताओं की तैनाती छिंदवाड़ा में कर दी. इस बार बीजेपी का बड़ा टास्क है छिंदवाड़ा का जनादेश बदलना है.
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वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं, "छिंदवाड़ा केवल एक लोकसभा सीट नहीं है. यूं देखिए तो ये सीट कमलनाथ और फिर उनके बाद नकुलनाथ की सियासत का सेंटर पाइंट है. जिसके बगैर उनके राजनीतिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. लोकसभा विधानसभा क्षेत्र हर नेता की अपनी परिधि अपना मैदान होता है, लेकिन उनकी राजनीति का दायरा बहुत बड़ा होता है. कमलनाथ ने केन्द्रीय नेता बन जाने के बावजूद छिंदवाड़ा से अपनी पहचान को बरकरार रखा ये उनके लिए फायदा भी रहा और नुकसान भी.