करनाल: सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार 19 अप्रैल को एकादशी पड़ रही है. चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से इंसान को सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिल जाता है. इसके अलावा मनुष्य को राक्षस योनि से भी मुक्ति मिलती है.
इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना की जाती है. माना जाता है कि जो भी इंसान इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी उनके सभी दुख और संकट दूर कर देते हैं. इसके अलावा ये व्रत करने से वहीं घर में सुख समृद्धि आती है. तो जानिए कामदा एकादशी का व्रत कैसे रखें और इसका पूजा का विधि विधान क्या हैं.
कब है कामदा एकादशी? पंडित कर्मपाल शर्मा ने बताया हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार कामदा एकादशी 19 अप्रैल को मनाई जा रही है. जिसकी शुरुआत 18 अप्रैल की शाम 5:31 से होगी जबकि इसका समापन 19 अप्रैल की शाम 8:04 पर होगा. हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्योहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है, इसलिए कामदा एकादशी का व्रत 19 अप्रैल को रखा जाएगा. ये हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी है.
कामदा एकादशी का शुभ मुहूर्त: हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त 19 अप्रैल को सुबह 5:51 से शुरू होकर सुबह 10:41 तक रहेगा. पंडित ने बताया कि कामदा एकादशी के व्रत का पारण व्रत से अगले दिन 20 अप्रैल को सुबह 5:50 से सुबह 8:26 तक किया जाएगा.
कामदा एकादशी का महत्व: पंडित ने बताया कि प्रत्येक एकादशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व होता है, लेकिन सभी एकादशियों में से कामदा एकादशी का महत्व ज्यादा बताया गया है. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से घर में सुख समृद्धि आती है. कामदा एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है.
कामदा एकादशी को फलदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए कहा जाता है कि इस व्रत से व्यक्ति को 100 यज्ञ के बराबर जितना फल की प्राप्ति होती है. उसको राक्षस योनि से भी मुक्ति मिल जाती है. शास्त्रों में बताया गया है कि इंसान को जितना पुण्य सैकड़ों हजारों वर्षों तक तपस्या करने दान करने या फिर कन्यादान से मिलता है. इस व्रत को करने से इन सभी से ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है. ये भी बताया जाता है कि जो भी इंसान इस व्रत को करता है. उसके घर में किसी भी प्रकार की दरिद्रता नहीं आती और आर्थिक संकट भी दूर होता है.
व्रत का विधि विधान: पंडित ने बताया कि एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. सबसे पहले निर्जला व्रत रखा जाता है. इस व्रत में इंसान पानी और अन्न कुछ भी ग्रहण नहीं करता. दूसरे तरीके से इंसान निर्जला व्रत ना रख कर साधारण व्रत रखता है. इसमें इंसान अन्न ग्रहण नहीं करता, लेकिन पानी ग्रहण कर सकता है. एकादशी का व्रत करने के लिए एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें, उसके बाद भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करें और फिर मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें और उनके आगे देसी घी का दीपक जलाएं.
भगवान विष्णु और मा लक्ष्मी की करें पूजा: पूजा के दौरान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को पीले रंग के फल, फूल, वस्त्र, हल्दी, चंदन और मिठाई अर्पित करें और प्रसाद का भोग भी लगाए. इसके बाद व्रत रखने का प्रण लें. "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें और अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के लिए आरती करें. दिन में भी भगवान विष्णु के लिए कीर्तन इत्यादि करें या फिर विष्णु पुराण पढ़ें. दिन के समय कामदा एकादशी की कथा भी पढ़ सकते हैं.
इन बातों का रखें ध्यान: शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के आगे प्रसाद का भोग लगाकर उनकी पूजा अर्चना करें और आरती करें. अगले दिन पारण के अपने व्रत का पारण करें. भोजन ग्रहण करने से पहले गरीब जरूरतमंद ब्राह्मण और गाय को भोजन अवश्य कराएं और फिर खुद भोजन ग्रहण करें. भोजन के बाद ब्राह्मण व गरीबों को अपनी क्षमता अनुसार दक्षिणा भी दें. ऐसा करने से भगवान घर में सुख समृद्धि बनी रहेगी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद परिवार पर बना रहेगा.
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