नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा तीन केंद्रों सेंटर फॉर कोरियन स्टडीज, सीआईएसएलएस और एसएए इन तीन सेंटरों में पीएचडी के दाखिले नहीं लेने की घोषणा की है. जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष धनंजय ने इस फैसले को मनमाना बताते हुए इसे बिना किसी छात्र प्रतिनिधित्व के लिया गया निर्णय करार दिया.
जनमत संग्रह को छात्रों ने दिया समर्थन : इस निर्णय के विरोध में, JNUSU ने सोमवार, 16 दिसंबर 2024 को एक जनमत संग्रह कराया गया .कुल 664 छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया, जिसमें से 98.64% (655 छात्र) ने इन केंद्रों के लिए पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया (JNUEE) को चालू सत्र में आयोजित करने के पक्ष में मतदान किया. जनमत संग्रह में 14 दृष्टिहीन छात्रों ने डिजिटल प्रणाली के माध्यम से मतदान किया.
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष धनंजय ने बताया कि इस साल जेएनयू प्रशासन ने सेंटर फॉर कोरियन स्टडीज, सीआईएसएलएस और एसएए इन तीन सेंटरों मेंपीएचडी प्रवेश प्रक्रिया (JNUEE) को नहीं लेने की घोषणा की है.इस निर्णय के विरोध में JNUSU ने जनमत संग्रह कराया, जिसमें कुल 664 छात्रों ने हिस्सा लिया. जनमत संग्रह के परिणाम आने के बाद JNUSU ने प्रशासन से इस विषय पर बातचीत करने की कोशिश की. छात्र संघ के प्रतिनिधियों और छात्रों ने कुलपति से मिलने का प्रयास किया, लेकिन कुलपति ने मिलने से इनकार कर दिया.
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कुलपति का परीक्षा आयोजित करने का आश्वासन : JNUSU अध्यक्ष धनंजय के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में कुलपति ने तीनों केंद्रों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की. उन्होंने कहा कि परीक्षा आयोजित करने में प्रशासन की ओर से पूरी तरह से लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया जाएगा, बशर्ते JNUSU संबंधित स्कूलों के डीन या चेयरपर्सन से लिखित सहमति प्राप्त करे.
आंदोलन की अगली रणनीति : JNUSU ने 17 दिसंबर 2024, मंगलवार को SAA, SLL&CS और SSS केंद्रों के डीन से लिखित सहमति प्राप्त करने के लिए एक जन प्रतिनिधिमंडल भेजने का आह्वान किया है. JNUSU ने छात्रों से अपील की है कि वे इस आंदोलन में शामिल हों और अपनी आवाज़ बुलंद करें.
JNUSU ने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने की कही बात : JNUSU ने कहा, "छात्रों के अधिकारों और उनकी शिक्षा के भविष्य को बचाने के लिए यह लड़ाई महत्वपूर्ण है. प्रशासन को यह समझना चाहिए कि छात्र इस प्रकार के मनमाने फैसले स्वीकार नहीं करेंगे." यह घटना विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच संवादहीनता और असंतोष को उजागर करती है. छात्रों ने स्पष्ट किया है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहेंगे.
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