रांची: राजनीतिक दलों के साथ-साथ निर्दलीय भी चुनावी रण में उतरने के लिए अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं. इन सबके बीच चुनाव आयोग द्वारा जारी मान्यता प्राप्त पार्टियों और उनके चुनाव चिन्हों से सबसे ज्यादा परेशानी क्षेत्रीय पार्टियों को उठानी पड़ेगी. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, देश में फिलहाल राष्ट्रीय पार्टियों की संख्या 06 है जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या 77 है.
राष्ट्रीय दलों में आप, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और नेशनल पीपुल्स पार्टी शामिल हैं. इन राष्ट्रीय पार्टियों में से बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियों का हर राज्य में एक ही चुनाव चिन्ह होगा. चुनाव आयोग के मुताबिक, असम में बहुजन समाज पार्टी को हाथी चुनाव चिह्न आवंटित नहीं किया जाएगा.
चुनाव चिन्हों को लेकर क्षेत्रीय दलों को परेशानी
झारखंड की क्षेत्रीय पार्टियों की बात करें तो यहां तीन क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जिनमें आजसू, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद शामिल हैं. तीनों दलों को चुनाव आयोग ने झारखंड के क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता दी है. उन्हें पारंपरिक रूप से चुनाव चिह्न आवंटित किए गए हैं. यदि राजद को छोड़कर दोनों दल झारखंड के बाहर किसी राज्य में चुनाव लड़ते हैं, तो उन्हें स्वतंत्र उम्मीदवारों के लिए जारी 190 चुनाव चिह्नों में किसी एक को आवंटित कर दिया जाएगा.
उदाहरण के तौर पर बिहार में जदयू का चुनाव चिह्न तीर है, जबकि झारखंड में चुनाव आयोग के आदेश पर अब तक ट्रैक्टर चलाता किसान है. ऐसे में पार्टी एक होने पर भी मान्यता के चलते चुनाव चिन्ह अलग-अलग होंगे. बिहार की बात करें तो यहां 05 मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय पार्टियां हैं. जिसमें जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन शामिल हैं.
एलजेपी के नाम और चुनाव चिह्न पर विवाद के चलते चुनाव आयोग ने इसे फ्रीज कर दिया है. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के रवि कुमार के अनुसार भारत निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये हैं.