जामताड़ा: जिले में संथाल परगना संयुक्त समिति की ओर से संथाल परगना स्थापना दिवस सह संथाली भाषा दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया. मुख्य समारोह दुमका रोड स्थित यज्ञ मैदान में आयोजित किया गया. वहीं कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो समारोह में हुए शामिल हुए.
संस्कृति बचाए रखने की अपील
इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो ने झारखंड के संथाल परगना को संघर्ष की उपजाऊ भूमि बताया. उन्होंने कहा कि 1855 में सिदो कानू ने भोगनाडीह से अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. नतीजा हुआ कि आंदोलन से संथाल परगना की स्थापना हुई और साथ ही अंग्रेजों को एसपीटी एक्ट यहां के जंगल, जमीन और संस्कृति को बचाने के लिए लागू करना पड़ा. विधानसभा अध्यक्ष ने समारोह में आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति और अपने धरोहर को बचाए रखने की अपील की. उन्होंने संथाल समाज के विकास और उत्थान पर जोर दिया.
संथाल परगना के साथ रचा जा रहा है षड्यंत्र
समारोह के उपरांत झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो ने मीडिया से बातचीत के क्रम में कहा कि आज भी झारखंड और संथाल परगना में आदिवासी समाज को आर्थिक शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि शोषण, भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करना पड़ेगा, तभी संथाल आदिवासी समाज को अपना हक अधिकार मिल सकेगा.उन्होंने कहा कि संथाल परगना के साथ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है. संसद में कुछ सांसदों द्वारा संथाल परगना और पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों को मिलाकर एक केंद्र शासित राज्य बनाए जाने की मांग की जा रही है, जो बहुत बड़ा षड्यंत्र है. उन्होंने कहा कि सचेत रहने की जरूरत है.
संथाल परगना के इतिहास पर डाला प्रकाश
वहीं समारोह में अन्य वक्ताओं ने संथाल परगना के इतिहास और संथाल परगना के भोगनाडी से सिदो कान्हू द्वारा अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन और यहां के संस्कृति को लेकर चर्चा की. वक्ताओं ने कहा कि संथाल परगना एक संघर्ष की उपज है. वक्ताओं ने कहा कि भोगनाडीह से सिदो कान्हू ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ के यहां की संस्कृति और आदिवासी को बचाने का काम किया था. नतीजा 22 जनवरी के दिन ही संथाल परगना संयुक्त बिहार में भागलपुर के मिलाकर बनाया गया और आज संथाल परगना झारखंड का एक हिस्सा है.इस दौरान वक्ताओं ने संथाल की धरती को बचाए रखने की अपील की.
विद्यालयों में संथाली भाषा में पढ़ाई की मांग
समारोह में आदिवासी समाज के वक्ताओं ने समाज के उत्थान के साथ-साथ संथाली भाषा में विद्यालयों में पढ़ाई और संथाली संवाद संथाल में जारी करने की मांग की. वहीं इस अवसर पर पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी. जिसमें सैकड़ों की संख्या में आदिवासी महिलाएं और पुरुष शामिल हुए.
22 दिसंबर को हुआ था संथाल परगना का निर्माण
1855 में संथाल परगना का निर्माण अंग्रेजी शासन व्यवस्था में हुआ था. जिसमें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से पाकुड़, महेशपुर और बीरभूम जिले से मलूटी और रानीश्वर, मसलिया, नाला, कुंडहित इलाके को काटकर संथाल में मिलाया गया. भागलपुर के भी कुछ क्षेत्र को शामिल करने के बाद संथाल परगना अस्तित्व में आया. 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना अस्तित्व में आया. नतीजा हर साल 22 दिसंबर को संथाल परगना स्थापना दिवस विभिन्न आदिवासी समुदाय आदिवासी संगठन द्वारा संथाल परगना स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाता है.
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