रांची: झारखंड की 81 सदस्यों वाले विधानसभा में एसटी के लिए रिजर्व सीटों की संख्या 28 है. इन सीटों पर दबदबा बनाए बिना बहुमत के 41 के आंकड़े तक पहुंचना एक सपना की तरह है. इन 28 सीटों का प्रभाव इस कदर है कि झारखंड में रघुवर दास को छोड़कर अब तक जितने भी मुख्यमंत्री बने, सभी आदिवासी समाज के रहे हैं. इनमें बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, चंपाई सोरेन और हेमंत सोरेन का नाम शुमार है.
झारखंड में शासन की बागडोर ज्यादा समय तक भाजपा के हाथ में रही है लेकिन 2019 के चुनाव परिणाम के बाद तस्वीर बदल गई है. इंडिया गठबंधन का एसटी सीटों पर वर्चस्व है. इसका मतलब यह नहीं कि भाजपा को एसटी समाज का आशीर्वाद नहीं मिलता. 2019 को छोड़कर राज्य बनने के बाद हुए तीन चुनावों में एसटी सीटों पर वर्चस्व को लेकर झामुमो और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होती रही है.
2005 के चुनाव में 28 एसटी सीटों का समीकरण
झारखंड बनने के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में एसटी सीटों पर जीत के लिए झामुमो और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. दोनों दलों को 09-09 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. झामुमो ने बरहेट, लिट्टिपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, पोटका, सरायकेला, मंझगांव, चक्रधरपुर और गुमला सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा ने बोरिया, जामा, चाईबासा, खरसांवा, तोरपा, खूंटी, खिजरी, सिसई और बिशुनपुर सीट पर कब्जा जमाया था. कांग्रेस के खाते में घाटशिला, सिमडेगा और लोहरदगा सीट गई थी.
राजद ने मनिका, जदयू ने तमाड़ सीट जीती थी. निर्दलीयों ने दुमका, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, मांडर और कोलेबिरा सीट पर फतह हासिल की थी. यह वो दौर था, जब दुमका सीट से झामुमो का टिकट नहीं मिलने पर स्टीफन मरांडी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे. उन्होंने भाजपा के मोहरील मुर्मू को हराया था. इस चुनाव में झामुमो की टिकट पर वर्तमान सीएम हेमंत सोरेन तीसरे स्थान पर रहे थे.
2009 में एसटी सीटों पर हार-जीत का समीकरण
2009 के चुनाव में भी ज्यादातर एसटी सीटों पर सीधी लड़ाई झामुमो और भाजपा के बीच ही हुई थी. इस चुनाव में 10 सीटें जीतकर झामुमो ने दिखा दिया था कि आदिवासी समाज के बीच वह सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. झामुमो ने बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, घाटशिला, सरायकेला और चाईबासा सीट पर कब्जा जमाया था. भाजपा ने पोटका, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और मनिका सीट पर जीत हासिल की थी. शेष 10 सीटों में कांग्रेस ने खिजरी, सिसई, आजसू ने लोहरदगा, जेवीएम ने महेशपुर सीट अपने नाम किया था. जबकि जगन्नाथपुर, मांडर, बिशुनपुर और कोलेबिरा सीट निर्दलीयों के पाले में गई थी.
2014 में एसटी सीटों पर हार-जीत का समीकरण
दस वर्षों तक अस्थिरता से गुजरने के बाद 2014 में झारखंड की राजनीति में ठहराव आया. यह पहला चुनाव था जब झामुमो और भाजपा ने 28 एसटी सीटों में से 24 सीटों पर कब्जा जमा लिया था. झामुमो ने सबसे ज्यादा 13 सीटों के साथ बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, जामा, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा, तोरपा और बिशुनपुर का चुनावी मैदान अपने नाम किया था. 11 सीटों पर जीत के साथ आदिवासी समाज के बीच भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. भाजपा ने बोरियो, दुमका, घाटशिला, पोटका, खूंटी, खिजरी, मांडर, सिसई, गुमला, सिमडेगा और मनिका सीट पर कब्जा जमाया था. यह ऐसा चुनाव था जिसमें कांग्रेस एक भी एसटी सीट नहीं जीत पाई थी. आजसू ने तमाड़ और लोहरदगा सीट जीती थी. कोलेबिरा और जगन्नाथपुर सीट निर्दलीय के खाते में गई थी.
2019 में आदिवासी समाज का भाजपा से हो गया मोहभंग
ऐसा इसलिए कहना लाजमी है क्योंकि तीन चुनावों में झामुमो को एसटी सीटों पर कांटे की टक्कर देने वाली भाजपा एकदम हवा हवाई हो गई. झामुमो ने बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, घाटशिला, पोटका, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा, तमाड़, सिसई, गुमला और बिशुनपुर को मिलाकर 19 एसटी सीटों पर जीत हासिल की. दूसरे नंबर पर कांग्रेस ने 06 सीटों के साथ जगन्नाथपुर, खिजरी, सिमडेगा, कोलेबिरा, लोहरदगा और मनिका सीट पर कब्जा जमा लिया. भाजपा के पाले में सिर्फ खूंटी और तोरपा सीट गई. मांडर सीट पर बंधु तिर्की जेवीएम की टिकट पर विजयी रहे. आय से अधिक संपत्ति मामले में सदस्यता गंवाने के बाद मांडर सीट से बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की ने कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की. कुल मिलाकर कहें तो वर्तमान में एसटी की 28 सीटों में से 26 सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है.
जाहिर है कि एसटी सीटों पर भाजपा अपने 2014 के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी. इस जंग में चंपाई सोरेन, सीता सोरेन, लोबिन हेंब्रम और गीता कोड़ा के भाजपा में जुड़ने से पार्टी की उम्मीदें बढ़ गई हैं. क्योंकि अगर भाजपा एसटी सीटों पर 2014 वाला परफॉर्मेंस करती है तो उसे सत्ता पर काबिज होने से कोई नहीं रोक पाएगा. वहीं झामुमो को 2019 के शानदार परफॉर्मेंस को दोहराने की चुनौती होगी. कुल मिलाकर कहें तो इन्हीं 28 सीटों पर बढ़त तय करेगी कि सत्ता किसके पास जाएगी.
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