ETV Bharat / state

297 साल का हुआ जयपुर, ब्रह्मांड की परिकल्पना पर बसाया गया था शहर, वास्तु कला और आध्यात्म का अनूठा उदाहरण

आज जयपुर का स्थापना दिवस है. पढ़िए किस उद्देश्य से सवाई जयसिंह द्वितीय ने 297 साल पहले जयपुर को बसाया था...

Jaipur Foundation day
जयपुर स्थापना दिवस (ETV Bharat Jaipur)
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 2 hours ago

Updated : 12 minutes ago

जयपुर : सवाई जयसिंह द्वितीय ने 297 साल पहले जिस जयपुर को बसाया, उसमें वास्तु, कला और आध्यात्म सभी को समाहित किया था. पृथ्वी और ब्रह्मांड को दर्शाने वाली संकल्पना को जयपुर में ही सार्थक किया गया था. एक ऐसा क्षेत्र जहां राजा-महाराजा आखेट के लिए जाया करते थे. उसी जगह पर बसाया गया सबसे सुनियोजित शहर है जयपुर.

ब्रह्मांड की परिकल्पना पर बसाया जयपुर : 18 नवंबर 1727 को सवाई जयसिंह द्वितीय ने जिस शहर को बसाया, आज हम उसका जन्मदिन मना रहे हैं. इस शहर को सिर्फ जयपुर के नाम से नहीं बल्कि हेरिटेज सिटी, छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर एक आध्यात्मिक नगरी है. आध्यात्म के कई पहलू होते हैं, जैसे ज्योतिष, धर्म, जीवन जीने की कला. सवाई जयसिंह का बचपन धार्मिक निकला. उसी को आधार बनाकर के उन्होंने एक ऐसा नगर बसाने की सोची जो ब्रह्मांड की परिकल्पना को लिए हुई हो, जिसमें तारों की गणना हो, नवग्रह हो, इंद्र की पुरी, कुबेर की अलकापुरी का कांसेप्ट को लेकर वो आगे चले और काफी हद तक सफल भी रहे.

297 साल का हुआ 'गुलाबी नगरी' (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें. जयपुर की विरासत में रची बसी है हिंदी, आज भी परकोटे की हर बाजार, दुकान, गली और दरवाजों पर है हिंदी नाम

धार्मिक आंदोलन का जड़ था जयपुर : उन्होंने बताया कि जयपुर की बसावट इस तरह से की गई, ताकि इसे विश्व की राजधानी के रूप में देखा जा सके. धार्मिक नगरी और काम करने वालों की नगरी के रूप में देखा जाए. शुरुआत में ये 25 हजार की जनसंख्या वाला शहर था, जिसे उस दौर में बहुत बड़ी जनसंख्या माना जाता था. सवाई जयसिंह की सोच यही थी कि धर्म की रक्षा के लिए भी जयपुर से कुछ होना चाहिए. ऐसे में काशी, मथुरा, हरिद्वार, राम जन्मभूमि के जितने भी धार्मिक आंदोलन हुए, उन सभी की जड़ जयपुर रही, और यहां से पैसा भी गया.

Jaipur Foundation day
जयपुर की बसावट से पहले का आमेर किला (ETV Bharat Jaipur)

चौपड़ों पर देवियों के यंत्र किए गए थे स्थापित : वर्तमान में यहां आठ दरवाजों से घिरा परकोटा है. उस दौर में सात दरवाजे हुआ करते थे. वो भी अलकापुरी की तर्ज पर बनाए गए थे. हर दरवाजे का एक नाम है. सभी दरवाजे चौपड़ों पर जाकर खत्म होते हैं और इन चौपड़ों पर भी अलग-अलग देवियों के यंत्र स्थापित हैं. इसी तरह की बसावट वहां आसपास की गई. छोटी चौपड़ पर सरस्वती यंत्र स्थापित किया गया और आसपास ब्राह्मण और ज्योतिषियों की बस्ती बसाई गई. बड़ी चौपड़ पर लक्ष्मी यंत्र स्थापित किया, जहां कारीगरों और व्यापारियों की बस्तियों को बसाया गया और रामगंज चौपड़ पर महाकाली का यंत्र स्थापित करते हुए फाइटर्स कौम बसाई गई.

Jaipur Foundation day
जयपुर का नजारा (ETV Bharat Jaipur)

छोटी काशी में विष्णु के दशावतारों के मंदिर : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि सवाई जयसिंह की सोच बड़ी थी, तभी यहां भगवान विष्णु के दशावतारों के मंदिर बनाए गए. भगवान शिव को लेकर विश्वनाथ की जो परिकल्पना थी, उसी छोटी काशी के नजरिए से यहां अनेक मंदिर बनाए गए. यहां गुप्त वृंदावन हैं, मथुरा, काशी, उज्जैन इन सभी धार्मिक नगरियों के कांसेप्ट को लेकर जयपुर को बसाया गया था.

पढ़ें. यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल परकोटे से कटा टूरिस्ट, वजह सामने लेकिन समाधान नहीं

बसावट के दौरान किया गया था अश्वमेध यज्ञ : बताया जाता है कि जब जयपुर को बसाया गया था उस वक्त सवाई जय सिंह ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था और उससे भी पहले वाजपेय और राजसूय यज्ञ भी किया गया था. भगत ने बताया कि वाजपेय यज्ञ जयपुर में वर्तमान पुरानी बस्ती की यज्ञशाला की बावड़ी में किया गया था. राजसूय यज्ञ ब्रह्मपुरी में किया गया और अश्वमेध यज्ञ जल महल के सामने प्रभात पुरी के खोले में किया गया था. वो दौर था जब मुगल शासक कमजोर होते जा रहे थे और सामंत मजबूत होते जा रहे थे. सवाई जयसिंह ने खुद को मुगलों से मुक्त करते हुए ये स्पष्ट कर दिया था कि वो अब हिंदू समाज के लिए कुछ करने के लिए आगे बढ़ेंगे. इसी सोच के साथ जयपुर को बसाया गया. जय सिंह आधुनिक काल के पहले राजा थे, जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने की पहल की. देशभर से पंडित यहां पर बुलाए गए और उन्हें ब्रह्मपुरी में बसाया भी गया.

Jaipur Foundation day
सवाई जयसिंह ने 1725 से 1734 के बीच जंतर मंतर का निर्माण करवाया था (ETV Bharat Jaipur)

कई शहरों की संस्कृति को समेटे हुए है जयपुर : जयपुर के लिए कहा जाता है कि 'भोर बनारस, प्रयाग दोपहरी, शाम ए अवध, रात बुंदेलखंडी'. इस कहावत को लेकर देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि गलता की पहाड़ियों से निकलता हुआ सूर्य गंगा के पार बनारस में निकलते सूर्य सा प्रतीत होता है. दोपहरी का आलम इलाहाबाद में जिस तरह से पढ़ा लिखा वर्ग काम करने के बाद इलाहाबाद संगम पर चाय पीता हुआ दिखता है, वैसा ही नजारा जयपुर में बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ पर देखने को मिल जाएगा. शाम की खनक, शाम की बातें, शायरी, शतरंज, चौपाल, प्रेम प्रसंग की बातें अवध की तर्ज पर छोटी चौपड़ और चांदपोल बाजार पर देखा जा सकता है. अंतिम में बुंदेलखंड में जिस तरह से रात भर लोग कंबल ओढ़ कर बातचीत करते हैं, बड़े बुजुर्गों से उनके जीवन के अनुभव सुनते हुए सुबह हो जाया करती थी, वैसा दिखता है. जयपुर ऐसा नगर है जो सारी संस्कृतियों को समेटे हुए था.

Jaipur Foundation day
जयपुर का परकोटा क्षेत्र (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें. रंगीले राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की जरूरत, आधुनिकता की चकचौंध में लुप्त न हो जाए 'विरासत'

ग्रिड पद्धति पर की गई थी बसावट : वहीं, बसावट को लेकर उन्होंने बताया कि सिंधु घाटी सभ्यता में जो ग्रिड पद्धति थी. उसी तर्ज पर सड़कों के किनारों पर नालियां बनाना, समकोण पर काटते हुए रास्ते बनाना, यही पैटर्न जयपुर में हुआ करता था. इसके पीछे उद्देश्य यही था कि आबोहवा शुद्ध रहे, गलियां इस तरह से सटी हुई न हों कि पॉल्यूशन हो. उस वक्त छोटे रास्ते बड़े रास्ते में और बड़ा रास्ता चौपड़ों पर जाकर मिलने का कॉन्सेप्ट था. इसी वजह से जयपुर में सुबह के वक्त गर्मियों में भी ठंडक महसूस होती है और सर्दियों में गर्माहट महसूस होती है, क्योंकि यहां चूने पत्थर से घर और गलियां बनाई गई थीं. हालांकि, वर्तमान में आधुनिकीकरण के चलते यह सब विलुप्त होता जा रहा है.

Jaipur Foundation day
जयपुर में स्थित अजमेरी गेट (ETV Bharat Jaipur)

नाहरगढ़ की पहाड़ियों से गोलाई में आता है नजर : वहीं, जयपुर को नाहरगढ़ की पहाड़ियों से देखें तो गोलाई में नजर आएगा, क्योंकि यहां एक झील हुआ करती थी. आखेट का स्थल था. जब यहां पानी का प्रवाह बंद हो गया और लगा कि यहां स्थाई रूप से निर्माण किया जा सकता है तो इसी वृताकार परिधि में जयपुर का निर्माण किया गया. यहां बड़ोदिया बस्ती, रामचंद्रपुरा सहित पांच गांव को शामिल करते हुए जयपुर का निर्माण किया गया. इसका जिक्र पुराने लेखों में कहीं-कहीं मिलता है. बहरहाल, जयपुर 297 साल का हो गया है, लेकिन आज भी यहां आध्यात्म बरकरार है. तीज-त्योहार पर शाही नजारा आज भी यहां देखने को मिलता है. वाहनों की भीड़ में सड़के छोटी हो गईं हैं और बरामदों की छतों तक पर जरूरतों की इमारतें खड़ी हो गई हैं, लेकिन विरासत के निशां समेटे अभी भी जयपुर अपने जवां होने की गवाही देता है.

जयपुर : सवाई जयसिंह द्वितीय ने 297 साल पहले जिस जयपुर को बसाया, उसमें वास्तु, कला और आध्यात्म सभी को समाहित किया था. पृथ्वी और ब्रह्मांड को दर्शाने वाली संकल्पना को जयपुर में ही सार्थक किया गया था. एक ऐसा क्षेत्र जहां राजा-महाराजा आखेट के लिए जाया करते थे. उसी जगह पर बसाया गया सबसे सुनियोजित शहर है जयपुर.

ब्रह्मांड की परिकल्पना पर बसाया जयपुर : 18 नवंबर 1727 को सवाई जयसिंह द्वितीय ने जिस शहर को बसाया, आज हम उसका जन्मदिन मना रहे हैं. इस शहर को सिर्फ जयपुर के नाम से नहीं बल्कि हेरिटेज सिटी, छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर एक आध्यात्मिक नगरी है. आध्यात्म के कई पहलू होते हैं, जैसे ज्योतिष, धर्म, जीवन जीने की कला. सवाई जयसिंह का बचपन धार्मिक निकला. उसी को आधार बनाकर के उन्होंने एक ऐसा नगर बसाने की सोची जो ब्रह्मांड की परिकल्पना को लिए हुई हो, जिसमें तारों की गणना हो, नवग्रह हो, इंद्र की पुरी, कुबेर की अलकापुरी का कांसेप्ट को लेकर वो आगे चले और काफी हद तक सफल भी रहे.

297 साल का हुआ 'गुलाबी नगरी' (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

पढ़ें. जयपुर की विरासत में रची बसी है हिंदी, आज भी परकोटे की हर बाजार, दुकान, गली और दरवाजों पर है हिंदी नाम

धार्मिक आंदोलन का जड़ था जयपुर : उन्होंने बताया कि जयपुर की बसावट इस तरह से की गई, ताकि इसे विश्व की राजधानी के रूप में देखा जा सके. धार्मिक नगरी और काम करने वालों की नगरी के रूप में देखा जाए. शुरुआत में ये 25 हजार की जनसंख्या वाला शहर था, जिसे उस दौर में बहुत बड़ी जनसंख्या माना जाता था. सवाई जयसिंह की सोच यही थी कि धर्म की रक्षा के लिए भी जयपुर से कुछ होना चाहिए. ऐसे में काशी, मथुरा, हरिद्वार, राम जन्मभूमि के जितने भी धार्मिक आंदोलन हुए, उन सभी की जड़ जयपुर रही, और यहां से पैसा भी गया.

Jaipur Foundation day
जयपुर की बसावट से पहले का आमेर किला (ETV Bharat Jaipur)

चौपड़ों पर देवियों के यंत्र किए गए थे स्थापित : वर्तमान में यहां आठ दरवाजों से घिरा परकोटा है. उस दौर में सात दरवाजे हुआ करते थे. वो भी अलकापुरी की तर्ज पर बनाए गए थे. हर दरवाजे का एक नाम है. सभी दरवाजे चौपड़ों पर जाकर खत्म होते हैं और इन चौपड़ों पर भी अलग-अलग देवियों के यंत्र स्थापित हैं. इसी तरह की बसावट वहां आसपास की गई. छोटी चौपड़ पर सरस्वती यंत्र स्थापित किया गया और आसपास ब्राह्मण और ज्योतिषियों की बस्ती बसाई गई. बड़ी चौपड़ पर लक्ष्मी यंत्र स्थापित किया, जहां कारीगरों और व्यापारियों की बस्तियों को बसाया गया और रामगंज चौपड़ पर महाकाली का यंत्र स्थापित करते हुए फाइटर्स कौम बसाई गई.

Jaipur Foundation day
जयपुर का नजारा (ETV Bharat Jaipur)

छोटी काशी में विष्णु के दशावतारों के मंदिर : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि सवाई जयसिंह की सोच बड़ी थी, तभी यहां भगवान विष्णु के दशावतारों के मंदिर बनाए गए. भगवान शिव को लेकर विश्वनाथ की जो परिकल्पना थी, उसी छोटी काशी के नजरिए से यहां अनेक मंदिर बनाए गए. यहां गुप्त वृंदावन हैं, मथुरा, काशी, उज्जैन इन सभी धार्मिक नगरियों के कांसेप्ट को लेकर जयपुर को बसाया गया था.

पढ़ें. यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल परकोटे से कटा टूरिस्ट, वजह सामने लेकिन समाधान नहीं

बसावट के दौरान किया गया था अश्वमेध यज्ञ : बताया जाता है कि जब जयपुर को बसाया गया था उस वक्त सवाई जय सिंह ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था और उससे भी पहले वाजपेय और राजसूय यज्ञ भी किया गया था. भगत ने बताया कि वाजपेय यज्ञ जयपुर में वर्तमान पुरानी बस्ती की यज्ञशाला की बावड़ी में किया गया था. राजसूय यज्ञ ब्रह्मपुरी में किया गया और अश्वमेध यज्ञ जल महल के सामने प्रभात पुरी के खोले में किया गया था. वो दौर था जब मुगल शासक कमजोर होते जा रहे थे और सामंत मजबूत होते जा रहे थे. सवाई जयसिंह ने खुद को मुगलों से मुक्त करते हुए ये स्पष्ट कर दिया था कि वो अब हिंदू समाज के लिए कुछ करने के लिए आगे बढ़ेंगे. इसी सोच के साथ जयपुर को बसाया गया. जय सिंह आधुनिक काल के पहले राजा थे, जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने की पहल की. देशभर से पंडित यहां पर बुलाए गए और उन्हें ब्रह्मपुरी में बसाया भी गया.

Jaipur Foundation day
सवाई जयसिंह ने 1725 से 1734 के बीच जंतर मंतर का निर्माण करवाया था (ETV Bharat Jaipur)

कई शहरों की संस्कृति को समेटे हुए है जयपुर : जयपुर के लिए कहा जाता है कि 'भोर बनारस, प्रयाग दोपहरी, शाम ए अवध, रात बुंदेलखंडी'. इस कहावत को लेकर देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि गलता की पहाड़ियों से निकलता हुआ सूर्य गंगा के पार बनारस में निकलते सूर्य सा प्रतीत होता है. दोपहरी का आलम इलाहाबाद में जिस तरह से पढ़ा लिखा वर्ग काम करने के बाद इलाहाबाद संगम पर चाय पीता हुआ दिखता है, वैसा ही नजारा जयपुर में बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ पर देखने को मिल जाएगा. शाम की खनक, शाम की बातें, शायरी, शतरंज, चौपाल, प्रेम प्रसंग की बातें अवध की तर्ज पर छोटी चौपड़ और चांदपोल बाजार पर देखा जा सकता है. अंतिम में बुंदेलखंड में जिस तरह से रात भर लोग कंबल ओढ़ कर बातचीत करते हैं, बड़े बुजुर्गों से उनके जीवन के अनुभव सुनते हुए सुबह हो जाया करती थी, वैसा दिखता है. जयपुर ऐसा नगर है जो सारी संस्कृतियों को समेटे हुए था.

Jaipur Foundation day
जयपुर का परकोटा क्षेत्र (ETV Bharat Jaipur)

पढ़ें. रंगीले राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की जरूरत, आधुनिकता की चकचौंध में लुप्त न हो जाए 'विरासत'

ग्रिड पद्धति पर की गई थी बसावट : वहीं, बसावट को लेकर उन्होंने बताया कि सिंधु घाटी सभ्यता में जो ग्रिड पद्धति थी. उसी तर्ज पर सड़कों के किनारों पर नालियां बनाना, समकोण पर काटते हुए रास्ते बनाना, यही पैटर्न जयपुर में हुआ करता था. इसके पीछे उद्देश्य यही था कि आबोहवा शुद्ध रहे, गलियां इस तरह से सटी हुई न हों कि पॉल्यूशन हो. उस वक्त छोटे रास्ते बड़े रास्ते में और बड़ा रास्ता चौपड़ों पर जाकर मिलने का कॉन्सेप्ट था. इसी वजह से जयपुर में सुबह के वक्त गर्मियों में भी ठंडक महसूस होती है और सर्दियों में गर्माहट महसूस होती है, क्योंकि यहां चूने पत्थर से घर और गलियां बनाई गई थीं. हालांकि, वर्तमान में आधुनिकीकरण के चलते यह सब विलुप्त होता जा रहा है.

Jaipur Foundation day
जयपुर में स्थित अजमेरी गेट (ETV Bharat Jaipur)

नाहरगढ़ की पहाड़ियों से गोलाई में आता है नजर : वहीं, जयपुर को नाहरगढ़ की पहाड़ियों से देखें तो गोलाई में नजर आएगा, क्योंकि यहां एक झील हुआ करती थी. आखेट का स्थल था. जब यहां पानी का प्रवाह बंद हो गया और लगा कि यहां स्थाई रूप से निर्माण किया जा सकता है तो इसी वृताकार परिधि में जयपुर का निर्माण किया गया. यहां बड़ोदिया बस्ती, रामचंद्रपुरा सहित पांच गांव को शामिल करते हुए जयपुर का निर्माण किया गया. इसका जिक्र पुराने लेखों में कहीं-कहीं मिलता है. बहरहाल, जयपुर 297 साल का हो गया है, लेकिन आज भी यहां आध्यात्म बरकरार है. तीज-त्योहार पर शाही नजारा आज भी यहां देखने को मिलता है. वाहनों की भीड़ में सड़के छोटी हो गईं हैं और बरामदों की छतों तक पर जरूरतों की इमारतें खड़ी हो गई हैं, लेकिन विरासत के निशां समेटे अभी भी जयपुर अपने जवां होने की गवाही देता है.

Last Updated : 12 minutes ago
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.