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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आज, 92 साल में पहली बार मौसी के घर टेंट में विराजमान होंगे महाप्रभु - Jagannath Rath Yatra 2024

Jagannath Rath Yatra 2024 आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा छत्तीसगढ़ के कांकेर शहर में भी निकाला जा रहा है. भगवान जगन्नाथ कांकेर के राजापारा स्थित अपने मंदिर से निकल रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे. लेकिन 92 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब भगवान जगन्नाथ टेंट में विराजमान होंगे. जानिए इसकी क्या वजह है.

LORD JAGANNATH RATH YATRA IN KANKER
कांकेर में रथ यात्रा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 7, 2024, 11:27 AM IST

कांकेर : शहर में आज महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है. भगवान जगन्नाथ राजापारा स्थित अपने मंदिर से निकल रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे. लेकिन 92 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब भगवान जगन्नाथ टेंट में विराजमान होंगे.

भगवान क्यों होंगे टेंट में विराजमान : मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रवण चौहान ने बताया, "जनकपुर वार्ड स्थित गुंडिचा मंदिर जर्जर है, जिसकी वजह से भगवान वहां विराजमान नहीं हो सकते. 3 सालों से भगवान अपने रथ पर सवार होकर अपने मंदिर के ही एक स्टोर रूम में 10 दिन बिता चुके है. लेकिन इस बार वार्डवासियों की आग्रह पर भगावन फिर से अपनी मौसी के घर जनकपुर पहुंचेंगे. इस बार भगवान को 10 दिन टेंट में बिताना होगा." मंदिर नहीं बनने के पीछे मंदिर समिति ने प्रशासन के उदासीन रवैये का हवाला दिया है. इस वजह से अब तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है.

"इससे पहले तक रथयात्रा जनकपुर वार्ड के गुडिचा मंदिर पहुंचती थी, जहां भगवान अपनी मौसी के घर 9 दिन रहते थे और यहां से वापस भगवान को रथ से मंदिर पहुंचाया जाता था. गुंडिचा मंदिर जर्जर हो चुका है, इसलिए भगवान की मूर्तियों को वहां नहीं रखकर पास ही टेंट बनाकर उसमें भगवान को रखा जाएगा." - श्रवण चौहान, अध्यक्ष, मंदिर समिति

कांकेर में रथयात्रा का इतिहास : कांकेर में रथयात्रा का इतिहास 100 सालों से अधिक पुराना तो है ही. साथ ही इसका संबंध सीधे ओडिशा के पुरी से भी है. चंद्रवंश के प्रथम राजा वीर कन्हार देव ओडिशा के जगन्नाथपुरी के राजपरिवार से थे, जिन्होंने कांकेर में अपना राजपाट 1397 में स्थापित किया. कई पीढ़ियों के बाद कांकेर के राजा पदुमसिंह देव (1839 से 1853 तक) ने ओडिशा के पुरी से भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा के अलावा पतित पावन की मूर्तियां बुलवाई और उन्हें कच्चे मकान में रखी थी. उनके बेटे राजा नरहरदेव (1853 से 1903 तक) ने शहर के राजापारा में मंदिर बनवाकर इन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा कराई और रथयात्रा की परंपरा शुरूआत की, जो आज भी कायम है.

कन्हार देव के राज की शुरुआत : इतिहास को लेकर मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रवण चौहान ने बताया, "कांकेर में कंड़ा वंश के बाद चंद्रवंश का शासन रहा. जगन्नाथ पुरी रियासत परिवार के वीर कन्हार देव को कुष्ठ रोग हो गया था. इलाज के लिए वह छत्तीसगढ़ के ऋषियों की तपोभूमि सिहावा पहुंचे. यहां वे श्रृंगी ऋषि के आश्रम के पास अराधना करते अपना जीवन बिताने लगे. इसी दौरान उन्हें स्वप्न आया कि श्रृंगी ऋषि के आश्रम के पास बहने वाले नाले में स्नान करने से उनका रोग दूर हो जाएगा. जब वे स्नान कर नाले से बाहर निकले तो उनका कुष्ठ रोग दूर हो चुका था. साथ ही उनका शरीर दिव्य प्रकाश से चमक रहा था. सिहावा वासियों ने उन्हें अपना राजा माना. उन्होंने 1397 से 1404 तक यहां राजपाट किया.

राजा नरहर देव ने शुरु की रथयात्रा : राजा पदुमसिंह देव के निधन के बाद उनके चार बेटों में ज्येष्ठ पुत्र नरहर देव राजा बने. उन्होंने राजापारा स्थित वर्तमान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया और कांकेर में स्थयात्रा परंपरा की शुरुआत की. तब से लेकर अब तक कांकेर में रथयात्रा की परंपरा कायम है.

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भगवान क्यों होंगे टेंट में विराजमान : मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रवण चौहान ने बताया, "जनकपुर वार्ड स्थित गुंडिचा मंदिर जर्जर है, जिसकी वजह से भगवान वहां विराजमान नहीं हो सकते. 3 सालों से भगवान अपने रथ पर सवार होकर अपने मंदिर के ही एक स्टोर रूम में 10 दिन बिता चुके है. लेकिन इस बार वार्डवासियों की आग्रह पर भगावन फिर से अपनी मौसी के घर जनकपुर पहुंचेंगे. इस बार भगवान को 10 दिन टेंट में बिताना होगा." मंदिर नहीं बनने के पीछे मंदिर समिति ने प्रशासन के उदासीन रवैये का हवाला दिया है. इस वजह से अब तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है.

"इससे पहले तक रथयात्रा जनकपुर वार्ड के गुडिचा मंदिर पहुंचती थी, जहां भगवान अपनी मौसी के घर 9 दिन रहते थे और यहां से वापस भगवान को रथ से मंदिर पहुंचाया जाता था. गुंडिचा मंदिर जर्जर हो चुका है, इसलिए भगवान की मूर्तियों को वहां नहीं रखकर पास ही टेंट बनाकर उसमें भगवान को रखा जाएगा." - श्रवण चौहान, अध्यक्ष, मंदिर समिति

कांकेर में रथयात्रा का इतिहास : कांकेर में रथयात्रा का इतिहास 100 सालों से अधिक पुराना तो है ही. साथ ही इसका संबंध सीधे ओडिशा के पुरी से भी है. चंद्रवंश के प्रथम राजा वीर कन्हार देव ओडिशा के जगन्नाथपुरी के राजपरिवार से थे, जिन्होंने कांकेर में अपना राजपाट 1397 में स्थापित किया. कई पीढ़ियों के बाद कांकेर के राजा पदुमसिंह देव (1839 से 1853 तक) ने ओडिशा के पुरी से भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा के अलावा पतित पावन की मूर्तियां बुलवाई और उन्हें कच्चे मकान में रखी थी. उनके बेटे राजा नरहरदेव (1853 से 1903 तक) ने शहर के राजापारा में मंदिर बनवाकर इन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा कराई और रथयात्रा की परंपरा शुरूआत की, जो आज भी कायम है.

कन्हार देव के राज की शुरुआत : इतिहास को लेकर मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रवण चौहान ने बताया, "कांकेर में कंड़ा वंश के बाद चंद्रवंश का शासन रहा. जगन्नाथ पुरी रियासत परिवार के वीर कन्हार देव को कुष्ठ रोग हो गया था. इलाज के लिए वह छत्तीसगढ़ के ऋषियों की तपोभूमि सिहावा पहुंचे. यहां वे श्रृंगी ऋषि के आश्रम के पास अराधना करते अपना जीवन बिताने लगे. इसी दौरान उन्हें स्वप्न आया कि श्रृंगी ऋषि के आश्रम के पास बहने वाले नाले में स्नान करने से उनका रोग दूर हो जाएगा. जब वे स्नान कर नाले से बाहर निकले तो उनका कुष्ठ रोग दूर हो चुका था. साथ ही उनका शरीर दिव्य प्रकाश से चमक रहा था. सिहावा वासियों ने उन्हें अपना राजा माना. उन्होंने 1397 से 1404 तक यहां राजपाट किया.

राजा नरहर देव ने शुरु की रथयात्रा : राजा पदुमसिंह देव के निधन के बाद उनके चार बेटों में ज्येष्ठ पुत्र नरहर देव राजा बने. उन्होंने राजापारा स्थित वर्तमान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया और कांकेर में स्थयात्रा परंपरा की शुरुआत की. तब से लेकर अब तक कांकेर में रथयात्रा की परंपरा कायम है.

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