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सुनवाई का मौका दिए बिना कैसे मकान पर चला दिया बुलडोजर? कोर्ट ने घर तोड़े जाने के मामले में लगाई फटकार - JABALPUR HIGHCOURT HOUSE DEMOLITION

उमरिया में प्रशासन द्वारा मकान तोड़े जाने के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

JABALPUR HIGHCOURT on HOUSE DEMOLITION case
मकान तोड़े जाने के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 21, 2025, 7:22 AM IST

जबलपुर : सुनवाई का अवसर दिए बिना मकान का एक हिस्सा तोड़े जाने के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने अधिकारियों को फटकार लगाई है. हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगत की एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए तहसीलदार नजूल उमरिया को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है, जिसमें कोर्ट ने पूछा है कि सुनवाई का मौका दिए बिना याचिकाकर्ता के मकान को कैसे तोड़ दिया गया?

क्या है मकान तोड़े जाने का पूरा मामला?

दरअसल, याचिकाकर्ता उमरिया निवासी केवी विनीत की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि उसके पिता ने वर्ष 1996 में रजिस्ट्री के माध्यम से एक जमीन खरीदी थी. इसके बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ शासकीय जमीन पर अतिक्रमण का प्रकरण बनाकर उस पर जुर्माना लगाया गया. इतना ही नहीं जुर्माना कार्रवाई के बाद उसके मकान का कुछ हिस्सा प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया. याचिका में कहा गया था कि नियमानुसार मौके पर पंचानामा नहीं बनाया गया और न ही याचिकाकर्ता को कोई नोटिस भी जारी नहीं किया गया था.

सुनवाई का नहीं दिया अवसर और तोड़ दिया मकान

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दस्तावेज पेश करते हुए दावा किया कि जमीन उसके नाम पर है और सुनवासई का अवसर दिए बिना ही मनमाने तरीके से कार्रवाई की गई. याचिकाकर्ता को पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही उसके मकान के एक हिस्से को जमींदोज कर दिया गया. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उसने एसडीओ के सामने पक्ष रखने की अपील की, जोकि निरस्त कर दी गई थी, जिसके बाद उसने जबलपुर हाईकोर्ट की शरण ली है.

एकलपीठ ने सुनवाई के बाद सख्त टिप्पणी करते हुए तसहील दार नजूल उमरिया को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनोज कुशवाहा और कौशलेंद्र सिंह ने पैरवी की.

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क्या है मकान तोड़े जाने का पूरा मामला?

दरअसल, याचिकाकर्ता उमरिया निवासी केवी विनीत की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि उसके पिता ने वर्ष 1996 में रजिस्ट्री के माध्यम से एक जमीन खरीदी थी. इसके बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ शासकीय जमीन पर अतिक्रमण का प्रकरण बनाकर उस पर जुर्माना लगाया गया. इतना ही नहीं जुर्माना कार्रवाई के बाद उसके मकान का कुछ हिस्सा प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया. याचिका में कहा गया था कि नियमानुसार मौके पर पंचानामा नहीं बनाया गया और न ही याचिकाकर्ता को कोई नोटिस भी जारी नहीं किया गया था.

सुनवाई का नहीं दिया अवसर और तोड़ दिया मकान

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दस्तावेज पेश करते हुए दावा किया कि जमीन उसके नाम पर है और सुनवासई का अवसर दिए बिना ही मनमाने तरीके से कार्रवाई की गई. याचिकाकर्ता को पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही उसके मकान के एक हिस्से को जमींदोज कर दिया गया. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उसने एसडीओ के सामने पक्ष रखने की अपील की, जोकि निरस्त कर दी गई थी, जिसके बाद उसने जबलपुर हाईकोर्ट की शरण ली है.

एकलपीठ ने सुनवाई के बाद सख्त टिप्पणी करते हुए तसहील दार नजूल उमरिया को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनोज कुशवाहा और कौशलेंद्र सिंह ने पैरवी की.

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