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सिर्फ धारणा के आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा - JABALPUR HIGH COURT

जबलपुर हाईकोर्ट ने शख्स को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपियों के खिलाफ दर्ज केस को खारिज करने का आदेश दिया है.

JABALPUR HIGH COURT
JABALPUR HIGH COURT (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 24, 2024, 9:12 PM IST

Updated : Nov 24, 2024, 9:18 PM IST

जबलपुर: जबलपुर हाईकोर्ट कहा है कि सिर्फ धारणा के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता है. जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने पाया कि आत्महत्या का कारण स्पष्ट नहीं होने के बावजूद पुलिस ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया और न्यायालय ने चार्ज फ्रेम कर दिए. एकलपीठ ने एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के निर्देश दिए हैं.

आरोपियों ने न्यायालय द्वारा धारा 306, 34 के अपराध में आरोप तय किए जाने को दी थी चुनौती

याचिकाकर्ता हीरालाल अहिरवार, पुरुषोत्तम अहिरवार सहित पांच व्यक्तियों ने न्यायालय द्वारा धारा 306, 34 के अपराध में आरोप तय किए जाने को चुनौती देते हुए क्रिमिनल रिवीजन दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि कामता प्रसाद अहिरवार(50) ने 5 फरवरी 2022 को ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली थी. प्रकरण के अनुसार कामता प्रसाद, पुरुषोत्तम अहिरवार के घर तेरहवीं के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे.

बेटा द्वारा बसोर समाज की लड़की से शादी होने के कारण याचिकाकर्ताओं ने उसे स्वतंत्र रूप से कार्यक्रम में शामिल नहीं होने दिया. उसे सिर्फ खाना खाने की अनुमति थी. बेटे व पुत्रवधू को खाना खाने की अनुमति नहीं थी. खुद को अपमानित महसूस करते हुए कामता ने आत्महत्या कर ली. याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि आत्महत्या के पूर्व कामता ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था. इसके अलावा खुद को अपमानित महसूस करने के संबंध में किसी से कुछ नहीं कहा था. आवश्यक तथ्यों के बिना ही उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया और न्यायालय ने चार्ज फ्रेम कर दिए.

शख्स को आत्महत्या के लिए उकसाने के नहीं थे आवश्यक तथ्य

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि परिजनों के बयान व धारणा के आधार पर आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया था. प्रकरण में आत्महत्या के लिए उकसाने के कोई आवश्यक तथ्य नहीं थे. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए एकलपीठ ने एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के आदेश जारी किए हैं.

जबलपुर: जबलपुर हाईकोर्ट कहा है कि सिर्फ धारणा के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता है. जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने पाया कि आत्महत्या का कारण स्पष्ट नहीं होने के बावजूद पुलिस ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया और न्यायालय ने चार्ज फ्रेम कर दिए. एकलपीठ ने एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के निर्देश दिए हैं.

आरोपियों ने न्यायालय द्वारा धारा 306, 34 के अपराध में आरोप तय किए जाने को दी थी चुनौती

याचिकाकर्ता हीरालाल अहिरवार, पुरुषोत्तम अहिरवार सहित पांच व्यक्तियों ने न्यायालय द्वारा धारा 306, 34 के अपराध में आरोप तय किए जाने को चुनौती देते हुए क्रिमिनल रिवीजन दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि कामता प्रसाद अहिरवार(50) ने 5 फरवरी 2022 को ट्रेन से कटकर आत्महत्या कर ली थी. प्रकरण के अनुसार कामता प्रसाद, पुरुषोत्तम अहिरवार के घर तेरहवीं के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे.

बेटा द्वारा बसोर समाज की लड़की से शादी होने के कारण याचिकाकर्ताओं ने उसे स्वतंत्र रूप से कार्यक्रम में शामिल नहीं होने दिया. उसे सिर्फ खाना खाने की अनुमति थी. बेटे व पुत्रवधू को खाना खाने की अनुमति नहीं थी. खुद को अपमानित महसूस करते हुए कामता ने आत्महत्या कर ली. याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि आत्महत्या के पूर्व कामता ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था. इसके अलावा खुद को अपमानित महसूस करने के संबंध में किसी से कुछ नहीं कहा था. आवश्यक तथ्यों के बिना ही उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया और न्यायालय ने चार्ज फ्रेम कर दिए.

शख्स को आत्महत्या के लिए उकसाने के नहीं थे आवश्यक तथ्य

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि परिजनों के बयान व धारणा के आधार पर आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया था. प्रकरण में आत्महत्या के लिए उकसाने के कोई आवश्यक तथ्य नहीं थे. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए एकलपीठ ने एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के आदेश जारी किए हैं.

Last Updated : Nov 24, 2024, 9:18 PM IST
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