नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव से पहले एक बार फिर अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले संपत्ति मालिकों को मालिकाना हक (प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री) देने की प्रक्रिया शुरू करने का उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आदेश दिए. दरअसल उपराज्यपाल ने पीएम उदय योजना (जिसके तहत अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों को उनकी संपत्ति का मालिकाना हक देने) के संबंध हैं, इसके तहत कार्रवाई में तेजी लाने के आदेश दिए हैं.
शहरी मामलों के जानकार व टाउन प्लानर एके जैन कहते हैं; चुनाव से ठीक पहले इस योजना में तेज़ी डीडीए, दिल्ली सरकार, एमसीडी व अन्य संबंधित एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाता है. क्योंकि केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत डीडीए को वर्ष 2019 में ही काम शुरू करने का आदेश दिया था. लेकिन बीते पांच वर्षों में अभी तक अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 25 हज़ार लोगों को ही इसका लाभ मिला है. जबकि इनकी तादात 40 लाख के आसपास है.
पांच साल पहले केंद्र सरकार की पीएम उदय योजना के तहत अनधिकृत कॉलोनी में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देने का काम शुरू किया गया था. इस काम में तेजी आई होती तो दिल्ली में 1700 से अधिक अनधिकृत कॉलोनी में रहने वाले लोगों को संपत्ति की मालिकाना हक मिल जाता. ऐसा होने से उन्हें बैंकों से लोन लेने में भी आसानी होती. पीएम उदय योजना दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनी में रहने वाले 40 लाख से ज्यादा लोगों को संपत्ति का अधिकार देती है. इस योजना के तहत अवैध कॉलोनियों के निवासी मालिकाना हक मिलने के बाद अपनी संपत्तियों को कानूनी रूप से बेच और खरीद सकते हैं. वे बैंकों से भी लोन ले सकते हैं. इस योजना के तहत रजिस्ट्रेशन और आवेदन करना पूरी तरह मुफ्त है. डीडीए के पीएम उदय वेबसाइट पर जाकर अपनी संपत्ति का रजिस्टर्ड करने के लिए आवेदन किया जा सकता है.
वहीं, एमसीडी निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष व राजनीतिक विश्लेषक जगदीश ममगाई ने कहा कि, दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की बजाए पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव, 2019 में केन्द्र सरकार ने अनधिकृत कॉलोनी के निवासियों की संपत्ति के स्वामित्व पर सवाल उठा. उन्हें इसके लिए शुल्क के साथ आवेदन करने का दबाब बनाया. 5 साल में लगभग 12.5 लाख संपत्ति मालिकों में से अधिकतर ने इसे स्वीकार नहीं किया. क्योंकि 1218 कालोनियां तो निजी जमीन पर बनी हैं और वहाँ रहने वाले संपत्ति के स्वामी ही हैं, काफी के पास रजिस्ट्री है तो कईयों के पास पॉवर ऑफ अटार्नी है. जिसके लिए सर्किल रेट के आधार पर राजस्व विभाग को शुल्क जमा कराया गया है.
जगदीश ममगाई ने बताया कि अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लाखों लोगों के गले से स्वामित्व लेने की बात नहीं जमी, इतने सालों में मात्र 25 हजार लोगों ने ही स्वामित्व लिया. स्पष्ट है अनधिकृत कॉलोनियों के निवासी अपनी कॉलोनियों को नियमित कराना चाहते हैं. जिसका वायदा 1993 से बीजेपी करती रही है, यहां तक की बीजेपी के 2014 के घोषणा पत्र में भी मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर दिल्ली की सभी अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का वायदा किया गया, साढ़े दस साल से मोदी जी प्रधानमंत्री हैं पर अनधिकृत कॉलोनियां नियमित नहीं हुई.
उन्होंने बताया कि कॉलोनियों को नियमित करने की बजाए उपराज्यपाल स्वामित्व की खारिज प्रक्रिया की तरफ ध्यान भटका रहे हैं, कैंप पहले भी लगे, प्रक्रिया पहले भी हुई. यही उपराज्यपाल दिल्ली मास्टर प्लान-2041 (प्रारुप) में पारित करते हैं कि दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा अनधिकृत कॉलोनियां, निर्माण की खराब गुणवत्ता और उच्च निर्मित घनत्व के कारण असुरक्षित है. एमपीडी 2041 (प्रारुप) में अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव ही नहीं है. हर बार जब चुनाव आता है, भारत सरकार द्वारा अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा उठाया जाता है फिर 5 साल तक चुप्पी.
दिल्ली सरकार की योजना विभाग की आंकड़ों के अनुसार, राजधानी में वर्ष 1983 में केन्द्र सरकार द्वारा नियमन के लिए प्रस्तावित 607 अनधिकृत कॉलोनियों की सूची अब 1797 पहुंच गई है. पुरानी कॉलोनी नियमित नहीं की गई, अवैद्य निर्माण निरंतर जारी है. अनधिकृत कॉलोनियों पर लटकी टूटने की तलवार खत्म करने हेतु निजी कृषि भूमि पर निर्मित 1218 कॉलोनियों को नियमित किया जाए, विकास शुल्क के माध्यम से प्राप्त धनराशि से यहां सीवर व पानी निकासी ड्रेन की व्यवस्था की जाए. लगभग 300 कॉलोनी डीडीए, एमसीडी, स्लम, रेलवे आदि की सरकारी जमीन पर बसी हैं, इनसे संबंधित निकाय भूमि का मूल्य वसूल उन्हें मालिकाना हक दे, ताकि भारत सरकार इन्हें भी नियमित कर सके. रिज हरित क्षेत्र में बसी कॉलोनियों को नियमित नहीं किया जा सकता है तो उन्हें स्थानांतरित कर रिज क्षेत्र को पुनः बहाल किया जाए.
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