रायपुर : असम से लाए गए वन भैंसों पर हुए खर्च के मुद्दे पर घमासान मच चुका है. इस राशि को लेकर वन विभाग और पशु प्रेमियों में ठन गई है. इस बीच वन विभाग ने एक विज्ञप्ति जारी करते हुए वन भैंसों के खान-पान और रख रखाव पर खर्च की गई राशि के आवंटन को गलत बताया है. उनका दावा है कि वन भैंसों के रखरखाव और खानपान पर खर्च किए जाने के जो आंकड़े दिए गए हैं वह सही नहीं है. वन विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए असम राज्य से 01 नर एवं 05 मादा वन भैंसों को लाया गया था. इसे छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण्य के दस नंबर बाड़े में रखा गया था.
वन भैंसों पर कितना किया गया खर्च : मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2023-24 में 40 लाख रुपये का चना, खरी, चुनी, पैरा कुट्टी, दलिया, घास के लिए राशि जारी किया जाना बताया गया है. जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में 25 लाख आबंटन प्राप्त हुआ था, जिसमें वन भैंसों के भोजन, चारा व्यवस्था, आवश्यक दवाइयां एवं अन्य रखरखाव का कार्य किया गया है. इसके अलावा वन भैंसों के खान पान पर 20 लाख रुपये खर्च करने की बात सामने आई है.
वन भैंसों को पानी पिलाने में खर्चे साढ़े चार लाख : इसके अलावा वन भैंसों को पानी पिलाने की व्यवस्था के लिए 4,56,580 रुपए का बजट देना बताया गया है. जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 में पेयजल व्यवस्था के लिए मानस राष्ट्रीय उद्यान के मांग अनुसार असम अन्तर्गत 2 HP सोलर पम्प एवं बोर के लिए संचालक मानस राष्ट्रीय उद्यान को 4 लाख 59 हजार की राशि दी गई. वन विभाग ने इन सारे खर्चों को गलत बताया है.
एक ही विभाग से मिली दो अलग जानकारी : वन विभाग की ओर से दी गई सफाई को पशु प्रेमी नितिन सिंघवी ने सिरे से नकार दिया. उनका कहना है कि इन वन भैंसों के रखरखाव और खान-पान को लेकर सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया था. इसके बावजूद विभाग ने जानकारी नहीं दी. बाद में प्रथम अपील के तहत उन्हें यह जानकारी मुहैया कराई गई है, जिसे उनके द्वारा सार्वजनिक किया गया है. एक ही विभाग से दो अलग-अलग जानकारी आ रही है, जो सवाल खड़े करती है.
''जिन वन भैसों की वंश वृद्धि के लिए यह राशि खर्च की गई है, वह संभव ही नहीं है , क्योंकि छत्तीसगढ़ का नर वन भैसा काफी वृद्ध हो चुका है और ऐसे में असम से ले गए मादा वन भैसों से वंश वृद्धि संभव नहीं है. उसके बावजूद लगातार लाखों रुपए इस पर खर्च किए गए. इस बात की जानकारी वन विभाग की ओर से विज्ञप्ति में नहीं दी गई है.'' नितिन सिंघवी,पशु प्रेमी
वन भैंसों को वापस असम में छोड़ने की मांग: सिंघवी ने वन विभाग पर एक और सवाल दागते हुए पूछा है कि जब साल 2019-20 में असम से 6 वन भैंसे लाने की डील हुई थी तो सिर्फ दो वन भैंसे को ही लेकर क्यों आए. फिर साल 2023 में 4 और वैन भैंसे लेकर आए. इसे लाने के लिए दोबारा लाखों रुपए खर्च किए गए. नितिन सिंघवी ने वन विभाग से मांग की है कि असम से लाए गए वन भैंसों को वापस असम में छोड़ दिया जाए, जिससे वह अपने मूल वातावरण में रह सकें. क्योंकि छत्तीसगढ़ का वातावरण उनके लिए अनुकूल नहीं है और ऐसे में आजीवन इन वन भैसों को छत्तीसगढ़ में बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता.
वन विभाग ने नहीं दिया जवाब : वहीं जब इस पूरे मामले को लेकर जब ईटीवी भारत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी का पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन किया तो पहली बार उन्होंने फोन उठाया , लेकिन ईटीवी भारत से बोल रहा हूं परिचय देने के बाद तुरंत फोन काट दिया. इसके बाद कई बार फोन लगाने के बाद भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
नितिन सिंघवी के द्वारा सूचना के अधिकार तहत मांगी गई जानकारी के अनुसार, वन विभाग की ओर से असम से बारनवापारा अभ्यारण्य में साल 2020 में ढाई साल के दो सब एडल्ट वन भैंसों को लाया गया था. इन वन भैंसों को असम के मानस टाइगर रिज़र्व से पकड़ने के बाद दो माह वहां बाड़े में रखा गया, इनमें एक नर और एक मादा वन भैंसा शामिल है. वहां पानी पिलाने की व्यवस्था के लिए चार लाख 4,56,580 रुपए का बजट दिया गया. जब ये वन भैंसे बारनवापारा लाए गए, तब उनके लिए रायपुर से 6 नए कूलर भिजवाए गए. निर्णय लिया गया कि तापमान नियंत्रित न हो तो एसी लगाया जाए, ग्रीन नेट भी लगाई गई.
इतनी सारी कवायद करने के बाद भी वन भैसों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई. अब लगातार वन्य प्रेमी इस तरह के खर्चों को लेकर वन विभाग के ऊपर निशाना साध रहे हैं. अब देखना होगा कि इस मामले में वन विभाग की तरफ से क्या प्रतिक्रिया आती है.