रांची: मतदाता को अगर अपने क्षेत्र में उतरे कोई भी प्रत्याशी पसंद न आए तो वह नोटा (NOTA) का बटन दबा सकता है. EVM में प्रत्याशियों के नाम वाले बटन में सबसे नीचे नोटा का बटन होता है. जिसका मतलब होता है "None Of The Above (NOTA)" यानि जो उम्मीदवार लोकसभा या विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं उनमें से कोई भी नहीं.
भारत निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में देशभर में करीब 65 लाख लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया. वहीं, झारखंड में यह आंकड़ा करीब 01 लाख 85 हजार था.
2014 लोकसभा चुनाव में झारखंड के 14 लोकसभा सीट पर हुए मतदान के दौरान 01 लाख 90 हजार 907 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. आंकड़ें बताते हैं कि राज्य के कुछ लोकसभा सीटों पर उतरे प्रत्याशियों को लेकर निराशा का भाव इतना ज्यादा था कि नोटा का आंकड़ा 31 हजार को भी पार कर गया था.
झारखंड की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते हैं कि लोकतंत्र में नोटा का वोट बढ़ना शुभ संकेत नहीं है. यह दर्शाता है कि जनतंत्र में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के मिजाज को नहीं पहचान पा रही है. वरिष्ठ पत्रकार कहते है कि झारखंड में पिछले 2014 की अपेक्षा 2019 में नोटा के मामले में कमी जरूर आयी है लेकिन अभी भी आंकड़ा दो लाख के करीब ही है.
नोटा को लेकर झारखंड के दिलचस्प आंकड़ें
लोकसभा आम चुनाव 2019 में जितने उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे उनमें से 68% के करीब उम्मीदवारों के वोट NOTA को मिले वोट से कम आए. गोड्डा, गिरिडीह, सिंहभूम और खूंटी लोकसभा सीट पर तो 2019 में नोटा तीसरे स्थान पर रहा. वहीं 2014 के लोकसभा आम चुनाव में मैदान में उतरे 240 प्रत्याशियों में से 137 को नोटा से कम वोट मिले. डेटा बताते हैं कि वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में पांच लोकसभा क्षेत्र में ही कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.
राज्य में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मतदाताओं द्वारा नोटा का बटन दबाने को लेकर राज्य की राजनीतिक दलों की क्या सोच है यह जानने के लिए ईटीवी भारत ने झामुमो, कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं से बात की. हैरत की बात यह कि किसी भी दल के नेता, साफ तौर पर यह मानते हुए नहीं दिखे कि आम जनता में नोटा के प्रति आकर्षण, राजनीति में एक नकारात्मक सोच को दर्शाता है और यह कानूनी होते हुए भी लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.
झामुमो ने क्या कहा
झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि यह संवैधानिक होते हुए भी दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि राज्य में नोटा का बटन ज्यादा दबने के पीछे भी भाजपा का हाथ है. जब उनके वोटर को मनपसंद उम्मीदवार नहीं दिखता तो कैडर होने के नाते वह हमें वोट न देकर नोटा को दे देते हैं. झामुमो नेता ने कहा कि इस बार भी धनबाद में जिस तरह का उम्मीदवार भाजपा ने उतारा है उससे साफ है कि वहां के भाजपा के ज्यादातर लोग नोटा ही दबाएंगे.
कांग्रेस ने क्या कहा
वहीं, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता जगदीश साहू ने कहा कि नोटा का अधिकार वोटरों को दिया गया है ,बहुत लोग वर्तमान व्यवस्था से हताश और निराश होते हैं तो नोटा का बटन दबा देते हैं.उन्होंने कहा कि नोटा का कोई असर चुनाव प्रक्रिया या नतीजों पर नहीं पड़ता है. अपनी राय देते हुए जगदीश साहू कहते हैं कि अगर किसी लोकसभा क्षेत्र में 75% वोट नोटा को मिल जाये तो वहां दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए.
बीजेपी ने क्या कहा
वहीं, राज्य के कई लोकसभा सीट पर पिछले दो लोकसभा आम चुनाव में बड़ी संख्या में नोटा को मिले वोट पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेता प्रदीप सिन्हा कहते हैं कि पॉलिटिकल पार्टियां अपने हिसाब से और विनिबिलिटी को ध्यान में रखकर ही उम्मीदवार चयन करती है. अभी न तो देश औरत ही राज्य में NOTA को इतना वोट मिल रहा है कि इसे अलार्मिंग कहा जाए. प्रदीप सिन्हा ने कहा कि अगर "नोटा" को प्रभावी बनाने की बात होती है तो इसके लिए कानून बनाने की जरूरत होगी.
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