जोधपुर: पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के काल में प्रदेश में कई भर्तियों से जुड़े कई प्रकरण सामने आ चुके हैं. लेकिन एक प्रकरण ऐसा भी है, जो अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके गृहनगर में हुआ था. जिसे उनके समय में सरकार ने हर स्तर पर सही बताने का प्रयास कर पर्दा डाला, लेकिन आखिरकार इस घोटाले की जांच भी अब एसओजी को करनी है. राजस्थान हाईकोर्ट ने इस भर्ती को लेकर 2021 में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश के तहत जस्टिस दिनेश मेहता ने इसके आदेश जारी किए हैं. जिसके तहत तीन माह में जांच पूरी कर रिपोर्ट कोर्ट को देनी है.
मामले में पैरवी करते हुए अधिवक्ता दिपेश सिंह बेनिवाल ने कोर्ट को बताया कि तीन साल से चयनित अभ्यर्थियों को वेतन नहीं मिला है. लेकिन किसी तरह की आपत्ति नहीं आई है क्योंकि वे सिर्फ इस अवधि के अनुभव प्रमाण के आधार पर नियमित भर्ती के लिए बोनस अंक प्राप्त करना चाहते हैं. उनका चयन सिर्फ साक्षात्कार में पूरे नंबर देने से हुआ था. जबकि शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता में उनसे अधिक अंक प्राप्त करने वालों को कम नंबर देकर बाहर किया गया. इस पर कोर्ट ने बोनस अंक देने पर भी रोक लगा दी. इस आदेश से पूर्व सीएमएचओ डॉ बलवंत मंडा की मुसिबतें बढ़ गई है. डॉ मंडा पहले से कई अन्य विभागीय कार्यवाही झेल रहे हैं.
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बिना प्रावधान साक्षात्कार करवा किए चयन: कोविड के समय में जोधपुर सीएमएचओ कार्यालय ने जीएनएम नर्स के 50 पद अर्जेंट टेंपरेरी बेस पर भरने के लिए विज्ञप्ति जारी की थी. जिसके एवज में 1400 आवेदन आए थे. तत्कालीन सीएमएचओ डॉ बलवंत मंडा ने जिला स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष कलेक्टर की अध्यक्ष में भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी. इसके लिए शैक्षणिक, तकनीकी योग्यता के साथ-साथ साक्षात्कार के 40 अंक रखे गए.
1092 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार कर 50 का चयन किया गया. लेकिन नियुक्ति से पहले कोविड का असर कम हुआ, तो प्रक्रिया रूक गई. लेकिन 2021 में फिर कोविड की लहर आई तो सरकार से 50 की जगह 100 पदों के लिए अनुमति प्राप्त की गई. इस दौरान ही शासन सचिव ने आदेश जारी कर अभ्यर्थियों के शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता से जुड़ी सूची मांगी, लेकिन डॉ मंडा ने उसकी अनदेखी कर चहेतों को साक्षात्कार में 40-40 अंक देकर नियुक्ति जारी कर दी. जिसकी अनुशंषा निदेशक अरापत्रित स्वास्थ्य विभाग से करवा ली.
बोनस अंक नहीं मिलेंगे, सरकार दे वेतन: न्यायाधीश मेहता ने इस गड़बड़झाले पर आश्चर्य जताते हुए स्पष्ट किया कि चयनित 100 अभ्यर्थियों को अगर किसी तरह का प्रमाण पत्र जारी होता है, तो उस पर अंकित किया जाएगा कि उन्हें इसके लिए बोनस अंक नहीं मिलेंगे. अगर इस दौरान किसी ने बोनस अंक के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की है तो वह भी अब इस याचिका के अधीन होगी. साथ ही अदालत ने सरकार से नर्सिंग कर्मियों को वेतन देने को भी कहा है. साथ में सरकार को इसके लिए भी छूट दी है कि वह चाहे तो इनकी सेवाएं समाप्त कर सकती है.
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शिकायत पर हुई जांच में पाई कमी: इस प्रक्रिया में आरक्षण के प्रावधान को भी अनदेखा किया गया. जबकि निमयानुसार देना था. इसको लेकर मनीष परमार ने शिकायत की तो संयुक्त निदेशक ने जांच कर बताया कि प्रक्रिया में बहुत सारी त्रुटियां हैं. सरकार के निर्देशों की पालना नहीं कर नियुक्तियां दी गई हैं. 2021 में इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई. जिसकी लगातार सुनवाई चल रही थी. इस दौरान ही मंगलवार को जस्टिस मेहता ने मामले की जांच एसओजी करवाने का आदेश जारी दिया.