लखनऊ: हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए इंटरनेट पर सर्च करना गंभीर मानसिक बीमारी है. चिकित्सकीय भाषा में इसे साइबरकॉन्ड्रिया कहते हैं. यह बीमारी उन युवाओं में बेहद आम है, जिनमें मेडिकल संबंधी ज्ञान सौमित और मोबाइल का इस्तेमाल ज्यादा है. यही वजह है, कि मोबाइल का ज्यादा उपयोग करने के बावजूद मेडिकल के छात्रों में यह बीमारी नहीं है. केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है, जिसे इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री में प्रकाशित किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट सेहत संबंधी जानकारी का लोकप्रिय स्रोत है. लेकिन, इस पर बहुत अधिक शोध साइबरकॉन्ड्रिया का कारण बन सकता है. चिकित्सा और गैर चिकित्सा कर्मी जानकारी की अलग-अलग व्याख्या करते हैं, जिससे इस बीमारी की दर अलग-अलग होती है. स्मार्ट फोन की लत इसमें योगदान दे सकती है और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है.
इसे भी पढ़े-दिल की बीमारी और डायबिटीज में रामबाण है नींबू, इसमें गुणों की है खान, जान लीजिए ये जरूरी बातें - health tips
अध्ययन में 18 साल के ऊपर के 1033 प्रतिभागियों (53.1 फीसदी महिलाएं और 46.4 फीसदी पुरुष) को शामिल किया गया. प्रतिभागियों में से 58.5% मेडिकल या पैरामेडिकल स्टूडेंट और 41.5 फीसदी गैर-मेडिकल समूह के युवा थे. देखा गया, कि कुल स्टूडेंट्स में से 4.4 फीसदी को बेहद गंभीर साइबरकॉन्ड्रिया थी. मेडिकल समूह में 57.2 फीसदी और गैर-मेडिकल समूह में 55.9 प्रतिशत में स्मार्ट फोन की लत देखी गई. इसके बावजूद गैर-मेडिकल छात्रों की तुलना में मेडिकल छात्र साइबरकॉन्ड्रिया के कम शिकार मिले.
कोरोना काल के बाद ज्यादा बढ़ी प्रवृत्ति: मनोरोग विभाग के डॉ. सुजीत कर के मुताबिक 12 देशों में 12,262 प्रतिभागियों पर हुए सर्वे से पता चला है, कि 12 से 40 फीसदी तक व्यक्ति चिकित्सा संबंधी जानकारी के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं. अध्ययन में 4.4 फीसदी में साइबरकॉन्ड्रिया की गंभीरता का उच्च स्तर पाया गया. 62.1 प्रतिशत में मध्यम और 33.5 फीसदी में साइबरकॉन्ड्रिया की गंभीरता कम मिली. इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधी खोज करने की प्रवृत्ति कोराना काल के बाद ज्यादा बढ़ी है.