लखनऊ : हिंदू धर्म में पड़ने वाले व्रत और त्योहारों के साल में दो बार पड़ने का मुख्य कारण पंचांग में ग्रहों की स्थिति की सही गणना होना है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि देश में जो भी पंचांग बना रहे हैं, वह सूर्य सिद्धांतीय पर बना हो उसी की गणना सबसे सटीक होती है. जबकि देश में और भी जो पंचांग बना रहे हैं. वह पंचांग बनाने के लिए पुराने समय में जो सारणी तय की गई थी उसके आधार पर बनाए जाते हैं. यही सबसे बड़ा मूल कारण है, जिसके कारण हमारे आज के समय में सारे व्रत और त्योहार साल में दो बार पड़ रहे हैं. यह बात राजधानी लखनऊ में स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय कैंप कार्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सेमिनार में पहुंचे ज्योतिषचार्यों ने कहीं.
सूर्य सिद्धांत पर बने पंचांग सटीकः संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सर्वनारायण झा ने बताया कि जो भी पंचांग हमारे धर्म में बनते हैं, चाहे वह भारत में बना रहे हो, नेपाल में बना हो, मलेशिया में बना हो, या देश दुनिया में कहीं भी बना हो, उनके बनाने का एक ही मूल सिद्धांत है वह सूर्य सिद्धांत ही है. सूर्य सिद्धांत पर बने सारे पंचांग में आपको 30 त्यौहार व्रत आदि की गणना एकदम सटीक मिलेगी. सारणी से बने पंचांग में गलती हो सकती है.
प्रोफेसर सर्वनारायण झा ने कहा कि भारत अनादि काल से वसुधैव कुटुम्बकम् का उद्घोष करता रहा है. भारत और भारत से बाहर भी भारतीय परम्परा का पालन करने वाले या इसमें अनुराग रखने वाले लोग भारतीय धर्मशास्त्र के अनुसार व्रत, पर्व, त्योहार का पालन करते हैं और भारतीय व्रत, पर्व, त्योहार, सूर्य, चन्द्रमा एवं अन्य ग्रह नक्षत्रों के आधार पर मनाए जाते हैं. सूर्य, चन्द्र अन्य ग्रह और नक्षत्र आदि सम्पूर्ण विश्व के लिए एक हैं. इसलिए उससे उत्पन्न स्थिति के कारण व्रत, पर्व, त्योहार एक जैसा होना स्वाभाविक है, उसमें अतिसूक्ष्म अंतर मात्र अक्षांश, देशान्तर आदि के कारण या विभिन्न ऋषि परम्परा के कारण हो सकते हैं, लेकिन बिल्कुल अलग-अलग नहीं हो सकते. इसे एक रूप बनाने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय कार्य कर रहा है. इसमें विश्व के ज्योतिषियों को एक साथ आना चाहिए और इसके लिए काम करना चाहिए. ताकि व्रत, पर्व, त्योहार की तिथियों में विसंगतियां न हों.
इस अवसर पर नेपाल पंचांग निर्णायक विकास समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर श्रीकृष्ण अधिकारी ने कहा कि भारत और नेपाल की संस्कृति और सभ्यता व्रत, पर्व और धर्माचरण एक जैसे हैं. इसलिए दोनों देशों के पंचांग निर्माण का आधार ग्रन्थ और उनके अनुसार व्रत, पर्व समान तिथियों में होना चाहिये और इसके लिए दोनों देशों को सम्मिलित प्रयास करना चाहिए. प्रो. अधिकारी के साथ नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के वाल्मीकि विद्यापीठ ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. धनेश्वर नेपाल और दक्षिण एशियाई ज्योतिष महासंघ के अध्यक्ष लक्ष्मण पंथी भी उपस्थित थे.
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि आज आवश्यकता है कि भारतीय परम्परा के सिद्धान्त ज्योतिष के ग्रन्थों को परिष्कृत किया जाए और सम्पूर्ण देश में पंचांग की परम्परा अलग-अलग हो किन्तु गणित तो एक ही है. कमिन्स महाविद्यालय पुणे के पूर्व प्राचार्य डाॅ. चन्द्रगुप्त श्रीधर वर्णेकर ने कहा कि भारतीय गणित और खगोल विज्ञान आज भी पूर्व की तरह संगत है. इसे आधुनिक तकनीकी के द्वारा समाज में प्रचारित-प्रसारित करने की जरूरत है. प्रो. मदनमोहन पाठक ने कहा कि आज सन्तानोत्पत्ति में बाधा और प्राकृतिक प्रसव नहीं होने में वैवाहिक विलम्ब कारण है. इसलिए उपयुक्त समय पर विवाह करना चाहिए और उसमें ज्योतिषशास्त्र अत्यन्त सहायक हो सकता है. इस पंचांग का निर्माण सूर्य सिद्धान्त, ग्रहलाघव, मकरन्द, केतकर पद्धति से भारत में सैकड़ों वर्षों से होता रहा है. किन्तु अलग-अलग पद्धतियों से गणितीय गणना द्वारा निर्मित पंचागों में वर्तमान काल में असमानता एवं प्रत्यक्ष-वेध के अभाव से व्रत-तिथि-पर्व-उत्सव आदि के अनुष्ठान में समाज में विकट भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
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