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स्मार्ट सिटी पहल: यहां अब मशीन करेगी दाह संस्कार, 300 की जगह 100 किलो लगेगी लकड़ी - Save Forest Campaign in Crematorium

जंगल व वनों को बचाने के लिए समाजिक व पर्यावरण हितैषी संस्थाओं ने एक अनोखी पहल शुरू की है. संस्थाएं नगर निगम के जरिए इंदौर के श्मशान घाटों पर स्वर्ग आरोहण कही जाने वाली दाह संस्कार यूनिट स्थापित करवा रही है. इससे कम लकड़ी में भी अच्छे से दाह संस्कार हो सकेगा, साथ ही प्रदूषण भी नहीं होगा.

INDORE SAVE TREE CREMATION MACHINE
इस मशीन में विधि-विधान से होंगे दाह संस्कार
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 27, 2024, 8:56 PM IST

इस मशीन में विधि-विधान से होंगे दाह संस्कार

इंदौर। देश भर में रोज ही बड़ी संख्या में होने वाले दाह संस्कार वनों के विनाश की बड़ी वजह बन रहे हैं. इसके अलावा मुक्तिधाम और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण एवं धुएं की वजह भी बनते हैं. इस स्थिति से बचने के लिए देश के सबसे स्वच्छ शहर में अब पर्यावरण सम्मत दाह संस्कार की शुरुआत की गई है. दरअसल गुजरात के कुछ शहरों के अलावा अब इंदौर के मुक्तिधाम में भी स्वर्ग आरोहण मशीन इंस्टॉल कर जंगलों को बचाने की अनूठी पहल की जा रही है.

अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों का होता है इस्तेमाल

दरअसल, दाह संस्कार की हिंदू मान्यताओं में शव का अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों से दाह संस्कार किया जाता है. जाहिर है दाह संस्कार करने के लिए देश बल्कि प्रदेश की तमाम नगर निगम और नगर पालिकाओं के अधीन संचालित होने वाले मुक्तिधामों में जंगलों से अथवा लकड़ी के टाल से लकड़ी खरीद कर एकत्र की जाती है. जिसे प्रतिदिन होने वाले दाह संस्कार में उपयोग किया जाता है. आमतौर पर एक शव को जलाने के लिए 300 किलो लकड़ी की जरूरत होती है. इस हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो 500 शवों को जलाने के लिए एक लाख किलो लकड़ी की जरूरत होगी. जो कम से कम 1000 पेड़ काटने के बाद उपलब्ध हो पाती है.

नगर निगम करवा रही स्वर्ग आरोहण मशीन स्थापित

इंदौर शहर में सामाजिक संस्थाएं और पर्यावरण हितैषी संस्थाएं नगर निगम के माध्यम से वनों को बचाने के लिए स्वर्ग आरोहण कही जाने वाली दाह संस्कार की यूनिट स्थापित करवा रही हैं. इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें दाह संस्कार करने के दौरान बेहद कम लकड़ी का उपयोग होता है. सामान्य रूप से दाह संस्कार में 300 किलो लकड़ी लगती है लेकिन इस मशीन में दाह संस्कार करने पर 80 से 100 किलो लकड़ी की उपयोग में आती है.

यहां पढ़ें...

अंतिम यात्रा में भी परेशानियां, खड़ी फसलों के बीच से शव यात्रा निकालने को मजबूर ग्रामीण

एक बुजुर्ग की अंतिम यात्रा में शामिल हुई गाय, श्मशानघाट में चिता के लगाए फेरे, लोग हैरान

मशीन में विधि-विधान से कर सकते है दाह संस्कार

खुले में दाह संस्कार करने से बहुत अधिक धुआं एवं कार्बन डाइऑक्साइड का प्रदूषण होता है. लेकिन इस मशीन में बायोकोल और कंडों का उपयोग भी आसानी से हो जाता है. मशीन को दाह संस्कार के हिसाब से इस तरह बनाया गया है कि उसमें कपाल क्रिया घी लगाना मुखाग्नि देना सब आसानी से कर सकते हैं. इसके अलावा मशीन से दाह संस्कार डेढ़ से 2 घंटे में हो जाता है. इसके बाद अस्थि और राख नीचे रखी ट्रे में सुरक्षित एकत्र हो जाती है.

इस मशीन में विधि-विधान से होंगे दाह संस्कार

इंदौर। देश भर में रोज ही बड़ी संख्या में होने वाले दाह संस्कार वनों के विनाश की बड़ी वजह बन रहे हैं. इसके अलावा मुक्तिधाम और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण एवं धुएं की वजह भी बनते हैं. इस स्थिति से बचने के लिए देश के सबसे स्वच्छ शहर में अब पर्यावरण सम्मत दाह संस्कार की शुरुआत की गई है. दरअसल गुजरात के कुछ शहरों के अलावा अब इंदौर के मुक्तिधाम में भी स्वर्ग आरोहण मशीन इंस्टॉल कर जंगलों को बचाने की अनूठी पहल की जा रही है.

अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों का होता है इस्तेमाल

दरअसल, दाह संस्कार की हिंदू मान्यताओं में शव का अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों से दाह संस्कार किया जाता है. जाहिर है दाह संस्कार करने के लिए देश बल्कि प्रदेश की तमाम नगर निगम और नगर पालिकाओं के अधीन संचालित होने वाले मुक्तिधामों में जंगलों से अथवा लकड़ी के टाल से लकड़ी खरीद कर एकत्र की जाती है. जिसे प्रतिदिन होने वाले दाह संस्कार में उपयोग किया जाता है. आमतौर पर एक शव को जलाने के लिए 300 किलो लकड़ी की जरूरत होती है. इस हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो 500 शवों को जलाने के लिए एक लाख किलो लकड़ी की जरूरत होगी. जो कम से कम 1000 पेड़ काटने के बाद उपलब्ध हो पाती है.

नगर निगम करवा रही स्वर्ग आरोहण मशीन स्थापित

इंदौर शहर में सामाजिक संस्थाएं और पर्यावरण हितैषी संस्थाएं नगर निगम के माध्यम से वनों को बचाने के लिए स्वर्ग आरोहण कही जाने वाली दाह संस्कार की यूनिट स्थापित करवा रही हैं. इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें दाह संस्कार करने के दौरान बेहद कम लकड़ी का उपयोग होता है. सामान्य रूप से दाह संस्कार में 300 किलो लकड़ी लगती है लेकिन इस मशीन में दाह संस्कार करने पर 80 से 100 किलो लकड़ी की उपयोग में आती है.

यहां पढ़ें...

अंतिम यात्रा में भी परेशानियां, खड़ी फसलों के बीच से शव यात्रा निकालने को मजबूर ग्रामीण

एक बुजुर्ग की अंतिम यात्रा में शामिल हुई गाय, श्मशानघाट में चिता के लगाए फेरे, लोग हैरान

मशीन में विधि-विधान से कर सकते है दाह संस्कार

खुले में दाह संस्कार करने से बहुत अधिक धुआं एवं कार्बन डाइऑक्साइड का प्रदूषण होता है. लेकिन इस मशीन में बायोकोल और कंडों का उपयोग भी आसानी से हो जाता है. मशीन को दाह संस्कार के हिसाब से इस तरह बनाया गया है कि उसमें कपाल क्रिया घी लगाना मुखाग्नि देना सब आसानी से कर सकते हैं. इसके अलावा मशीन से दाह संस्कार डेढ़ से 2 घंटे में हो जाता है. इसके बाद अस्थि और राख नीचे रखी ट्रे में सुरक्षित एकत्र हो जाती है.

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