इंदौर: आजकल चाय-कॉफी या कोई गर्म पेय पदार्थ पीने के लिए डिस्पोजेबल कप का अंधाधुंध हो रहा है. प्लास्टिक के वस्तुओं में लगातार खाना-पीना आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है. इस बारे में पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य के जानकारों द्वारा जागरुकता फैलाने का असर होता दिख रहा है. चाय-कॉफी पीने के लिए लोग अब प्लास्टिक कप से बचने लगे हैं. प्लास्टिक कप के विकल्प के रूप में मिट्टी के बर्तन का चलन बढ़ने लगा है. अब चाय-कॉफी पीने के लिए लोग मिट्टी से बने कुल्हड़ का इस्तेमाल करने लगे हैं. कुल्हड़ के बढ़ते चलने से कई युवा इसका स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं और खासा मुनाफा कमा रहे हैं. बेहद कम लागत में शुरू होने वाला ये व्यवसाय आपकी आर्थिक सेहत सुधारने में मददगार साबित हो सकता है.
चाय और कॉफी के स्टार्टअप में कुल्हड़
जब से चाय और कॉफी के स्टार्टअप शुरू हुए तो कुल्हड़ का चलने बढ़ने लगा है. इन चाय व कॉफी के आधुनिक स्टॉल्स पर आपको प्लास्टिक के कप कहीं नहीं दिखाई देंगे. इनकी जगह कुल्हड़ सजाकर रखे जाते हैं. इन स्टॉल्स पर यूथ की भारी भीड़ उमड़ती है. कुल्हड़ के बढ़ते चलन ने कारीगरों की तो जैसी जिंदगी ही बदली. कुछ साल पहले तक इन कारीगरों के पास केवल त्योहारों खासकर दीपावली के आसपास या गर्मी में मिट्टी के घड़े बनाने का काम होता था, वहीं अब इन कारीगरों के पास पर्याप्त काम आने लगा है. क्योंकि कुल्हड़ की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है. अब हालत ये है कि इनका पूरा परिवार कुल्हड़ बनाने में व्यस्त रहने लगा है. साथ ही आर्थिक रूप से भी बड़ी मदद मिली है.
कुल्हड़ की मांग बढ़ी तो मिट्टी के गिलास भी बनने लगे
कुल्हड़ की बढ़ती मांग को देखते हुए कारीगरों ने मिट्टी के गिलास भी बनाने शुरू कर दिए हैं. शहरों को स्वच्छ रखने, पर्यावरण संरक्षण के साथ ही कुल्हड़ में चाय-कॉफी पीना अब स्टाइलिश माना जाने लगा है. खास बात ये है कि इसकी देखादेखी अब युवा मिट्टी के बर्तन का बिजनेस करने में आगे बढ़ चुके हैं. ये युवा एक प्रकार से स्टार्टअप चालू कर रहे हैं. थोड़ी सी पूंजी यानी 10 से 20 हजार रुपये लगाकर इसका बिजनेस शुरू किया जा सकता है. इसका बिजनेस मॉडल भी दो प्रकार का है. पहला तरीका ये है कि कुल्हड़ की मैन्युफैक्चरिंग करके और दूसरा रास्ता है कुल्हड़ को कारीगरों से खरीदकर आगे सप्लाई करना. कई युवा दूसरे तरीके को अपना रहे हैं.
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बड़े शहरों अलावा अब कस्बों में भी कुल्हड़
मध्यप्रदेश का शायद ही कोई शहर और कस्बा हो जहां अब मिट्टी के बर्तन का चलन नहीं बढ़ा हो. हालांकि अभी इनका चलन बड़े शहरों में ज्यादा दिख रहा है. इंदौर के साथ ही भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन और रीवा में कई चाय-कॉफी के स्टॉल्स पर आपको कुल्हड़ तरीके से सजे मिलेंगे. कुल्हड़ के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए कारीगरों ने मिट्टी के गिलास बनाने भी शुरू कर दिए हैं. इनका उपयोग गर्मी के मौसम में लस्सी और छाछ पीने भी होने लगा है. ठंड के मौसम में गर्म दूध भी मिट्टी के गिलास में दिया जाने लगा है.