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यूपी की इस हवेली में अंग्रेजों ने 80 राजपूतों को दी थी सामूहिक फांसी, बच्चों और बुजुर्गों के साथ भी की थी हैवानियत - Independence Day 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 15, 2024, 8:05 AM IST

मथुरा के अड़ींग में आज भी राजपूतों की वीरता की कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं. अंग्रेजों ने देश की आजादी के लिए आवाज उठाने वालों को हमेशा कुचलने का काम किया. यह पुरानी हवेली आज भी अंग्रेजों की जुल्म की याद दिलाती है.

इसी हवेली में दी गई थी सामूहिक फांसी.
इसी हवेली में दी गई थी सामूहिक फांसी. (Photo Credit; ETV Bharat)
हवेली आज भी दिलाती है शहादत की याद. (Video Credit; ETV Bharat)

मथुरा : देश को आजाद कराने के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान दे दी. मथुरा के भी कई सेनानियों ने अपना बलिदान दिया. उनकी शौर्य गाथा आज भी लोगों के दिलों में जोश भरने का काम करती है. जनपद मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गोवर्धन रोड स्थित अड़ींग कस्बे में पुरानी हवेली इसकी गवाह है. इसे राजा फौदामल का महल कहा जाता है. ब्रिटिश शासनकाल में 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने के आरोप में 80 राजपूतों को यहां सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई थी. इनमें कई बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे शामिल थे.

1857 की क्रांति में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की हत्या के बाद राजपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. राजपूत क्रांतिकारी अंग्रेज अफसरों की हत्या करके फरार हो जाते थे. अंग्रेजों की हत्या से बौखलाए ब्रिटिश हुकूमत ने अड़ींग जिसे उस समय सदर तहसील का दर्जा मिला था, वहां सुलह करने के लिए राजपूतों को एकजुट किया.अड़ींग में डुगडुगी बजाकर राजपूतों को एकजुट किया गया था.

सदर तहसील का खजाने लूटने का लगाया फर्जी आरोप : 1857 में ही मध्य जून में एक साथ 80 राजपूतों को हवेली में सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई थी. इस घटना ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा को हिलाकर रख दिया. राजपूतों को सामूहिक फांसी देने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चारों तरफ आवाज बुलंद होने लगी. अंग्रेजी हुकुमत ने राजपूतों पर सदर तहसील का खजाना लूटने का आरोप लगाया. हालांकि उस दौरान खजाने में मात्र 50 रुपये थे. इस पर हाई कमान ने ब्रिटिश अफसरों को दंडित करते हुए 1868 में सदर तहसील का दर्जा समाप्त कर दिया.

वरिष्ठ इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि यूपी का झांसी, मध्य प्रदेश का ग्वालियर, राजस्थान के भरतपुर के अलावा पंजाब-हरियाणा को भी जाट राजपूतों का गढ़ माना जाता था. क्रांतिकारियों से आरपार की लड़ाई लड़ने के लिए रणनीति तैयार की जाती थी. रात की अंधेरों में महल के अंदर एकजुटता के साथ आवाज बुलंद की जाती थी. उस दौरान क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाता था.

अड़ींग कस्बे में था राजा फौदामल का महल : वरिष्ठ इतिहासकार ने बताया कि भरतपुर के राजा सूरजमल की विरासत कई राज्यों तक फैली थी. राजा सूरजमल की मृत्यु होने के बाद राजा फौदामल ने उनकी विरासत संभाली. ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई बार आवाज उठाई गई, लेकिन तानाशाह अंग्रेजी हुकुमत ने लोगों पर बंदिशें लगाकर आवाज को दबा दिया. राजा फौदामल का महल क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहां रणनीति तैयार की जाती थी.

हवेली में भड़कती रही आंदोलन की चिंगारी : वरिष्ठ इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत कई बार बृज क्षेत्र के राजाओं पर भी अपना अंकुश लगाने का दांव चलती रही. कुछ राजा ब्रिटिश हुकूमत के अधीन हो गए. इसके बावजूद राजा फौदामल ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की. अड़ींग की पुरानी हवेली में समय-समय पर विरोध की चिंगारी भड़कती रही. इसी से गुस्साए अंग्रेजों ने एक साथ इतने लोगों को फांसी देकर लोगों की आवाज को दबाने का काम किया. यह हवेली अब एएसआई के अधीन है.

यह भी पढ़ें : नेताजी सुभाष चंद्र के सामने आगरा के युवाओं ने खून से लिखा था 'जय हिंद', पढ़ें आजादी के मतवालों की रोचक कहानी

हवेली आज भी दिलाती है शहादत की याद. (Video Credit; ETV Bharat)

मथुरा : देश को आजाद कराने के लिए कई वीर सपूतों ने अपनी जान दे दी. मथुरा के भी कई सेनानियों ने अपना बलिदान दिया. उनकी शौर्य गाथा आज भी लोगों के दिलों में जोश भरने का काम करती है. जनपद मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गोवर्धन रोड स्थित अड़ींग कस्बे में पुरानी हवेली इसकी गवाह है. इसे राजा फौदामल का महल कहा जाता है. ब्रिटिश शासनकाल में 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने के आरोप में 80 राजपूतों को यहां सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई थी. इनमें कई बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे शामिल थे.

1857 की क्रांति में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की हत्या के बाद राजपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. राजपूत क्रांतिकारी अंग्रेज अफसरों की हत्या करके फरार हो जाते थे. अंग्रेजों की हत्या से बौखलाए ब्रिटिश हुकूमत ने अड़ींग जिसे उस समय सदर तहसील का दर्जा मिला था, वहां सुलह करने के लिए राजपूतों को एकजुट किया.अड़ींग में डुगडुगी बजाकर राजपूतों को एकजुट किया गया था.

सदर तहसील का खजाने लूटने का लगाया फर्जी आरोप : 1857 में ही मध्य जून में एक साथ 80 राजपूतों को हवेली में सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई थी. इस घटना ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा को हिलाकर रख दिया. राजपूतों को सामूहिक फांसी देने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चारों तरफ आवाज बुलंद होने लगी. अंग्रेजी हुकुमत ने राजपूतों पर सदर तहसील का खजाना लूटने का आरोप लगाया. हालांकि उस दौरान खजाने में मात्र 50 रुपये थे. इस पर हाई कमान ने ब्रिटिश अफसरों को दंडित करते हुए 1868 में सदर तहसील का दर्जा समाप्त कर दिया.

वरिष्ठ इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि यूपी का झांसी, मध्य प्रदेश का ग्वालियर, राजस्थान के भरतपुर के अलावा पंजाब-हरियाणा को भी जाट राजपूतों का गढ़ माना जाता था. क्रांतिकारियों से आरपार की लड़ाई लड़ने के लिए रणनीति तैयार की जाती थी. रात की अंधेरों में महल के अंदर एकजुटता के साथ आवाज बुलंद की जाती थी. उस दौरान क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाता था.

अड़ींग कस्बे में था राजा फौदामल का महल : वरिष्ठ इतिहासकार ने बताया कि भरतपुर के राजा सूरजमल की विरासत कई राज्यों तक फैली थी. राजा सूरजमल की मृत्यु होने के बाद राजा फौदामल ने उनकी विरासत संभाली. ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई बार आवाज उठाई गई, लेकिन तानाशाह अंग्रेजी हुकुमत ने लोगों पर बंदिशें लगाकर आवाज को दबा दिया. राजा फौदामल का महल क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहां रणनीति तैयार की जाती थी.

हवेली में भड़कती रही आंदोलन की चिंगारी : वरिष्ठ इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत कई बार बृज क्षेत्र के राजाओं पर भी अपना अंकुश लगाने का दांव चलती रही. कुछ राजा ब्रिटिश हुकूमत के अधीन हो गए. इसके बावजूद राजा फौदामल ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की. अड़ींग की पुरानी हवेली में समय-समय पर विरोध की चिंगारी भड़कती रही. इसी से गुस्साए अंग्रेजों ने एक साथ इतने लोगों को फांसी देकर लोगों की आवाज को दबाने का काम किया. यह हवेली अब एएसआई के अधीन है.

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