बाड़मेर. देश में जहां एक तरफ आधुनिक शिक्षा को लेकर डिजिटल बोर्ड पर पढ़ाई की बड़ी-बड़ी बातें हो रही है, तो वहीं इस मुल्क में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां के लोग आजादी के 77 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं के मोहताज हैं. राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिला शिक्षा को लेकर मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है. यहां बिजली, पानी व टॉयलेट की बातें तो छोड़िए, इलाके के एक सरकारी स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए भवन तक नहीं है. जिले के शिवपुरा गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में एक छपरे में सरकारी स्कूल संचालित हो रही है. बच्चे अपने सुनहरे भविष्य के लिए इस भीषण गर्मी में स्कूल में अध्ययन को मजबूर है.
दरअसल बाड़मेर जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर गुड़ीसर ग्राम पंचायत के शिवपुरा गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय एक छप्परे ( टिन शेड ) के नीचे चल रहा है. यहां न कक्षा कक्ष है और न ही शौचालय और ना ही पानी पीने का नल है. भवन नहीं होने से मिड-डे मिल का पोषाहार को भी पास की ढाणियों से पका कर लाना पड़ता है. स्कूल में 30 बच्चों का नामांकन है. छुट्टी के बाद बच्चे कुर्सी और दरी पास के घरों में रखकर आते हैं. दूसरे दिन वापस लेकर आ जाते हैं. यहां दो शिक्षिकाएं है. स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से बच्चों के लिए छप्पर बनाया गया है. यहां चारदीवारी नहीं है फिर भी गेट लगाया हुआ है, ताकि लगे कि यह सरकारी स्कूल है. स्कूल खोलने के लिए भवन स्वीकृति दो साल पहले मिली थी लेकिन अब तक स्कूल के लिए भवन नहीं बन पाया है.
40 डिग्री के तापमान में 5 घंटे काटने को विवश छात्र : करीब 40 डिग्री से अधिक के तापमान के बीच बच्चे यहां पढ़ने आते हैं. रेत भी इतनी गर्म कि जिससे खाना बन जाए. इस तपते मौसम में विद्यार्थी बिना भवन के यहां पढ़ने को मजबूर है. गर्मी और लू में बच्चें पसीने से भीग जाते हैं, लेकिन सुनहरे भविष्य के लिए 5 घंटे यहां काटने को विवश हैं. आजादी के इतने सालों बाद भी ऐसी तस्वीरें सरकारों के मुंह पर कड़ा तमाचा है जो शिक्षा के नाम पर बड़ी-बड़ी योजना और बड़े-बड़े दावे करती है. लेकिन हकीकत तो यहां कुछ और ही बयां हो रही है.
नहीं सुनते प्रशासनिक अधिकारी : ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल भवन नहीं होने की वजह से गर्मी और धूप में बच्चे परेशान हो रहे है. यहां किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है. एक बुजुर्ग महिला ने कहा है कि हम तो अनपढ़ रह गए लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ लिख जाए. गांव में स्कूल है पर छाया, पानी आदि की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. एक बुजुर्ग ने बताया कि 2 सालों से स्कूल इसी तरह छपरे में चल रहा है. कुछ महीनों के लिए एक कमरे में स्कूल संचालित हुई थी, लेकिन मकान मालिक ने मरम्मत का कार्य करवाने का बोलकर स्कूल को खाली करवा दिया, जिसके बाद से यही पर खुले आसमान तले स्कूल संचालित है. ग्रामीणों ने मिलकर अस्थाई छपरा बनाया है ताकि बच्चों को कुछ राहत मिल सके लेकिन गर्मी में बच्चे बहुत परेशान हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि विद्यालय के भवन की मांग को लेकर कई बार प्रशासन के अधिकारियों को अवगत करवाया गया है लेकिन कोई सुनने वाला नही है.
दो शिक्षिकाएं पोस्टेड : स्कूल की अध्यापिका रामू ने बताया कि सितंबर 2023 में इस स्कूल में पोस्टिंग मिली थी. उसके बाद से वो यहीं पोस्टड हैं. यहां दो शिक्षिकाएं हैं. भवन नहीं होने से मिड-डे मिल का पोषाहार भी पास की ढाणियों से पका कर लाना पड़ता है. बच्चों के पीने के लिए पास से पानी की मटकी भरकर लाते हैं.