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पांच तत्वों का प्रतीक है मिट्टी का दीया, दिवाली के दिन इसे जलाने से बरसेगी मंगल और शनि ग्रह की कृपा - DIWALI 2024

दीपों के पर्व दिवाली पर मिट्टी के दीये जलाने की पौराणिक परंपरा है. मिट्टी के दीये जलाने से ग्रह की कृपा बनी रहती है.

DIWALI 2024
दिवाली 2024 (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 21, 2024, 7:47 AM IST

पटना: दीपों के त्योहार दिवाली का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. दिवाली के दिन हर घर दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शास्त्रों में मिट्टी के दीपक को तेज, शौर्य और पराक्रम का प्रतीक माना गया है. जब भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब अध्योध्यावासियों ने मिट्टी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था. दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाने के पीछे धार्मिक महत्व भी है.

क्यों जलाते हैं मिट्टी के दीये?: मिट्टी के दीपक जलाना ना सिर्फ प्रकृति के लिए अनुकूल है, बल्कि इससे सुख-समृद्धि और शांति भी आती है. इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना पंचतत्वों से हुई है. जिसमें जल, वायु, आकाश, अग्नि और भूमि शामिल है. मिट्टी का दीपक भी इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. मिट्टी का दीपक वर्तमान का प्रतीक माना गया है. जबकि उसमें जलने वाली लौ भूतकाल का प्रतीक होती है. जब हम रुई की बाती डालकर दीप प्रज्जवलित करते हैं तो वह आकाश, स्वर्ग और भविष्यकाल का प्रतिनिधित्व करती है.

मिट्टी के दीये का महत्व (ETV Bharat)

दीये का मंगल और शनि ग्रह से है रिश्ता: दीपक की रोशनी शांति का प्रतीक भी मानी जाती है. इसलिए दीपक जलाने से घर में शांति बनी रहती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना गया है. वहीं मंगल को साहस, पराक्रम का प्रतीक माना जाता है. तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है और शनि को न्याय व भाग्य का देवता कहा जाता है. इसलिए दीपक जलाने से मंगल व शनि ग्रह की अनुकूल दृष्टि बनी रहती है. जिससे जीवन में तरक्की, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

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मिट्टी के दीये जलाने की पौराणिक परंपरा (ETV Bharat)

दीपक जलाने की परंपरा: दिवाली के मौके पर घरों की चौखट और मुंडेर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. कई धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. आचार्य विश्वरंजन ने कहा कि दिवाली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है. हालांकि ये प्रकाश उस दीये का होना चाहिए जिसका दिवाली के त्यौहार में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.

"दिवाली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है."-आचार्य विश्वरंजन, आयुर्वेद सह गीता प्रवाचक

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पांच तत्वों का प्रतीक है मिट्टी का दीया (ETV Bharat)

चकाचौंध में पीछे छूट रहे प्राचीन रीति-रिवाज: मिट्टी के दिये बना रहे कुम्हार कृष्ण ने कहा की मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति-रिवाज पीछे छूट रहे हैं. हालांकि मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. दीवाली पर बड़ी मात्रा में दीपक खरीदे जाते हैं. दीपावली आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं. मिट्टी के कलाकार बड़े ही उत्साह के साथ दीये तैयार करते हैं. दीपावली पर भले ही कितने भी इलेक्ट्रिक उपकरण खरीद लें, मगर मिट्टी के दीये का महत्व कभी कम नहीं हो सकता है.

"मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति रिवाज पीछे छूट रहे हैं पर मिट्टी के दीपक का महत्व आज भी है." -कृष्णा, कुम्हार

पढ़ें-Dhanteras 2024 कब है धनतेरस, किस मुहूर्त में पूजन करने से मां लक्ष्मी घर में करती हैं वास, जानें

पटना: दीपों के त्योहार दिवाली का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. दिवाली के दिन हर घर दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शास्त्रों में मिट्टी के दीपक को तेज, शौर्य और पराक्रम का प्रतीक माना गया है. जब भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब अध्योध्यावासियों ने मिट्टी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था. दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाने के पीछे धार्मिक महत्व भी है.

क्यों जलाते हैं मिट्टी के दीये?: मिट्टी के दीपक जलाना ना सिर्फ प्रकृति के लिए अनुकूल है, बल्कि इससे सुख-समृद्धि और शांति भी आती है. इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना पंचतत्वों से हुई है. जिसमें जल, वायु, आकाश, अग्नि और भूमि शामिल है. मिट्टी का दीपक भी इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. मिट्टी का दीपक वर्तमान का प्रतीक माना गया है. जबकि उसमें जलने वाली लौ भूतकाल का प्रतीक होती है. जब हम रुई की बाती डालकर दीप प्रज्जवलित करते हैं तो वह आकाश, स्वर्ग और भविष्यकाल का प्रतिनिधित्व करती है.

मिट्टी के दीये का महत्व (ETV Bharat)

दीये का मंगल और शनि ग्रह से है रिश्ता: दीपक की रोशनी शांति का प्रतीक भी मानी जाती है. इसलिए दीपक जलाने से घर में शांति बनी रहती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना गया है. वहीं मंगल को साहस, पराक्रम का प्रतीक माना जाता है. तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है और शनि को न्याय व भाग्य का देवता कहा जाता है. इसलिए दीपक जलाने से मंगल व शनि ग्रह की अनुकूल दृष्टि बनी रहती है. जिससे जीवन में तरक्की, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

DIWALI 2024
मिट्टी के दीये जलाने की पौराणिक परंपरा (ETV Bharat)

दीपक जलाने की परंपरा: दिवाली के मौके पर घरों की चौखट और मुंडेर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. कई धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. आचार्य विश्वरंजन ने कहा कि दिवाली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है. हालांकि ये प्रकाश उस दीये का होना चाहिए जिसका दिवाली के त्यौहार में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.

"दिवाली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है."-आचार्य विश्वरंजन, आयुर्वेद सह गीता प्रवाचक

DIWALI 2024
पांच तत्वों का प्रतीक है मिट्टी का दीया (ETV Bharat)

चकाचौंध में पीछे छूट रहे प्राचीन रीति-रिवाज: मिट्टी के दिये बना रहे कुम्हार कृष्ण ने कहा की मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति-रिवाज पीछे छूट रहे हैं. हालांकि मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. दीवाली पर बड़ी मात्रा में दीपक खरीदे जाते हैं. दीपावली आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं. मिट्टी के कलाकार बड़े ही उत्साह के साथ दीये तैयार करते हैं. दीपावली पर भले ही कितने भी इलेक्ट्रिक उपकरण खरीद लें, मगर मिट्टी के दीये का महत्व कभी कम नहीं हो सकता है.

"मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे प्राचीन रीति रिवाज पीछे छूट रहे हैं पर मिट्टी के दीपक का महत्व आज भी है." -कृष्णा, कुम्हार

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