बिलासपुर: मामला दिसंबर 2017 का है. जगदलपुर की रहने वाली एक महिला ने दर्द की शिकायत की और अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि उसके पति ने उसकी इच्छा के खिलाफ उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए. जिसकी वजह से उसकी तबीयत खराब हुई. सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान महिला की मौत हो गई. लेकिन मौत से पहले पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया, जिसमें उसने कहा "उसके पति ने जबरन उसके साथ यौन संबंध बनाया, जिसकी वजह से वह बीमार हो गई."
11 दिसंबर, 2017 को कार्यकारी मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज पत्नी के बयान के आधार पर आरोपी पति को गिरफ्तार किया गया. 11 फरवरी, 2019 को जगदलपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट या एफटीसी) ने पति पर धारा 376 (रेप), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत आरोपों में दोषी ठहराया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई.
बाद में व्यक्ति ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए बिलासपुर में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. सुनवाई के दौरान, व्यक्ति के वकील ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता के खिलाफ रिकॉर्ड पर कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत उपलब्ध नहीं है और केवल पीड़िता के बयान के आधार पर, उसके मुवक्किल को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है.
उन्होंने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने दो गवाहों के बयानों पर विचार नहीं किया, जिन्होंने जगदलपुर की अदालत को बताया कि महिला अपनी पहली डिलीवरी के तुरंत बाद बवासीर से पीड़ित थी, जिसके कारण उसे रक्तस्राव होता था और पेट में दर्द होता था. वकील ने ट्रायल कोर्ट द्वारा महिला की मौत के पहले दिए बयान पर भरोसा जताने को संदिग्ध बताया. राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने ट्रायल कोर्ट के विवादित फैसले का समर्थन किया और सजा और सजा के खिलाफ अपील को खारिज करने की प्रार्थना की.
इस मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 19 नवंबर 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिस पर सोमवार को फैसला सुनाया.
न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने जगदलपुर निवासी व्यक्ति को पत्नी के साथ दुष्कर्म और अन्य आरोपों से बरी करते हुए कहा कि एक व्यक्ति अपनी वयस्क पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता. एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा कि यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य रेप नहीं माना जा सकता.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "आईपीसी की धारा 375, 376 और 377 को देखने से यह स्पष्ट है कि धारा 375 आईपीसी की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, धारा 377 आईपीसी के तहत पति और पत्नी के बीच अपराध का कोई स्थान नहीं है और इसलिए दुष्कर्म नहीं माना जा सकता है."
कोर्ट ने ये भी बताया कि साल 2013 में आईपीसी की धारा 375 में संशोधन में अपवाद-2 दिया गया है. जो कहता है कि पति अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन क्रिया करता है तो वह रेप नहीं है. इसलिए, यदि धारा 377 के तहत परिभाषित कोई अप्राकृतिक यौन संबंध पति अपनी (वयस्क) पत्नी के साथ करता है तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता है.
आईपीसी की धारा 375 की परिभाषा के अनुसार, अपराधी को 'पुरुष' के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अपीलकर्ता एक 'पति' है और पीड़ित एक 'महिला' है और यहां वह एक 'पत्नी' है. इसलिए, संशोधन के माध्यम से किए गए निरसन और दोनों धाराओं के बीच विरोधाभास को देखते हुए, पति और पत्नी के बीच अपराध को आईपीसी की धारा 375 के तहत नहीं बनाया जा सकता है." यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है, तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य रेप नहीं कहा जा सकता.
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता है. इसलिए आईपीसी की धारा 304 के तहत केस को विकृत मानते हुए इसे रद्द किया जाता है. न्यायाधीश ने व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसे जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया.
SOURCE- PTI