नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के अस्पतालों में आए दिन मरीजों को इलाज मिलने में हो रही परेशानियों की खबरें आती रहती हैं. किसी मरीज को बेड नहीं मिल पाता, तो किसी को वेंटिलेटर. किसी को ऑपरेशन की तारीख लंबी मिली, तो किसी को एमआरआई-सीटी स्कैन की काफी समय बाद की तारीख मिली. बीते जनवरी में भी ऐसा ही एक वाकया सामने आया. जहां चार अस्पतालों द्वारा एक मरीज को भर्ती न करने के चलते उसकी जान चली गई.
इस घटना के बाद, पिछले करीब एक महीने से दिल्ली सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, टेक्नीशियन और अन्य स्टाफ के खाली पदों को लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है. वहीं अस्पतालों में ऐसे पद बड़ी संख्या में खाली हैं. ऐसे में मरीजों को तुरंत इलाज मिलने में परेशानी होना लाजमी है. इसे लेकर हाल ही में एलजी वीके सक्सेना ने सीएम अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर अस्पतालों में मरीजों को इलाज मिलने में आ रही परेशानियों की तरफ ध्यान आकर्षित कराया था. इसके जवाब में सीएम ने स्वास्थ्य सचिव को जिम्मेदार ठहराते हुए पल्ला झाड़ लिया था.
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वहीं अस्पतालों में पद खाली होने कि अगर जमीनी हकीकत की बात करें, तो छोटे से लेकर बड़े अस्पताल सभी में स्टाफ के पद खाली हैं. फिर चाहे वह दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक हो, जीबी पंत अस्पताल हो, जीटीबी अस्पताल हो, इंदिरा गांधी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल हो, राजीव गांधी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल या दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान. सभी में डॉक्टरों और अन्य स्टाफ के पद खाली पड़े हैं. पिछले दिनों ही दिल्ली हाईकोर्ट ने खाली पदों को लेकर दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. दूसरी तरफ मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में अनुबंध पर 41 पदों पर विभिन्न विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती निकली है, जिनके साक्षात्कार की प्रक्रिया 19 फरवरी से 23 फरवरी तक चलेगी.
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