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दिल्ली की सड़कों पर रोजाना खराब होती हैं 200 से अधिक बसें, गर्मी में और बढ़ेगी समस्या - buses break down in Delhi roads

Bus breakdown In Delhi: सीएनजी की 997 बसें वर्ष 2011 में खरीदी गईं थी, जो 13 साल से अधिक पुरानी हैं. ये बसें निर्धारित 7.50 लाख किमी से अधिक चल चुकी हैं. रोजाना कलस्टर योजना की दर्जनों बसें खराब हो जाती हैं. इससे दिल्ली के यात्रियों को परेशानी होती हैं.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Mar 9, 2024, 4:18 PM IST

दिल्ली की सड़कों पर रोजाना खराब होती हैं 200 से अधिक बसें

नई दिल्ली: दिल्ली में रोजाना 200 से अधिक बसें सड़कों पर चलते हुए खराब हो जाती हैं. इससे न सिर्फ बस में सवार यात्रियों को परेशानी होती है बल्कि जाम भी लगता है. रोजाना दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की ओर से खराब बसों की फोटो डालकर लोगों के लिए एडवाइजरी भी जारी की जाती है. चालकों परिचालकों की मानें तो गर्मी के दिनों में बसों के खराब होने की संख्या बढ़ जाती है. बसें पुरानी हो गई हैं. जब तक इनको बदला नहीं जाएगा तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

जानकारी के अनुसार दिल्ली में कुल बसों की संख्या 7,582 है. इनमें से 1650 इलेक्ट्रिक बसें हैं. कुल 5,932 सीएनजी की बसें हैं. जो दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (डीटीसी) और दिल्ली इंटीग्रेटेड ट्रांजिट मल्टीमोडल सिस्टम (डीआईटीएमएस) की कलस्टर योजना के तहत चलती हैं. डीटीसी में सीएनजी बसें 2011 से पहले खरीदी गईं थी. एक बस करीब 7.50 लाख किलोमीटर चलती है. बसें यह आंकड़ा पार कर चुकी हैं. दिल्ली सरकार फिटनेस कराने के बाद विशेष अनुमति लेकर इन बसों को चला रही है.

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि, "डीटीसी की करीब 200 सीएनजी बसें रोजाना सड़कों पर चलते हुए खराब हो जाती हैं. इससे चालकों परिचालकों को यात्रियों के अपशब्द व ताने सुनने पड़ते हैं. दरअसल बस खराब होने से यात्रा समय से गंतव्य पर नहीं पहुंच पाते हैं. यदि फाल्ट छोटा होता है तो कंट्रोल रूम के कर्मचारियों को सूचना देकर बुलाया जाता है. यदि बस सड़क पर ठीक नहीं हो पाती है तो क्रेन से डिपो के वर्कशाप में ले जाया जाता है. यूनियन के पदाधिकारियों का आरोप है कि बसें खराब होने के बाद उनमें नकली पार्ट्स लगाए जाते हैं. इससे बसें आए दिन खराब हो जाती हैं."

डीआईटीएमएस की 997 बसें 13 साल पुरानी: दिल्ली में डीआईटीएमएस के कलस्टर योजना के तहत 3,300 सीएनजी और 400 इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं. सीएनजी की 997 बसें वर्ष 2011 में खरीदी गईं थी, जो 13 साल से अधिक पुरानी हैं. ये बसें निर्धारित 7.50 लाख किमी से अधिक चल चुकी हैं. रोजाना कलस्टर योजना की दर्जनों बसें खराब हो जाती हैं. इससे दिल्ली के यात्रियों को परेशानी होती हैं.

बस खराब होने पर ट्वीट करती है दिल्ली ट्रैफिक पुलिस: दिल्ली में रोजाना 41 लाख लोक बसों में सफर करते हैं. रास्ते में ही बसों के खराब होने पर यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. यात्री गंतव्य तक पहुंचने में लेट हो जाते हैं. इसके साथ ही सड़क पर बसों के खराब होने से सड़क पर जाम लगता है. राहगीरों को भी परेशानी होती है. बस खराब होने पर जाम लगता है तो दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ट्विटर (एक्स) पर पोस्ट डालकर लोगों को जानकारी देती है, जिससे लोग वैकल्पिक रास्तों का प्रयोग कर जाम से बच सकें. दिल्ली ट्रैफिक पुलिस औसतन चार से पांच पोस्ट रोजाना एक्स पर बस खराब होने की डालती है.

2025 के अंत तक रहेगी यह समस्या: दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री कैलास गहलोत दावा कर चुके हैं कि वर्ष 2025 के अंत तक दिल्ली की सभी पुरानी बसों को रीप्लेस कर दिया जाएगा. उनकी जगह नई बसें शामिल होंगी. दिल्ली में कुल 10480 बसें चलाए जाने का लक्ष्य है. इमें 8000 इलेक्ट्रिक बसें होंगी. अन्य 2480 बसें सीएनजी की होंगी. लगातार दिल्ली के बेड़े में नई बसों को शामिल किया जा रहा है. जैसे-जैसे नई बसें आती जाएंगी, पुरानी बसों का बेड़ा कम होगा और उनके खराब होने से आने वाली समस्या भी कम होगी.

दिल्ली की सड़कों पर रोजाना खराब होती हैं 200 से अधिक बसें

नई दिल्ली: दिल्ली में रोजाना 200 से अधिक बसें सड़कों पर चलते हुए खराब हो जाती हैं. इससे न सिर्फ बस में सवार यात्रियों को परेशानी होती है बल्कि जाम भी लगता है. रोजाना दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की ओर से खराब बसों की फोटो डालकर लोगों के लिए एडवाइजरी भी जारी की जाती है. चालकों परिचालकों की मानें तो गर्मी के दिनों में बसों के खराब होने की संख्या बढ़ जाती है. बसें पुरानी हो गई हैं. जब तक इनको बदला नहीं जाएगा तब तक यह समस्या बनी रहेगी.

जानकारी के अनुसार दिल्ली में कुल बसों की संख्या 7,582 है. इनमें से 1650 इलेक्ट्रिक बसें हैं. कुल 5,932 सीएनजी की बसें हैं. जो दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (डीटीसी) और दिल्ली इंटीग्रेटेड ट्रांजिट मल्टीमोडल सिस्टम (डीआईटीएमएस) की कलस्टर योजना के तहत चलती हैं. डीटीसी में सीएनजी बसें 2011 से पहले खरीदी गईं थी. एक बस करीब 7.50 लाख किलोमीटर चलती है. बसें यह आंकड़ा पार कर चुकी हैं. दिल्ली सरकार फिटनेस कराने के बाद विशेष अनुमति लेकर इन बसों को चला रही है.

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के पदाधिकारियों का कहना है कि, "डीटीसी की करीब 200 सीएनजी बसें रोजाना सड़कों पर चलते हुए खराब हो जाती हैं. इससे चालकों परिचालकों को यात्रियों के अपशब्द व ताने सुनने पड़ते हैं. दरअसल बस खराब होने से यात्रा समय से गंतव्य पर नहीं पहुंच पाते हैं. यदि फाल्ट छोटा होता है तो कंट्रोल रूम के कर्मचारियों को सूचना देकर बुलाया जाता है. यदि बस सड़क पर ठीक नहीं हो पाती है तो क्रेन से डिपो के वर्कशाप में ले जाया जाता है. यूनियन के पदाधिकारियों का आरोप है कि बसें खराब होने के बाद उनमें नकली पार्ट्स लगाए जाते हैं. इससे बसें आए दिन खराब हो जाती हैं."

डीआईटीएमएस की 997 बसें 13 साल पुरानी: दिल्ली में डीआईटीएमएस के कलस्टर योजना के तहत 3,300 सीएनजी और 400 इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं. सीएनजी की 997 बसें वर्ष 2011 में खरीदी गईं थी, जो 13 साल से अधिक पुरानी हैं. ये बसें निर्धारित 7.50 लाख किमी से अधिक चल चुकी हैं. रोजाना कलस्टर योजना की दर्जनों बसें खराब हो जाती हैं. इससे दिल्ली के यात्रियों को परेशानी होती हैं.

बस खराब होने पर ट्वीट करती है दिल्ली ट्रैफिक पुलिस: दिल्ली में रोजाना 41 लाख लोक बसों में सफर करते हैं. रास्ते में ही बसों के खराब होने पर यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. यात्री गंतव्य तक पहुंचने में लेट हो जाते हैं. इसके साथ ही सड़क पर बसों के खराब होने से सड़क पर जाम लगता है. राहगीरों को भी परेशानी होती है. बस खराब होने पर जाम लगता है तो दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ट्विटर (एक्स) पर पोस्ट डालकर लोगों को जानकारी देती है, जिससे लोग वैकल्पिक रास्तों का प्रयोग कर जाम से बच सकें. दिल्ली ट्रैफिक पुलिस औसतन चार से पांच पोस्ट रोजाना एक्स पर बस खराब होने की डालती है.

2025 के अंत तक रहेगी यह समस्या: दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री कैलास गहलोत दावा कर चुके हैं कि वर्ष 2025 के अंत तक दिल्ली की सभी पुरानी बसों को रीप्लेस कर दिया जाएगा. उनकी जगह नई बसें शामिल होंगी. दिल्ली में कुल 10480 बसें चलाए जाने का लक्ष्य है. इमें 8000 इलेक्ट्रिक बसें होंगी. अन्य 2480 बसें सीएनजी की होंगी. लगातार दिल्ली के बेड़े में नई बसों को शामिल किया जा रहा है. जैसे-जैसे नई बसें आती जाएंगी, पुरानी बसों का बेड़ा कम होगा और उनके खराब होने से आने वाली समस्या भी कम होगी.

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