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छत्तीसगढ़ में दिवाली पर क्यों मनाते हैं देवारी और सुरहुत्ती, जानिए इस पर्व की खासियत

छत्तीसगढ़ में दिवाली का पर्व बेहद अलग अंदाज में मनाया जाता है. जानिए देवारी और सुरहुत्ती की कहानी

HOW PEOPLE CELEBRATE DEWARI
देवारी और सुरहुत्ती के बारे में जानिए (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 6 hours ago

रायपुर: छत्तीसगढ़ में दिवाली से पर्वों की धुआंधार शुरूआत होती है. रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा और बस्तर संभाग में अलग अलग तरीकों से दिवाली को मनाया जाता है. कहीं इसे सुरहुत्ती कहा जाता है तो कहीं इसे देवारी के नाम से जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में दशहरा खत्म होते ही लोग दीपावली की तैयारी में जुट जाते हैं. घरों में साफ सफाई की तैयारी शुरू हो जाती है. घरों के रंग रोगन के साथ पुताई का काम भी होता है.

दिवाली और देवारी की तैयारी: घरों की साफ सफाई के साथ दिवाली और देवारी की तैयारी में गांव, अंचल और जिले के लोग जुट जाते हैं. सभी लोग मिलकर हंसी और खुशी के साथ देवारी की तैयारी करते हैं. दिवाली के दिन देवारी मनाई जाती है. दशहरे के बाद से छत्तीसगढ़ के अधिकांश घरों में आकाश दीया जगमगाने लगता है. इसे आगासदिया कहते हैं. दशहरे से दिवाली तक आगासदिया हर घरों के ऊपर जगमगाता है. जिसे घरों के ऊपर बांस पर टंगा जाता है. देवउठनी यानि की तुलसी पूजा के दिन तक इसका उपयोग लोग करते हैं.

दिवाली के दिन मनती है देवारी: दिवाली के दिन छत्तीसगढ़ में देवारी मनाया जाता है. प्रदेश में लोग अपने घरों आंगन में धनतेरस के दिन से दिवाली पर्व मनाने की शुरूआत करते हैं. उसके बाद से दिवाली का आगमन हो जाता है. नरक चौदस यानि की छोटी दिवाली मनाई जाती है. उसके बाद दिवाली का पर्व मनाया जाता है. दीपावली के दिन देवारी यानि की दियारी नाम का पर्व मनाया जाता है. इस गांव में नई फसलों की पूजा होती है. इसके साथ ही मवेशियों की भी पूजा की जाती है. छत्तीसगढ़ के रीति रिवाजों के जानकारों के मुताबिक इस दिन फसलों की शादी भी कराई जाती है.

दिवाली पर सुरहुत्ती पर्व मनाने की परंपरा: छत्तीसगढ़ में दिवाली पर सुरहुत्ती यानि की लक्ष्मी पूजा मनाई जाती है. इस दिन दीयों को पानी से धोया जाता है और उसके बाद दीपोत्सव की तैयारी की जाती है. दीपावली की शाम सबसे पहले तुलसी चौरा से दीये जलाने की परंपरा की शुरुआत होती है. उसके बाद पूरे घर में दिया जलाया जाता है. गांवों में दीप जलाने के बाद सुरहुत्ती यानि की लक्ष्मी पूजा की जाती है. इसके बाद घर में धूमधाम से दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. परिवार के सभी लोग लक्ष्मी जी की मूर्ति के सामने आरती करते हैं. पशुधन और अन्न की भी पूजा इस दौरान की जाती है.

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दिवाली और देवारी की तैयारी: घरों की साफ सफाई के साथ दिवाली और देवारी की तैयारी में गांव, अंचल और जिले के लोग जुट जाते हैं. सभी लोग मिलकर हंसी और खुशी के साथ देवारी की तैयारी करते हैं. दिवाली के दिन देवारी मनाई जाती है. दशहरे के बाद से छत्तीसगढ़ के अधिकांश घरों में आकाश दीया जगमगाने लगता है. इसे आगासदिया कहते हैं. दशहरे से दिवाली तक आगासदिया हर घरों के ऊपर जगमगाता है. जिसे घरों के ऊपर बांस पर टंगा जाता है. देवउठनी यानि की तुलसी पूजा के दिन तक इसका उपयोग लोग करते हैं.

दिवाली के दिन मनती है देवारी: दिवाली के दिन छत्तीसगढ़ में देवारी मनाया जाता है. प्रदेश में लोग अपने घरों आंगन में धनतेरस के दिन से दिवाली पर्व मनाने की शुरूआत करते हैं. उसके बाद से दिवाली का आगमन हो जाता है. नरक चौदस यानि की छोटी दिवाली मनाई जाती है. उसके बाद दिवाली का पर्व मनाया जाता है. दीपावली के दिन देवारी यानि की दियारी नाम का पर्व मनाया जाता है. इस गांव में नई फसलों की पूजा होती है. इसके साथ ही मवेशियों की भी पूजा की जाती है. छत्तीसगढ़ के रीति रिवाजों के जानकारों के मुताबिक इस दिन फसलों की शादी भी कराई जाती है.

दिवाली पर सुरहुत्ती पर्व मनाने की परंपरा: छत्तीसगढ़ में दिवाली पर सुरहुत्ती यानि की लक्ष्मी पूजा मनाई जाती है. इस दिन दीयों को पानी से धोया जाता है और उसके बाद दीपोत्सव की तैयारी की जाती है. दीपावली की शाम सबसे पहले तुलसी चौरा से दीये जलाने की परंपरा की शुरुआत होती है. उसके बाद पूरे घर में दिया जलाया जाता है. गांवों में दीप जलाने के बाद सुरहुत्ती यानि की लक्ष्मी पूजा की जाती है. इसके बाद घर में धूमधाम से दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. परिवार के सभी लोग लक्ष्मी जी की मूर्ति के सामने आरती करते हैं. पशुधन और अन्न की भी पूजा इस दौरान की जाती है.

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