दंतेवाड़ा: होली के एक दिन पहले रात को होलिका जलाई जाती है. हर जगह होलिका दहन के अलग-अलग नियम हैं. छत्तीसगढ़ में मां दंतेश्वरी के गढ़ में ताल के पत्तों पर होलिका दहन किया जाता है. सालों से ये परम्परा चली आ रही है. यहां पौराणिक परम्परा के मुताबिक कई तरह के औषधीयुक्त लकड़ियों को एक जगह जमा किया जाता है. इससे पहले ताल के पत्ते बिछा दिए जाते हैं. इसमें चंदन और आम की लकड़ी का भी इस्तेमाल किया जाता है. फिर होली से पहले वाली रात को यहां होलिका दहन किया जाता है.
चली आ रही सालों पुरानी परम्परा: इस बारे में ईटीवी भारत ने दंतेवाड़ा के पंडित हरेंद्र नाथ जीया से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "रविवार 24 मार्च को विश्व प्रसिद्ध फागुन मेले के आठवें दिन वर्षों से चली आ रही परंपरा निभाई जाएगी. इस दिन ताल के पत्तों और चंदन की लकड़ी,आम की लकड़ी सहित कई तरह की औषधि युक्त लकड़ी से होलिका का दहन किया जाएगा. सबसे पहले मां दंतेश्वरी की नवमी पालकी धूमधाम से नारायण मंदिर तक ले जायी जाएगी. इसके बाद 12 अलंकार चालकियों की ओर से शाम को 4 बजे आंवला मार की रस्म निभाई जाएगी. इस रस्म का खास महत्व होता है."
फाल्गुन मेले में निभाई जाती है ये रस्म: उन्होंने बताया कि" इसके बाद दो पक्षों की ओर से द्वार वाली रस्म निभाई जाती है, जिसमें सभी के हाथों में आंवला दिया जाता है. दोनों पक्ष एक दूसरे को आंवले से मारते हैं. जिस किसी को भी आंवला की मार पड़ती है, कहा जाता है उसे मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.यह रस्म हर फागुन मेले में निभाई जाती है. सालों से ये परम्परा चली आ रही है. इस रस्म के बाद फिर से मां दंतेश्वरी की पालकी को दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है."
ताल के पत्तों पर जलायी जाती है होलिका: पंडित हरेंद्र नाथ जीया ने बताया कि" इसके बाद शाम को होलिका दहन किया जाता है. मां दंतेश्वरी मंदिर में विधि विधान से पूजा-अर्चना कर भैरव बाबा मंदिर में रखे ताड़ल के पत्तों को 12 अलंकार की ओर से लाया जाता है. उन पत्तों को दंतेश्वरी सरोवर में धोने के बाद मंदिर प्रांगण में रखा जाता है. उन्हीं पत्तों पर होलिका दहन का किया जाता है.शाम को मां दंतेश्वरी की पालकी दंतेश्वरी मंदिर से होते हुए शनि मंदिर तक लाई जाती है. वहां ताड़ के पत्ते से बने होलिका को पूजा-अर्चना कर सात परिक्रमा लगाते जलाया जाता है. सालों से ये परंपरा चली आ रही है. होलिका दहन के बाद उसकी राख को कई लोग अपने आंचल में ले लेते हैं. कहते हैं ऐसा करने से हर मनोकामना पूरी होती है."
होलिका दहन के बाद सुबह खेली जाती है होली: होलिका दहन के बाद दूसरे दिन सुबह लोग होलिका दहन की ठंडी राख को पलाश के फूलों के रंग में मिला कर पहले मां देतेश्वरी को अर्पित करते हैं. फिर होली खेलते हैं. सालों से इस परम्परा के साथ यहां के लोग होली खेलते हैं.