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सरगुजा का ऐतिहासिक दशहरा, धार्मिक अनुष्ठान के साथ राजा से लोगों के मेल मिलाप की परंपरा

सरगुजा में दशहरे की ऐतिहासिक परंपरा रही है. यहां धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद राजपरिवार के सदस्य लोगों से मिलते हैं

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

DUSSEHRA OF SURGUJA ROYAL FAMILY
सरगुजा के दशहरे का इतिहास में अहम स्थान (ETV BHARAT)

सरगुजा: सरगुजा का दशहरा ऐतिहासिक दशहरे में गिना जाता है. साल 1966 तक यहां पूरे राजसी ठाठ बाठ से दशहरा मनाया जाता रहा. अब यहां दशहरा पर्व के तरीकों में बदलाव हुआ है. राजपरिवार के उत्तराधिकारी टीएस सिंहदेव सरगुजा महाराज की परंपरा को निभाते हैं. सभी रीति रिवाज निभाने के बाद टीएस सिंहदेव लोगों से मुलाकात करते हैं और दशहरे की शुभकामनाएं लोगों को देते हैं.

सरगुजा के दशहरे का इतिहास में अहम स्थान: सरगुजा के दशहरे का इतिहास में अहम स्थान रहा है. आजादी से पहले सरगुजा एक रियासत हुआ करती थी. यहां राजाओं का शासन था. रियासत काल मे दशहरे के दिन रघुनाथ पैलेस को आम जनता ले लिए खोल दिया जाता था. रियासत के क्षेत्र और दूर दूर से लोग अम्बिकापुर पहुंचते थे और दशहरे में शामिल होते थे. महराज जुलूस के साथ शहर में हाथी पर बैठकर भ्रमण के लिये निकलते और जनता के अभिवादन को सहर्ष स्वीकार कर उन्हें दशहरे की शुभकामनाएं देते थे.

Dussehra Of Princely Era Of Surguja
सरगुजा का रियासतकालीन दशहरा (ETV BHARAT)

हाथी घोड़े और फोर्स के साथ दशहरे का जुलूस: सरगुजा के महाराज के साथ हाथी घोड़े और फोर्स के साथ दशहरे का जुलूस निकलता था. इसके साथ सरगुजिहा नृत्य दल भी इस शाही दशहरे में शामिल रहता था. सबसे पहले बंजारी में नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए जाते थे. उसके बाद जून गद्दी और ब्रह्म मंदिर में पूजा अर्चना होती थी. यह सारी परंपराएं निभाने के बाद यह शाही दशहरा रघुनाथ पैलेस पहुंचता था. जहां रियासत के गंवटिया, जागीरदार और जनता मौजूद रहते थे. उसके बाद यहां फाटक पूजा होता था.

Surguja Royal Family And Dussehra
सरगुजा राजपरिवार और दशहरा (ETV BHARAT)

फाटक पूजा के बाद लगता था दरबार: फाटक पूजा के बाद यहां दरबार लगता था. इस दरबार में इलाकेदार महाराजा को नजराना पेश करते थे. उसके बाद सरगुजा के महाराजा की तरफ से रियासत की प्रगति रिपोर्ट भाषण के जरिए पेश की जाती थी. साल 1966 में इस परंपरा के तहत अंतिम बार यहां दशहरा मनाया गया. इसके बाद से दशहरे का जुलूस निकलना बंद हो गया. अब सिर्फ पूजन और रघुनाथ पैलेस में आम लोगों से मुलाकात करने की परंपरा निभाई जाती है.

Glorious History Of Sarguja Royal Family
सरगुजा राजपरिवार का गौरवशाली इतिहास (ETV BHARAT)

ये परंपरा भगवान राम की गाथा से जुड़ी हुई है. दशहरे पर रावण के दहन की परंपरा शुरू हुई. इसके साथ एक परंपरा और जुड़ गई कि इस दिन लोग अपने राजा का दर्शन करते हैं, दशहरे के दिन राजा का दर्शन करना शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता बन गई तब से ये परंपरा चल रही है. पीढी दर पीढी सरगुजा रियासत इस परंपरा को निभाता रहा है. अब प्रतीकत्मक रूप से इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है: टीएस सिंहदेव, सरगुजा राजपरिवार के सदस्य

TS Singhdeo member of Sarguja royal family
सरगुजा राजपरिवार के सदस्य टीेएस सिंहदेव (ETV BHARAT)

सरगुजा का दशहरा देश के प्रमुख दशहरा सेलिब्रेशन में गिना जाता है. यहां आज भी राजा और आम लोगों का रिश्ता दशहरा पर्व पर देखने को मिलता है. सरगुजा राजपरिवार के 117 वें उत्तराधिकारी टीएस सिंहदेव सरगुजा महराज की परंपरा को निभाते हैं.

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सरगुजा के दशहरे का इतिहास में अहम स्थान: सरगुजा के दशहरे का इतिहास में अहम स्थान रहा है. आजादी से पहले सरगुजा एक रियासत हुआ करती थी. यहां राजाओं का शासन था. रियासत काल मे दशहरे के दिन रघुनाथ पैलेस को आम जनता ले लिए खोल दिया जाता था. रियासत के क्षेत्र और दूर दूर से लोग अम्बिकापुर पहुंचते थे और दशहरे में शामिल होते थे. महराज जुलूस के साथ शहर में हाथी पर बैठकर भ्रमण के लिये निकलते और जनता के अभिवादन को सहर्ष स्वीकार कर उन्हें दशहरे की शुभकामनाएं देते थे.

Dussehra Of Princely Era Of Surguja
सरगुजा का रियासतकालीन दशहरा (ETV BHARAT)

हाथी घोड़े और फोर्स के साथ दशहरे का जुलूस: सरगुजा के महाराज के साथ हाथी घोड़े और फोर्स के साथ दशहरे का जुलूस निकलता था. इसके साथ सरगुजिहा नृत्य दल भी इस शाही दशहरे में शामिल रहता था. सबसे पहले बंजारी में नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए जाते थे. उसके बाद जून गद्दी और ब्रह्म मंदिर में पूजा अर्चना होती थी. यह सारी परंपराएं निभाने के बाद यह शाही दशहरा रघुनाथ पैलेस पहुंचता था. जहां रियासत के गंवटिया, जागीरदार और जनता मौजूद रहते थे. उसके बाद यहां फाटक पूजा होता था.

Surguja Royal Family And Dussehra
सरगुजा राजपरिवार और दशहरा (ETV BHARAT)

फाटक पूजा के बाद लगता था दरबार: फाटक पूजा के बाद यहां दरबार लगता था. इस दरबार में इलाकेदार महाराजा को नजराना पेश करते थे. उसके बाद सरगुजा के महाराजा की तरफ से रियासत की प्रगति रिपोर्ट भाषण के जरिए पेश की जाती थी. साल 1966 में इस परंपरा के तहत अंतिम बार यहां दशहरा मनाया गया. इसके बाद से दशहरे का जुलूस निकलना बंद हो गया. अब सिर्फ पूजन और रघुनाथ पैलेस में आम लोगों से मुलाकात करने की परंपरा निभाई जाती है.

Glorious History Of Sarguja Royal Family
सरगुजा राजपरिवार का गौरवशाली इतिहास (ETV BHARAT)

ये परंपरा भगवान राम की गाथा से जुड़ी हुई है. दशहरे पर रावण के दहन की परंपरा शुरू हुई. इसके साथ एक परंपरा और जुड़ गई कि इस दिन लोग अपने राजा का दर्शन करते हैं, दशहरे के दिन राजा का दर्शन करना शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता बन गई तब से ये परंपरा चल रही है. पीढी दर पीढी सरगुजा रियासत इस परंपरा को निभाता रहा है. अब प्रतीकत्मक रूप से इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है: टीएस सिंहदेव, सरगुजा राजपरिवार के सदस्य

TS Singhdeo member of Sarguja royal family
सरगुजा राजपरिवार के सदस्य टीेएस सिंहदेव (ETV BHARAT)

सरगुजा का दशहरा देश के प्रमुख दशहरा सेलिब्रेशन में गिना जाता है. यहां आज भी राजा और आम लोगों का रिश्ता दशहरा पर्व पर देखने को मिलता है. सरगुजा राजपरिवार के 117 वें उत्तराधिकारी टीएस सिंहदेव सरगुजा महराज की परंपरा को निभाते हैं.

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