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28 साल की नौकरी के बाद डॉक्टर को नहीं दिए वित्तीय लाभ, सरकारी कार्यप्रणाली को निराशाजनक बताते हुए एचसी ने लगाई 25 हजार की कॉस्ट - HIMACHAL HIGH COURT

28 साल सर्विस करने के बावजूद डॉक्टर को वित्तीय लाभ नहीं देने पर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है. कोर्ट ने सरकारी कार्यप्रणाली को निराशाजनक बताया.

हिमाचल हाईकोर्ट
हिमाचल हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 9, 2024, 10:03 PM IST

शिमला: स्वास्थ्य विभाग में 28 साल सेवाएं देने के बाद एक डॉक्टर रिटायर हो जाता है. रिटायरमेंट के दो साल बाद तक भी उस डॉक्टर को अपने वित्तीय लाभ नहीं मिलते हैं. हताश होकर रिटायर्ड डॉक्टर ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने डॉक्टर को सभी वित्तीय लाभ ब्याज सहित अदा करने के आदेश जारी किए. एकल पीठ के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार खंडपीठ में गई. वहां से भी सरकार को न केवल अदालत की सख्त टिप्पणी सुननी पड़ी, बल्कि 25 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार की अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराया और सरकारी कार्यप्रणाली पर कई सख्त टिप्पणियां भी की. साथ ही 25 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई.

ये है पूरा मामला

रिटायरमेंट के बाद याचिकाकर्ता डॉक्टर ने अपने वित्तीय लाभ न मिलने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था. वहां से एकल पीठ ने प्रार्थी डॉक्टर को 6 फीसदी ब्याज सहित सेवानिवृत्ति के बकाया सभी लाभ अदा करने के आदेश जारी किए. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की एकल पीठ ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को आदेश दिए थे कि वह उन संबंधित कर्मियों के खिलाफ स्वतंत्र और निष्पक्षता से जांच करे, जिनकी वजह से प्रार्थी को पेंशन संबंधी लाभ मिलने में देरी हुई. अदालत ने जांच के बाद दोषी कर्मियों से प्रार्थी को भुगतान किए जाने वाले ब्याज की राशि वसूलने के आदेश भी दिए.

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के इस आदेश को भी सही ठहराया. एकल पीठ ने कहा था कि सेवानिवृति लाभों के भुगतान में देरी होने से संबंधित कर्मी ब्याज का हकदार हो जाता है. इस हक को घोषित करने के साथ ही अदालत को यह भी ज्ञात होता है कि सार्वजनिक धन का इस तरह के आकस्मिक व्यय के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता. सेवानिवृत्ति लाभों को जारी करने में देरी करने वाले को बख्शा नहीं जा सकता. कर्तव्य पालन में देरी के कारण सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई निश्चित रूप से संबंधित कर्मी से ही होनी चाहिए.

एकल पीठ ने चिकित्सा अधीक्षक सोलन द्वारा पेश किए रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थी ने 28 वर्ष से अधिक समय तक सरकार को अपनी सेवाएं दी हैं. नियमों के अनुसार प्रार्थी सभी सेवानिवृत्ति लाभ पाने का हक रखता था. प्रार्थी को दिए गए सेवानिवृत्ति लाभों का लेखा जोखा देखने के बाद हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली को निराशाजनक और दर्दनाक बताया. सेवानिवृत होने के दो साल तक प्रार्थी को सारे लाभ नहीं दिए गए और मजबूरन उसे अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

हाईकोर्ट ने इस बात पर भी खेद जताया कि अभी भी सरकार यह बताने में असमर्थ है कि कब तक प्रार्थी को सभी सेवानिवृत्ति लाभ दे दिए जाएंगे? एकल पीठ की इन सख्त टिप्पणियों के बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने इन आदेशों को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी. अब खंडपीठ ने भी 25 हजार की कॉस्ट के साथ अपील को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें: नए साल में महंगी बिजली के लिए तैयार रहे उपभोक्ता, जाने इसके पीछे की वजह

शिमला: स्वास्थ्य विभाग में 28 साल सेवाएं देने के बाद एक डॉक्टर रिटायर हो जाता है. रिटायरमेंट के दो साल बाद तक भी उस डॉक्टर को अपने वित्तीय लाभ नहीं मिलते हैं. हताश होकर रिटायर्ड डॉक्टर ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने डॉक्टर को सभी वित्तीय लाभ ब्याज सहित अदा करने के आदेश जारी किए. एकल पीठ के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार खंडपीठ में गई. वहां से भी सरकार को न केवल अदालत की सख्त टिप्पणी सुननी पड़ी, बल्कि 25 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई.

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार की अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराया और सरकारी कार्यप्रणाली पर कई सख्त टिप्पणियां भी की. साथ ही 25 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई.

ये है पूरा मामला

रिटायरमेंट के बाद याचिकाकर्ता डॉक्टर ने अपने वित्तीय लाभ न मिलने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था. वहां से एकल पीठ ने प्रार्थी डॉक्टर को 6 फीसदी ब्याज सहित सेवानिवृत्ति के बकाया सभी लाभ अदा करने के आदेश जारी किए. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की एकल पीठ ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को आदेश दिए थे कि वह उन संबंधित कर्मियों के खिलाफ स्वतंत्र और निष्पक्षता से जांच करे, जिनकी वजह से प्रार्थी को पेंशन संबंधी लाभ मिलने में देरी हुई. अदालत ने जांच के बाद दोषी कर्मियों से प्रार्थी को भुगतान किए जाने वाले ब्याज की राशि वसूलने के आदेश भी दिए.

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के इस आदेश को भी सही ठहराया. एकल पीठ ने कहा था कि सेवानिवृति लाभों के भुगतान में देरी होने से संबंधित कर्मी ब्याज का हकदार हो जाता है. इस हक को घोषित करने के साथ ही अदालत को यह भी ज्ञात होता है कि सार्वजनिक धन का इस तरह के आकस्मिक व्यय के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता. सेवानिवृत्ति लाभों को जारी करने में देरी करने वाले को बख्शा नहीं जा सकता. कर्तव्य पालन में देरी के कारण सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई निश्चित रूप से संबंधित कर्मी से ही होनी चाहिए.

एकल पीठ ने चिकित्सा अधीक्षक सोलन द्वारा पेश किए रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थी ने 28 वर्ष से अधिक समय तक सरकार को अपनी सेवाएं दी हैं. नियमों के अनुसार प्रार्थी सभी सेवानिवृत्ति लाभ पाने का हक रखता था. प्रार्थी को दिए गए सेवानिवृत्ति लाभों का लेखा जोखा देखने के बाद हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली को निराशाजनक और दर्दनाक बताया. सेवानिवृत होने के दो साल तक प्रार्थी को सारे लाभ नहीं दिए गए और मजबूरन उसे अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

हाईकोर्ट ने इस बात पर भी खेद जताया कि अभी भी सरकार यह बताने में असमर्थ है कि कब तक प्रार्थी को सभी सेवानिवृत्ति लाभ दे दिए जाएंगे? एकल पीठ की इन सख्त टिप्पणियों के बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने इन आदेशों को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी. अब खंडपीठ ने भी 25 हजार की कॉस्ट के साथ अपील को खारिज कर दिया.

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