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16 साल पहले पटवारी ने रिश्वत में लिए थे 1000 रुपये, हाई कोर्ट ने सुनाई 2 साल कारावास की सजा - Himachal High Court

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Himachal High Court sentenced Patwari in bribery case: हिमाचल हाईकोर्ट ने 16 साल पहले घूस लेने के मामले में लोअर कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पटवारी को दो साल कारावास की सजा सुनाई है. पढ़िए पूरा मामला...

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (FILE)

शिमला: एक पटवारी ने 16 साल पहले महज एक हजार रुपये रिश्वत के रूप में लिए थे. लोअर कोर्ट ने पटवारी को बरी करने का फैसला सुनाया था. उस फैसले को हाई कोर्ट ने अगस्त महीने में पलट दिया था. अब अदालत ने पटवारी को दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई है. मामला हमीरपुर जिला का है. इससे पहले हाई कोर्ट ने पटवारी को जमीन से जुड़े कुछ कागज बनाने की एवज में 1000 रुपए की रिश्वत लेने का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने यह सजा सुनाई है.

सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि दोषी पटवारी के पद पर तैनात था. उसने उन दस्तावेजों को तैयार करने के लिए रिश्वत की मांग की थी, जिन्हें वह अपने आधिकारिक कर्तव्य के हिस्से के रूप में तैयार करने के लिए बाध्य था. ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं देखा जा सकता. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए बनाया गया है. करप्शन लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रही है और इससे हल्के ढंग से नहीं निपटा जा सकता है. ऐसे मामलों में कोई भी अनुचित सहानुभूति सार्वजनिक अधिकारियों को बेधड़क रिश्वत मांगने के लिए प्रोत्साहित करेगी.

हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के 17 अगस्त 2010 के फैसले को कानून के विपरीत पाते हुए रद्द कर दिया था. अभियोजन पक्ष के द्वारा न्यायालय के समक्ष रख तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता होशियार सिंह आईटीबीपी में कार्यरत था. वह 2 अक्टूबर 2008 को दो महीनों की वार्षिक छुट्टी पर अपने घर हमीरपुर जिला के गांव दलसेहडा आया था. उस समय गांव में बंदोबस्त का काम चल रहा था. इस दौरान उसकी भूमि की तकसीम नहीं की गई. उसने अपने वकील से इस बाबत बात की तो वकील ने कुछ जरूरी कागजात एकत्रित करने की सलाह दी. ताकि तकसीम का मामला दायर किया जा सके.

होशियार सिंह जमाबंदी, ततीमा जैसे कागजात बनवाने के लिए दलसेहड़ा के तत्कालीन पटवारी सीता राम से 22 अक्टूबर को मिला. पटवारी ने उसे कहा कि कागज तैयार करने का बहुत बड़ा काम है, जिसके लिए उसकी पूरी रात भी लग सकती है. वह अगले दिन दोपहर 12 से 1 बजे तक कागजात तैयार करके रखेगा. पटवारी ने कागज तैयार करने की एवज में 1000 रुपए रिश्वत की मांग भी की.

शिकायतकर्ता ने इसे बड़ी रकम बताते हुए इनकार किया तो पटवारी ने कहा कि 1000 रुपए दिए बगैर कागज तैयार करने का काम पूरा नहीं होगा. शिकायत कर्ता रिश्वत नहीं देना चाहता था, इसलिए उसने इसकी शिकायत विजिलेंस के पास की. फिर बाद में पटवारी को अगले दिन रंगे हाथों 1000 रुपए की रिश्वत के साथ विजिलेंस टीम ने पकड़ लिया.

मामला विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के समक्ष प्रस्तुत किया गया. अभियोजन पक्ष ने कुल 10 गवाह पेश किए. विशेष न्यायाधीश हमीरपुर ने शिकायतकर्ता को आरोपी का सहयोगी बताते हुए उसे बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के फैसले को त्रुटिपूर्ण पाते हुए अगस्त महीने में उस फैसले को पलटने के बाद अब दोषी पटवारी को दो साल की सजा सुनाई है.

ये भी पढ़ें: रिटायर पटवारी को दी थी री-इंगेजमेंट, सुक्खू सरकार ने किया तबादला तो हाईकोर्ट ने लगाई रोक, चार हफ्ते में मांगा जवाब

शिमला: एक पटवारी ने 16 साल पहले महज एक हजार रुपये रिश्वत के रूप में लिए थे. लोअर कोर्ट ने पटवारी को बरी करने का फैसला सुनाया था. उस फैसले को हाई कोर्ट ने अगस्त महीने में पलट दिया था. अब अदालत ने पटवारी को दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई है. मामला हमीरपुर जिला का है. इससे पहले हाई कोर्ट ने पटवारी को जमीन से जुड़े कुछ कागज बनाने की एवज में 1000 रुपए की रिश्वत लेने का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने यह सजा सुनाई है.

सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि दोषी पटवारी के पद पर तैनात था. उसने उन दस्तावेजों को तैयार करने के लिए रिश्वत की मांग की थी, जिन्हें वह अपने आधिकारिक कर्तव्य के हिस्से के रूप में तैयार करने के लिए बाध्य था. ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं देखा जा सकता. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए बनाया गया है. करप्शन लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रही है और इससे हल्के ढंग से नहीं निपटा जा सकता है. ऐसे मामलों में कोई भी अनुचित सहानुभूति सार्वजनिक अधिकारियों को बेधड़क रिश्वत मांगने के लिए प्रोत्साहित करेगी.

हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के 17 अगस्त 2010 के फैसले को कानून के विपरीत पाते हुए रद्द कर दिया था. अभियोजन पक्ष के द्वारा न्यायालय के समक्ष रख तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता होशियार सिंह आईटीबीपी में कार्यरत था. वह 2 अक्टूबर 2008 को दो महीनों की वार्षिक छुट्टी पर अपने घर हमीरपुर जिला के गांव दलसेहडा आया था. उस समय गांव में बंदोबस्त का काम चल रहा था. इस दौरान उसकी भूमि की तकसीम नहीं की गई. उसने अपने वकील से इस बाबत बात की तो वकील ने कुछ जरूरी कागजात एकत्रित करने की सलाह दी. ताकि तकसीम का मामला दायर किया जा सके.

होशियार सिंह जमाबंदी, ततीमा जैसे कागजात बनवाने के लिए दलसेहड़ा के तत्कालीन पटवारी सीता राम से 22 अक्टूबर को मिला. पटवारी ने उसे कहा कि कागज तैयार करने का बहुत बड़ा काम है, जिसके लिए उसकी पूरी रात भी लग सकती है. वह अगले दिन दोपहर 12 से 1 बजे तक कागजात तैयार करके रखेगा. पटवारी ने कागज तैयार करने की एवज में 1000 रुपए रिश्वत की मांग भी की.

शिकायतकर्ता ने इसे बड़ी रकम बताते हुए इनकार किया तो पटवारी ने कहा कि 1000 रुपए दिए बगैर कागज तैयार करने का काम पूरा नहीं होगा. शिकायत कर्ता रिश्वत नहीं देना चाहता था, इसलिए उसने इसकी शिकायत विजिलेंस के पास की. फिर बाद में पटवारी को अगले दिन रंगे हाथों 1000 रुपए की रिश्वत के साथ विजिलेंस टीम ने पकड़ लिया.

मामला विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के समक्ष प्रस्तुत किया गया. अभियोजन पक्ष ने कुल 10 गवाह पेश किए. विशेष न्यायाधीश हमीरपुर ने शिकायतकर्ता को आरोपी का सहयोगी बताते हुए उसे बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के फैसले को त्रुटिपूर्ण पाते हुए अगस्त महीने में उस फैसले को पलटने के बाद अब दोषी पटवारी को दो साल की सजा सुनाई है.

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