शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य विद्युत बोर्ड के विधि अधिकारी को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया है. कोर्ट ने दोषी को अदालत के उठने तक जेल और 2 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने मेसर्ज वर्धमान इस्पात उद्योग की ओर से बिजली बोर्ड के विधि अधिकारी के खिलाफ दायर अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किए.
कोर्ट ने कहा कि विधि अधिकारी होने के नाते कोर्ट में उनके ऐसे आचरण की उम्मीद की जाती है, जो उनकी विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति के अनुरूप हो. एक विधि अधिकारी होने के नाते एक वकील को हर समय एक सज्जन व्यक्ति के रूप में आचरण करने की आवश्यकता होती है और यह आचरण न्यायिक शक्तियों के साथ निहित किसी भी प्राधिकारी के समक्ष अधिक महत्व रखता है, जब वह उस प्राधिकारी की सहायता के लिए खड़ा होता है. उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह अधिकारियों और न्याय प्रशासन के कामकाज में बाधा डालने वाले तरीके से कार्य करने के बजाय न्याय की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए खड़े होंगे.
कानून का शासन एक लोकतांत्रिक समाज की नींव है और न्यायपालिका कानून के शासन की संरक्षक है. यदि न्यायपालिका को अपने कर्तव्यों और कार्यों को प्रभावी ढंग से करना है और उस भावना के प्रति सच्चा रहना है, जिसके साथ उन्हें पवित्र रूप से सौंपा गया है, तो न्यायालयों की गरिमा और अधिकार का हर कीमत पर सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए. यही कारण है कि न्यायालयों को न्यायालय की अवमानना के लिए उन लोगों को दंडित करने की असाधारण शक्ति सौंपी गई है, जो न्यायालय के अंदर या बाहर ऐसे कृत्यों में शामिल होते हैं, जो न्यायालयों के अधिकार को कमजोर करते हैं और उन्हें बदनाम और अपमानित करते हैं, जिससे बाधा उत्पन्न होती है.
मामले के अनुसार प्रार्थी कंपनी ने विधि अधिकारी पर हाईकोर्ट के 19.08.2023 को पारित निर्देशों की जानबूझकर उपेक्षा और अवज्ञा करने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता कंपनी ने वर्ष 2023 में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर लोकपाल द्वारा उसके खिलाफ पारित 28.07.2023 के आदेश को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने 19.08.2023 को एक अंतरिम आदेश पारित कर 28.07. 2023 के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी थी.
कोर्ट के आदेश के बावजूद एचपीएसईबी लिमिटेड का एक अधिकृत प्रतिनिधि और कानून अधिकारी होने के नाते प्रतिवादी अवमाननाकर्ता ने हाईकोर्ट के स्थगन आदेशों को जानबूझकर छुपाया और एचपीईआरसी के समक्ष चल रहे मामले में यह खुलासा नहीं किया गया कि हाईकोर्ट ने उस मामले में कोई स्थगन आदेश पारित किया था. हाईकोर्ट ने इसे हाईकोर्ट की अवमानना पाते हुए उक्त विधि अधिकारी को दोषी को ठहराया.
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