शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार की एक अपील को तथ्यहीन ठहराते हुए 5000 रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया है. साथ ही अदालत ने ये तीखी टिप्पणी भी की है कि राज्य सरकार की तुच्छ मुकदमेबाजी के कारण कोर्ट पर बोझ पड़ता है. इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि पांच हजार रुपए की कास्ट की राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करवाया जाए. ये निर्देश हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने दिया. इसके साथ ही खंडपीठ ने इससे पूर्व हाईकोर्ट की एकल पीठ की तरफ से पारित किए गए निर्णय पर अपनी मोहर लगा दी.
मामले के अनुसार राज्य पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग शिमला में अनुसंधान सहायक के पद पर कार्यरत प्रार्थियों ने याचिका दाखिल कर दलील दी थी कि वे भर्ती और पदोन्नति नियमों के अनुसार प्रमोशन के लिए पात्र हैं. दलील दी गई थी कि वे नियमों के अनुसार प्रमोशन के पात्र हैं, क्योंकि उनके पास अब छह साल से अधिक की नियमित व अनुबंध सेवा है. उनकी छह साल की नियमित व अनुबंध के आधार पर दी गई सेवा के बावजूद प्रतिवादी विभाग की तरफ से उनके पक्ष में पर्यावरण अभियंता के पद पर प्रमोशन के लिए विचार नहीं किया जा रहा है.
वादियों की मांग थी कि उन्हें प्रमोट करने का निर्देश जारी किया जाए, क्योंकि विभाग के पास पर्यावरण अभियंता के पद भी खाली पड़े हैं. इस पर एकल पीठ ने स्पष्ट किया था कि याचिकाकर्ता अनुसंधान सहायक के पदों के लिए तय नियमों के अनुसार अनुबंध पर रखे गए थे, इसलिए याचिकाकर्ताओं की अनुबंध के आधार पर नियुक्ति का प्रारंभिक तिथि से मूल्यांकन किया जाए. याचिकाकर्ता पर्यावरण अभियंता के पद के लिए भर्ती और प्रमोशन नियमों में निर्धारित पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं. यानी निरंतर अनुबंध सेवा के साथ छह साल की नियमित सेवा पूरी करते हैं.
अदालत ने आगे कहा कि जैसा भर्ती एवं प्रमोशन नियमों में तदर्थ शब्द का उपयोग किया गया है. ऐसे में याचिकाकर्ताओं के मामले में अनुबंध के रूप में इसे पढ़ा जाना चाहिए. उन्हें एकल पीठ ने पर्यावरण अभियंता के पद पर प्रमोशन के लिए पात्र माना और पर्यावरण अभियंता के पद के खिलाफ प्रमोशन के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने के लिए प्रतिवादियों को आदेश जारी किए. इस पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील दाखिल कर दी. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इसे तुच्छ मुकदमेबाजी बताते हुए कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया.
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