शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रांसफर पॉलिसी के प्रावधानों में मनमाने तरीके से छूट देने को गैरकानूनी ठहराया है. अदालत ने कहा कि ट्रांसफर पॉलिसी के प्रावधानों को किसी विशेष कर्मी को समायोजित करने के लिए सिर्फ इसलिए शिथिल नहीं किया जा सकता कि सर्वोच्च प्राधिकारी के पास ऐसी शक्ति है. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से प्रावधानों में छूट देने की शक्ति का उद्देश्य ही कानून की नजर में गलत हो जाएगा. अदालत ने कहा कि जब विवेकाधिकार निहित होता है, तो इसका प्रयोग बहुत सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए.
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने इस मामले में प्रार्थी शशि बाला की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि निजी प्रतिवादी का बतौर डिप्टी रेंजर उसके गृह क्षेत्र में स्थानांतरण कानूनन उचित नहीं है. साथ ही कहा कि इस मामले में उच्चतम प्रशासनिक प्राधिकारी की तरफ से छूट देने की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है. हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को आदेश जारी किए कि वे याचिकाकर्ता को तीन साल की सामान्य अवधि के लिए उसकी वर्तमान नियुक्ति के स्थान पर सेवा जारी रखने की अनुमति दे.
क्या है पूरा मामला
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता शशि बाला को उसके अनुरोध पर वन प्रभाग ऊना के तहत वन खंड ऊना रेंज में ट्रांसफर करने के बाद तैनात किया गया था. शशि बाला की शिकायत थी कि निजी प्रतिवादी को समायोजित करने के लिए उसे अभियोजन ड्यूटी के लिए डीएफओ ऊना ऑफिस में ट्रांसफर कर वहां तैनात किया गया. निजी प्रतिवादी जिला ऊना का स्थाई निवासी है, ऐसे में स्थानांतरण नीति के अनुसार गृह क्षेत्र में उसकी तैनाती नहीं हो सकती. वहीं, हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने स्थानांतरण आदेश का बचाव किया.
सरकार की तरफ से अदालत में कहा गया कि बेशक स्थानांतरण नीति के अनुसार एक डिप्टी रेंजर को उसके गृह रेंज या निकटवर्ती रेंज में तैनात नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस केस में ट्रांसफर के लिए सर्वोच्च सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी ली गई है. चूंकि यह सर्वोच्च प्राधिकारी स्थानांतरण नीति में प्रावधान को शिथिल करने में सक्षम है, लिहाजा ट्रांसफर आदेश में कोई गलती नहीं है. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों और दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद पाया कि विवादित स्थानांतरण आदेश के अनुसार निजी प्रतिवादी को उसके गृह रेंज में स्थानांतरित किया गया है.
अदालत ने पाया कि ट्रांसफर से जुड़े व्यापक प्रिंसिपल-2023 कहता है कि कुछ विशिष्ट अफसर व कर्मचारी अपने गृह क्षेत्र में तैनात नहीं हो सकते. वन विभाग के डिप्टी रेंजर ऐसे अफसरों की लिस्ट में शामिल हैं. इन अफसरों को गृह रेंज या आसपास की रेंज में तैनात नहीं किया जा सकता. हालांकि सरकार को इस प्रावधान में छूट देने की शक्ति है, जिसके अनुसार संबंधित विभाग के प्रभारी मंत्री के माध्यम से ली गई मुख्यमंत्री की पूर्व स्वीकृति से छूट दी जा सकती है.
हाईकोर्ट ने कहा कि जब पॉलिसी में प्रावधान है कि कुछ अफसरों/कर्मियों को गृह क्षेत्र में तैनाती नहीं दी जा सकती तो उसका एक मकसद है. भाई-भतीजावाद से बचने के लिए ऐसे मामलों में गृह क्षेत्र में नियुक्ति नहीं दी जा सकती. अदालत ने कहा कि इस प्रावधान में छूट देने की शक्ति का मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, इस तरह के विवेक का इस्तेमाल किसी ऐसे कर्मचारी के पक्ष में किया जा सकता है, जो किसी गंभीर शारीरिक विकलांगता या बीमारी से पीड़ित है.
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