शिमला: ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को गति देने और लोगों की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना शुरू की थी. जिसके तहत जॉब कार्ड धारक हर साल 100 दिनों के रोजगार के हकदार हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय पात्र परिवारों को अकुशल कार्य करने के लिए जॉब कार्ड प्रदान करता है. जिससे उन्हें मनरेगा के लाभों का उपयोग करने की अनुमति मिलती है, लेकिन इसके साथ ही ग्रामीणों को मनरेगा के तहत होने वाले सार्वजनिक कार्यों के अलावा अपने पर्सनल काम जैसे बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए भूमि सुधार, वर्षा जल को संग्रहण करने के लिए जल भंडारण टैंक, कैटल शेड, बागवानी को बढ़ावा देने के लिए पौधरोपण जैसे कार्यों की सुविधा का भी लाभ उठा सकते हैं. लेकिन अब हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को मनरेगा के तहत होने वाले पर्सनल काम की सुविधा का लाभ नहीं दिया जा रहा है. प्रदेश में मंडी जिले के तहत करसोग, चुराग, गोहर सहित अन्य जिलों के विकास खंडों में सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को मनरेगा की योजना से अब बाहर किए जाने की शिकायतें मिली हैं. प्रदेश में इसी साल पंचायती राज संस्थाओं के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. ऐसे में इस तरह की शिकायतें सामने आने के कारण जनप्रतिनिधियों में भी हड़कंप मच गया है.
पहले सभी उठा रहे थे योजना का लाभ
हिमाचल में मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों के लिए कोई शर्त तय नहीं थी. प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग चाहे वो सरकारी कर्मचारी हो या पेंशनर्स हो, सभी को मनरेगा के तहत होने वाले पर्सनल काम दिए जाते रहे हैं. इसके साथ ही ऐसे परिवारों से जो सदस्य बेरोजगार हैं, उनके भी जॉब कार्ड बने हैं और वे भी 100 दिन का रोजगार पाने के हकदार थे, लेकिन नाम ना बताने की शर्त पर कुछ लोगों और जनप्रतिनिधयों के मुताबिक ऐसे परिवारों को न तो मनरेगा के तहत पर्सनल काम दिए जा रहे हैं और न ही अब ऐसे परिवारों के घर में बेरोजगार सदस्यों को रोजगार मिल रहा है. जिससे लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स परिवारों के बेरोजगार सदस्यों की परेशानियां बढ़ गई हैं.
ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग के निदेशक राघव शर्मा ने बताया, "मनरेगा केंद्र सरकार की योजना है. इसमें निर्धारित की गई गाइडलाइन साइलेंट हैं. इस बारे में न्यायालय में भी मामला उठा है. उनका कहना है कि मनरेगा योजना को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए जाने को लेकर मामला केंद्र को भेजा गया है."
हिमाचल में 15.35 लाख जॉब कार्ड धारक
हिमाचल में कुल 12 जिले हैं. जिसके तहत कुल 91 ब्लॉक पड़ते हैं. प्रदेश में कुल पंचायतों की संख्या 3500 से ज्यादा है. 18 फरवरी 2025 को जारी ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में कुल 15.35 लाख जॉब कार्ड धारक हैं. जिसमें एक्टिव जॉब कार्ड की संख्या 9.7 लाख है. वहीं, प्रदेश में 28.52 लाख वर्कर हैं, जिसमें 14.42 लाख श्रमिक सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.
मनरेगा में किए जा सकते हैं 266 कार्य
ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को गति देने और लोगों को घर द्वार पर आजीविका की सुविधा देने के लिए मनरेगा योजना शुरू की गई है. इसके तहत ग्रामीण कुल 266 कार्य करके 100 दिन के रोजगार की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं. जिसमें मुख्य तौर पर जल संरक्षण और जल संचयन के तहत तालाब, नहर, चेक डैम आदि का निर्माण करना, भूमि विकास के तहत बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने के लिए कार्य किया जा सकता है. सड़क निर्माण के तहत ग्रामीण सड़कों और संपर्क मार्गों का निर्माण करना. वहीं, मनरेगा में बागवानी और वृक्षारोपण के तहत पौधारोपण, वनस्पति विकास के कार्य करके रोजगार प्राप्त करना. सूखा राहत कार्य में जलाशयों और नदियों की सफाई और गहरीकरण का कार्य, नहर और जल प्रबंधन के तहत सिंचाई नहरों का निर्माण और सुधार करना. गोदाम और शेड निर्माण के तहत अनाज भंडारण के लिए गोदाम और कृषि से संबंधित शेडों का निर्माण करना, आवास निर्माण कार्य, पशुओं के लिए गौशाला निर्माण कार्य, लघु सिंचाई कार्य व बाढ़ नियंत्रण कार्य आदि सहित कुल 266 कार्य किए जा सकते हैं.
मनरेगा में काम कैसे होता है?
- भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से पात्र परिवारों को जॉब कार्ड प्रदान करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) चलाती है.
- इस योजना के तहत सरकार जॉब कार्ड धारकों को 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है.
- ग्रामीणों को काम के अवसर उनके निवास के 5 किलोमीटर के दायरे में उपलब्ध कराए जाते हैं.
- मनरेगा के तहत सभी जॉब कार्ड धारक काम करने के लिए आवेदन कर सकता है.
- इस काम के लिए दैनिक वेतन निर्धारित किया जाता है और सीधे उनके बैंक खाते में भुगतान किया जाता है.
- दैनिक मजदूरी राज्य के मुताबिक भिन्न हो सकती है.
- हिमाचल में मनरेगा श्रमिकों को वर्तमान में 300 रुपए दिहाड़ी दी जा रही है.
रोजगार तो ग्रामीणों को ही मिलेगा
हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को भी मनरेगा के तहत भूमि सुधार, जल संग्रहण के लिए टैंक और केटल शेड जैसे पर्सनल काम मिलते रहे हैं. भले ही ये काम कर्मचारियों और पेंशनर्स को मिलता रहा हो, लेकिन इन कामों के जरिये पंचायत के तहत पड़ने वाले गांव में जॉब कार्ड धारकों को रोजगार मिला है. पंचायत ने जिन परिवारों के जॉब कार्ड बने हैं, ऐसे परिवारों के सदस्य ही कर्मचारियों और पेंशनरों को मनरेगा के तहत मिलने वाली स्कीमों में रोजगार प्राप्त करते हैं. नाम न छापे जाने की शर्त में कुछ जनप्रतिनिधि ये भी सवाल उठा रहे हैं कि "बहुत सी पंचायतों के अंतर्गत ऐसे भी गांव होंगे जहां बहुत से घरों से कोई सदस्य सरकारी कर्मचारी या फिर पेंशनर्स होगा. ऐसे में उस गांव में मनरेगा के तहत क्या काम नहीं होंगे ?"
उच्च अधिकारियों के ध्यान में भी लाया गया है मामला
अब ब्लॉक में कार्यरत अधिकारियों के पास कर्मचारियों और पेंशनरों को मनरेगा के तहत कार्य न दिए जाने का मामला जनप्रतिनिधि उठा रहे हैं. जिसको लेकर जनप्रतिधि कर्मचारियों और पेंशनर्स को मनरेगा के तहत काम देने को लेकर ऐसे किसी भी तरह से लिखित निर्देश या नोटिफिकेशन न होने का भी हवाला दे रहे हैं. ऐसे में कुछ ब्लॉक में कार्यरत अधिकारियों ने इस मामले को अब उच्चाधिकारियों के ध्यान में भी लाया है. जिसमें उच्च अधिकारियों से इस बारे में स्पष्ट तौर पर आदेश जारी करने का आग्रह किया गया है ताकि मनरेगा को लेकर पैदा हुए इस तरह के संशय को दूर किया जा सके.