कुल्लू: भारत में आए दिन लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में अब लोग अपनी सेहत के प्रति जागरूक हो रहे हैं. अपनी सेहत को अच्छा रखने के लिए लोग जहां खूब कसरत कर रहे हैं तो वहीं अपने खान-पान की ओर भी विशेष ध्यान दे रहे हैं. देश भर में लोगों का रुझान अब फलों की ओर भी हुआ है और लोग अपनी रोजमर्रा की डाइट में फलों को भी शामिल कर रहे हैं.
मौसम बिगड़ने से सेब उत्पादन पर पड़ेगा असर
पुरानी कहावत के अनुसार रोजाना एक सेब का सेवन डॉक्टर और बीमारी को दूर रखता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में बिगड़ रहा मौसम अच्छी सेहत के लिए बुरी खबर है. ऐसे में खराब मौसम के चलते साल 2025 में भी सेब का उत्पादन कम हो सकता है और बाजार में सेब के दाम भी बढ़ सकते हैं. सेहत के शौकीन लोगों को सेब खरीदने के लिए अपनी जब भी ढीली करनी पड़ सकती है.
हिमाचल में 5000 करोड़ से अधिक का सेब कारोबार
हिमाचल प्रदेश में सेब का कारोबार 5000 करोड़ से अधिक का है और हिमाचल प्रदेश की विभिन्न मंडियों से सेब देश के हर राज्यों में पहुंचता है. लोगों को पहाड़ के रसीले सेब का स्वाद अपने घर द्वार पर ही चखने को मिलता है. लेकिन बीते कुछ सालों से मौसम में हो रहे बदलाव के चलते इसका सेब उत्पादन पर बुरा असर भी पड़ रहा है. बीते दिन हिमाचल प्रदेश के विभिन्न ऊंचाई वाले इलाकों में जमकर बर्फबारी हुई. ऐसे में बागवानी विभाग व बागवानों को उम्मीद है कि जल्द ही सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएंगे. जिसके चलते इस साल सेब सीजन के दौरान फसल भी अच्छी होने की संभावना बनेगी. लेकिन अगर फिर से तापमान में वृद्धि होती है तो चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाएंगे. जिसका बुरा असर सेब की फसल पर देखने को मिलेगा.
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सामान्य से कम बारिश और बर्फबारी से सेब उत्पादन पर असर
इससे पहले भी बागवानी विभाग ने साल 2024-25 के लिए 2 करोड़ 91 लाख 42 हजार 800 सेब की पेटियों के उत्पादन रहने का अनुमान लगाया था, लेकिन प्रदेश की विभिन्न मंडियों से भेजे गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में साल 2024 में सेब की पैदावार 2 करोड़ 9 लाख 43 हजार 552 पेटियां हुई है, जो विभाग के अनुमान के मुताबिक 82 लाख पेटियों कम हुई हैं. सेब का उत्पादन कम होने की वजह खराब मौसम रहा है. साल 2023 में सर्दियों के मौसम में सामान्य से कम बारिश और बर्फबारी हुई. जिस कारण सेब के पेड़ के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स कम रहे. जिससे पौधों में फ्लावरिंग बराबर नहीं हुई और इसका असर बाद में सेब की सेटिंग पर हुआ. उसके बाद गर्मियों के सीजन में बारिश भी सामान्य से कम हुई, जिससे जमीन में पर्याप्त नमी न रहने से सेब के साइज और क्वालिटी पर असर नजर आया.
2024 में हिमाचल में सेब उत्पादन का लगाया गया अनुमान
बागवानी विभाग के अनुसार 2024 में हिमाचल में सेब उत्पादन का 2 करोड़ 91 लाख 42 हजार 800 पेटियां सेब उत्पादन का अनुमान लगाया गया था. इसमें सबसे अधिक सेब जिला शिमला में 1,60,99,550 पेटियां होने की संभावना जताई गई थी. प्रदेश में सबसे अधिक सेब जिला शिमला में ही होता है. वहीं, कुल्लू जिले में 62,70,600 सेब पेटियां होने की संभावना जताई गई थी. किन्नौर जिले में 33,32,200 सेब की पेटियां होने का अनुमान लगाया गया था. मंडी जिले में 24,47,250, चंबा जिले में 5,98,150 पेटियां, सिरमौर जिले में भी सेब उत्पादन 3,09,400 पेटियां होने का अनुमान जताया गया था. इसके अतिरिक्त लाहौल स्पीति में 64,050, कांगड़ा में 15,000, सोलन में 4,900, बिलासपुर में 1300, हमीरपुर में 350 और ऊना जिले में सबसे कम 50 पेटियां सेब उत्पादन रहने का अनुमान लगाया गया था.
हिमाचल की अर्थव्यवस्था में बागवानी का योगदान
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी का योगदान करीब 6 हजार करोड़ का है. प्रदेश में बागवानी के तहत कुल 2,36,950 हेक्टेयर पड़ता है. जिसमें सेब का हिस्सा करीब 85 फीसदी है. हिमाचल में साल 2023-24 में 1,16,240 हेक्टेयर भूमि सेब बागवानी के तहत आता है. इसी तरह से 27,373 हेक्टेयर में स्टोन फ्रूट की बागवानी की जाती हैं. ड्राई फ्रूट का उत्पादन 9,277 हेक्टेयर में किया जा रहा है. सिट्रस फल के तहत बागवानी का 26,432 हेक्टेयर एरिया कवर होता है. प्रदेश में वर्ष 1950-51 में 400 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती थी. अब यह क्षेत्र 2023-24 में अब बढ़कर में 1,16,240 हेक्टेयर तक फैल गया है.
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सेब की वैरायटी के अनुसार होना चाहिए चिलिंग आवर्स
हिमाचल में सेब सहित अन्य फलों के लिए भी चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. बागवानी विभाग विशेषज्ञ डॉक्टर उत्तम पराशर ने कहा, "सेब की रेड डिलीशियस वैरायटी के लिए सबसे अधिक 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. वहीं, रॉयल सेब के लिए 1000 से 1100 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. स्पर वैरायटी सेब के लिए 800 से 900 घंटे व गाला प्रजाति सेब के लिए 700 से 800 घंटे तक के चिलिंग आवर्स पूरा होना आवश्यक है. इसी तरह से स्टोन फ्रूट में प्लम के लिए 300 से 400 घंटे, खुबानी के लिए 300 से 400 घंटे, नाशपाती के लिए 700 से 800 घंटे व अंगूर के लिए 300 से 400 घंटे और चेरी के लिए 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. मौसम जब अच्छा साथ दे तो ही सेब सहित स्टोन फ्रूट का उत्पादन अच्छा रहता है".
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तापमान में बढ़ोतरी की वजह से रुका चिलिंग आवर्स
साल 2024 के दिसंबर महीने में ही कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हो गया था. प्रदेश में ऐसा 20 साल बाद हुआ था कि दिसंबर महीने में चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हुआ था. लेकिन साल 2025 के जनवरी महीने में बारिश और बर्फबारी न होने से तापमान में वापस बढ़ोतरी दर्ज की गई. जिस कारण चिलिंग आवर्स का पीरियड रुक गया था. प्रदेश में इस दौरान चिलिंग आवर्स के केवल 300 घंटे ही पूरे हो पाए हैं. लेकिन अब बारिश-बर्फबारी के बाद फिर से चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होने से बागवानों में अच्छी पैदावार की उम्मीद जगी है. बागवानों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भी मौसम यू ही बना रहे और आसमान से बारिश-बर्फबारी होते रहे.
चिलिंग आवर्स क्या होता है?
बागवानी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सर्दियों के मौसम में जब एक हफ्ते तक 24 घंटे तापमान सामान्य तौर पर 0 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है तो उसे चिलिंग आवर्स कहते हैं. इससे ही चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होता है. हिमाचल में सेब सहित अन्य फलों के चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर महीने से मार्च महीने तक रहता है. इस दौरान दिसंबर और जनवरी महीने में कड़ाके की ठंड रहने से चिलिंग आवर्स पूरा होने की संभावना रहती है. इसके लिए दिसंबर महीने की बर्फबारी किसी संजीवनी से कम नहीं है.
हिमाचल में करीब 76 फीसदी क्षेत्र में होता है फल उत्पादन
बागवानी विभाग के अनुसार साल 2010-11 में जहां प्रदेश में 8.7 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर सेब उत्पादन हुआ था. वहीं 2023-24 में यह आंकड़ा घटकर 4.3 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर रह गया. इसका मुख्य कारण मौसम में हो रहे बदलाव और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति का खत्म होना माना जा रहा है. वैज्ञानिकों के अनुसार कभी ज्यादा बारिश और ओले पड़ने और कभी दो से तीन महीने तक लगातार सूखा पड़ने से फसलों के उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. हिमाचल में फल उत्पादन करीब 76 फीसदी क्षेत्र में होता है, जिसमें 46 प्रतिशत में सेब की खेती की जाती है.
देश में फलों की मांग तेजी से बढ़ रही
वहीं, बढ़ती जनसंख्या और संतुलित आहार के प्रति जागरूकता के कारण भारत में फलों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए मौजूदा बगीचों में उत्पादन में सुधार करना आवश्यक है. कुछ वर्षों में राज्य में सेब उत्पादकता में काफी गिरावट आई है. खराब प्रबंधन पद्धतियां, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्याधिक निर्भरता के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव हिमाचल प्रदेश के एक समय फलते-फूलते सेब उद्योग के लिए गंभीर चुनौती बन गए हैं.
कूल्लू में बीते 5 सालों में सेब उत्पादन का आंकड़ा
जिला कुल्लू की अगर बात करें तो साल 2019 में 38 लाख, साल 2020 में 65 लाख, साल 2021 में 46 लाख, साल 2022 में 56 लाख, साल 2023 में 72 लाख और साल 2024 में 51 लाख सेब की पेटियों का उत्पादन हुआ हैं. बीते दिनों जिला कुल्लू की बर्फबारी से 60 पंचायतें ढकी हुई है और इन सभी पंचायत में सेब के बगीचे लगाए गए हैं. अब बागबानो को उम्मीद है कि सेब के लिए जल्द चिलिंग आवर्स पूरे होंगे.
बारिश और बर्फबारी से सेब के बगीचे में लौट आई नमी
घाटी के बागवान अमर ठाकुर, रोशन लाल, पंकज शर्मा का कहना है कि इस साल बर्फबारी कम न होने से भी इसका असर देखने को मिल रहा है और बारिश नहीं होने से भी बगीचों से नमी गायब है. बीते दिन की बारिश बर्फबारी से बगीचे में नमी लौट आई है. लेकिन अभी तक चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाए हैं. अब उन्हें उम्मीद है कि मार्च माह तक चिलिंग आवर्स पूरे होंगे. ताकि इस साल सेब की फसल अच्छी हो सके.
सेब के लिए चिलिंग आवर्स काफी अहम
जिला कुल्लू बागवानी विभाग में तैनात विशेषज्ञ डॉक्टर उत्तम पराशर ने कहा, "सेब के लिए चिलिंग आवर्स का पूरा होना काफी आवश्यक है. ऐसे में जिन-जिन इलाकों में बर्फबारी हुई है. वहां पर चिलिंग आवर्स के जल्द पूरा होने की उम्मीद है. इसके अलावा बगीचों में भी अब लोगों को रासायनिक दवाओं और खाद के प्रयोग से बचना होगा. ताकि सेब की फसल पर इसका बुरा असर ना हो. आने वाले समय में अगर फिर से बारिश और बर्फबारी होती है तो चिलिंग आवर्स का दौरा पूरा हो जाएगा. जिससे आने वाले समय में सेब की फसल बेहतर होगी.
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