लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रदेश में वर्ष 1993 से 1996 के बीच विभिन्न प्रबंधकीय कॉलेजों में नियुक्त किये गए अध्यापकों का विनियमितीकरण करने से इंकार करने के क्षेत्र स्तरीय कमेटी के विभिन्न आदेशों को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने कहा है कि सम्बंधित जिला विद्यालय निरीक्षकों या कॉलेजों के सम्बंधित मैनेजमेंट से याची अध्यापकों के रिकॉर्ड मंगाकर, उन्हें सुनवाई का पूरा मौका देते हुए, नियमानुसार विनियमितीकरण पर निर्णय लिया जाए. न्यायालय ने तीन माह में यह कार्रवाई पूर्ण करने का आदेश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने तीरथराज समेत लगभग तीन दर्जन से अधिक अध्यापकों की याचिकाओं को मंजूर करते हुए पारित किया. न्यायालय ने कहा कि सरकार से एक कल्याणकारी सरकार की तरह न्यायोचित और पारदर्शी तरीके से काम करने की अपेक्षा है. न्यायालय ने कहा कि याचीगण पिछले दो दशक से अधिक समय से काम कर रहे हैं. उनकी नियुक्ति प्रदेश के दूरदराज इलाकों में उस समय की गई थी, जब शिक्षकों की काफी कमी थी. याचियों ने क्षेत्र स्तरीय कमेटी के आदेशों को चुनौती दी थी जिनमें यह कहकर याचियों का विनियमितीकरण करने से इंकार कर दिया गया था कि जिला विद्यालय निरीक्षक या प्रबंध तंत्र ने उनका आवश्यक दस्तावेज नहीं प्रेषित किया.
इस पर न्यायालय ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक स्वयं क्षेत्र स्तरीय कमेटी का सदस्य होता है, ऐसे में जिस तर्क के आधार याचियों के खिलाफ आदेश पारित हुआ है, वह समझ से परे है. न्यायालय ने कहा कि याचियों को सुनवाई का भी मौका नहीं दिया गया है. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने सभी याचिकाओं को मंजूर कर लिया और याचियों के विनियमितीकरण के बारे में नए सिरे से निर्णय लेने का आदेश जारी किया है.
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