कुल्लू: ये धरती हमारी सबसे बड़ी धरोहर है. इसका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है. इसी के तहत यूनेस्को कई प्राकृतिक स्थलों को विश्व धरोहर के रूप में अपनी सूची में शामिल करता है. इनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हर साल 19 से 25 नवंबर तक विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जाता है. भारत में 7 भी प्राकृतिक स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल हैं. इनमें कुल्लू में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भी शामिल है. ये पार्क जैव विविधता से स्मृद्ध है. इसके साथ ही ये पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है.
हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता को देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब सराहा जाता है. यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर घोषित किया गया ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भी इस खूबसूरती को चार चांद लगाता है. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जहां दुर्लभ प्रजातियां आज सुरक्षित हो रही है. वहीं, इसकी प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के लिए भी देश-विदेश से सैलानी यहां पहुंच रहे हैं.
यहां मिलता है जैव विविधता का अद्भुत नजारा
कुल्लू जिले में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भारत के बहुत ही खूबसूरत नेशनल पार्क में से एक है. ये पार्क हरे भरे शंकुधारी वनों, घास के मैदानों, ग्लेशियर, पर्वत चोटियों और जेव विविधता का अद्भुत नजारा पेश करता है और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
सुरक्षा के किए किए गए हैं खास इतंजाम
इस पार्क का बायो डायवर्सिटी संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत इसकी सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए हैं. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षित क्षेत्र में एशियाई काले भालू, हिमालयी कस्तूरी मृग, नीली भेड़, हिमालयी ताहर, हिम तेंदुआ, पश्चिमी ट्रैगोपान आदि अनेक जीव प्रजातियाँ पायी जाती हैं.
साल 2010 में सैंज और तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य को भी ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में शामिल कर लिया गया था. इसके अलावा ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की सीमाएं 2010 में स्थापित खीरगंगा राष्ट्रीय पार्क 710 वर्ग किमी, ट्रांस हिमालय में स्थित पिन वैली राष्ट्रीय पार्क 675 वर्ग किमी, सतलुज जल विभाजक में स्थित रूपी-भाभा वन्यजीव अभयारण्य 503 वर्ग किमी और कानावर वन्यजीव अभयारण्य 61 वर्ग किमी से मिलती हैं. ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय पार्क संरक्षण क्षेत्र में जीवानाला, सैंज और तीर्थन नदी, उत्तर-पश्चिम की ओर बहने वाली पार्वती नदी का जल उद्गम शामिल है.
कस्तूरी मृग और नीली भेड़ों का होता है दीदार
साल 2022-23 में तीर्थन में 25 नीली भेड़ें दिखी थीं. इस बार मार्च माह में हुए सर्वेक्षण में ये जानकारी सामने आई है कि इस समूह में 53.84 प्रतिशत मादा नीली भेड़ें, 23 प्रतिशत नर और 24 प्रतिशत मेमने हैं. नीली भेड़ें आम तौर पर 3000 से 5500 मीटर ऊंचाई तक पाई जाती हैं. पार्क के डेलथाच में दो, डराशड, डवाराथाच, कशालधार, रधौनी में एक-एक कस्तूरी मृग गणना के दौरान देखा गया है. इसके अलावा डेलथाच में सबसे ऊंचाई पर कस्तूरी मृग पाया गया है. 33.33 प्रतिशत कस्तूरी मृग प्रति दो किलोमीटर में पाए गए हैं. इस पार्क के क्षेत्र में बर्फानी तेंदुआ, ब्लू शीप, सीरो जैसे जानवर भी पाए जाते हैं. वन विभाग भी पार्क में जानवरों सुरक्षा के लिए समय-समय पर जरूरी कदम उठाए जाते हैं.
दो जोन में बंटा है पार्क
हिमालयन नेशनल पार्क का 754.4 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कोर जोन, 265.6 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ईकोजोन में आता है. 61 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य और 90 किलोमीटर वर्ग का क्षेत्र सैंज वन्यजीव अभयारण्य भी इसी नेशनल पार्क में आता है. सम्पूर्ण पार्क 1,171 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है.
जिला कुल्लू के पर्यावरणविद् गुमान सिंह का कहना है कि, 'ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद यहां पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है और कुल्लू जिला का नाम भी पूरी दुनिया मैं रोशन हुआ है. ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क एक ऐसा पार्क है जहां पर कई दुर्लभ जीव जंतु आज भी खुले में विचरण कर रहे हैं और कई जड़ी बूटियां भी विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद यहां पर सुरक्षित हो रही हैं. हालांकि पार्क क्षेत्र में कई गांव भी है और यहां पर सड़क सहित अन्य का निर्माण कार्यों पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन ग्रामीण इससे खुश हैं और यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में वन विभाग के साथ-साथ ग्रामीण भी अपना सहयोग दे रहे हैं.'
तितलियों का स्वर्ग है ये पार्क
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की अगर बात करे तो यहां पाए जाने वाली तितलियां में कॉमन विंडमिल, ग्लासी ब्लू बोटल, यलो स्वैलो वटेल, रीगल अपोलो, कॉमन ब्लू अपोलो, कॉमन पीकॉक, ब्लू पीकॉक, लाइम बटरफ्लाई, पायरट मोरमोर्न ब्रिम्स्टोन, हिमालयन ब्लैक वेन सहित 51 प्रजाति की तितलियां पाई जाती है. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भारतवर्ष में मात्र एक ऐसा पार्क है, जहां पर 51 प्रजाति की तितलियां एक साथ पाई जाती है. इसके अलावा हिमाचल के राज्य पक्षी जाजूराना का भी यहां संरक्षण हो रहा है.
पर्यटन को भी मिल रहा बढ़ावा
बंजार के पर्यटन कारोबारी परस राम, हरि कृष्ण, राजीव कुमार का कहना है कि, 'ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को देखने के लिए बाहरी देशों से भी सैलानी यहां पर आते हैं, जिससे यहां पर स्थानीय लोगों को भी पर्यटन के माध्यम से कारोबार मिल रहा है. इसके अलावा इको टूरिज्म को भी प्रदेश सरकार बढ़ावा दे रही है और स्थानीय महिला मंडल, युवक मंडल भी यहां पर ट्रैकिंग गाइड सहित अन्य पर्यटन गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं.'