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पुराने से पुराना दर्द होगा छू-मंतर; ये जड़ी-बूटियां गठिया, पीठ और जोड़ों की पीड़ा से देंगी राहत

राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के शोध में आए सकारात्मक परिणाम, नियमित दवाओं और पंचकर्म से 60 मरीजों को मिला फायदा

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राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के शोध में आए सकारात्मक परिणाम. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

लखनऊ: पुराने दर्द से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर सामने आई है. एक शोध में पता चला है कि पुराने दर्द से जूझ रहे मरीजों के लिए आयुर्वेदिक इलाज न केवल सुरक्षित है, बल्कि ज्यादा प्रभावी है. इसको लेकर टूड़ियागंज स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय ने हाल ही में शोध किया था, जिसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं.

आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. साची श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने विशेष रूप से वातजनित पुराने दर्द जैसे गठिया, पीठ और जोड़ों के दर्द से पीड़ित 60 मरीजों पर शोध किया. ऐसे मरीजों का इलाज के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटियों और पंचकर्म विधियों का सहारा लिया गया. जिसमें पाया गया कि पंचकर्म से इलाज और नियमित आयुर्वेदिक दवाओं से मरीजों को दर्द से काफी राहत मिली. उन्होंने कहा कि शोध के दौरान आयुर्वेदिक उपचार खासकर उन रोगियों के लिए के फायदेमंद साबित हुआ, जो पुराने दर्द से जूझ रहे थे और अन्य पैथी के इलाज से उन्हें फायदा नहीं हुआ.

इन जड़ी-बूटियों से मिली राहतः डॉ. साची श्रीवास्तव ने बताया कि गुग्गुल और अश्वगंधा जैसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से सूजन कम हुई और दर्द में कमी आई. वहीं, पंचकर्म विधि जैसे बस्ती, स्वेदन और अभ्यंग से मांसपेशियों और नसों में शक्ति का विकास हुआ, जिससे लंबे समय तक दर्द में राहत मिली. उन्होंने बताया कि इस पद्धति में रासायनिक दवाओं के मुकाबले कोई प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला, जो इसे और सुरक्षित विकल्प बनाता है.

ये योगाभ्यास करने से मिलेगी तनाव से मुक्तिः वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय के योग ऐंड अल्टरनेटिव मेडिसिन की ओर से बुधवार को केजीएमयू के सरदार पटेल ग्राउंड में योग शिविर का आयोजन किया गया. इस मौके पर नए स्टूडेंट्स को एलयू की टीम ने योग कराकर स्ट्रेस मुक्त रहने का मंत्र दिया. छात्रों को बताया कि किन-किन आसनों से छात्र शरीर को स्वस्थ्य रख सकते हैं. छात्र-छात्राओं के शारीरिक संतुलन के लिए वृक्षासन और चक्रासन का अभ्यास कराया गया. एलयू के योग विभाग के को-ऑर्डिनेटर डॉ. अमरजीत यादव ने बताया कि रीढ़ की हड्डी के लिए धनुरासन एवं नौकासन का भी अभ्यास करना चाहिए. योगाभ्यास से तनाव, चिंता, डिप्रेशन में भी लाभ मिलता है. कार्यक्रम में योग प्रशिक्षक विवेक सिंह चौहान, मोनिका सिंह, प्रीती मनुज, सविता रंजन मौजूद रहें.

यूपी में बढ़े किडनी के मरीजः वहीं, डेंगू और मलेरिया के मामले लगातार मिल रहे हैं. ठीक होने के बावजूद ये बीमारियां भी किडनी संबंधी समस्याएं पैदा कर रही हैं. इंडियन जर्नल ऑफ नेफ्रोलॉजी जर्नल में प्रकाशित संजय गांधी पीजीआई के अध्ययन के मुताबिक स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार सुधार के बावजूद अभी भी किडनी संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए व्यवस्था नाकाफी है.

वर्तमान में एक लाख 92 हजार मरीजः रिपोर्ट के अनुसार सेप्सिस, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां एक्यूट किडनी इंजरी (गुर्दे को गंभीर नुकसान) की वजह बनते हैं. एक्यूट किडनी इंजरी स्थायी समस्या में बदल जाती है. वर्ष 2023 में केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य पर जीडीपी का सिर्फ 2.1 फीसदी खर्च हुआ. वहीं, प्रदेश में बजट का 7.2 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया. इसके बावजूद किडनी संबंधी समस्याओं के इलाज की हालत बहुत अच्छी नहीं है. इस समय प्रदेश में करीब एक लाख 92 हजार मरीज हैं और करीब 48 हजार बीमारी के अंतिम चरण में हैं. यह अध्ययन प्रो. नारायण प्रसाद, डॉ. जे कुमार मेयप्पन और वीरांकी वम्सीधर ने किया है.

नेफ्रोलॉजिस्ट की भारी कमीः रिपोर्ट के मुताबिक इस समय प्रदेश के 35 सरकारी और 32 निजी मेडिकल कॉलेजों में से सिर्फ आठ में ही किडनी विशेषज्ञ यानी नेफ्रोलॉजिस्ट की तैनाती है. कुल 45 नेफ्रोलॉजिस्ट में से ज्यादातर राजधानी लखनऊ में ही हैं. सिर्फ छह सरकारी संस्थानों में प्रत्यारोपण की व्यवस्थास्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक प्रदेश में प्रत्यारोपण के लिए कुल 23 केंद्र- सार्वजनिक क्षेत्र में सिर्फ 6 और निजी क्षेत्र में 17 हैं. इनमें भी 15 अकेले राजधानी में हैं. संजय गांधी पीजीआई और लोहिया संस्थान में यह सुविधा मौजूद है.

इसे भी पढ़ें-70 साल के बुजुर्ग हैं, आयुष्मान कार्ड से इलाज चाहिए, ये काम करें...

लखनऊ: पुराने दर्द से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर सामने आई है. एक शोध में पता चला है कि पुराने दर्द से जूझ रहे मरीजों के लिए आयुर्वेदिक इलाज न केवल सुरक्षित है, बल्कि ज्यादा प्रभावी है. इसको लेकर टूड़ियागंज स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय ने हाल ही में शोध किया था, जिसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं.

आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. साची श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने विशेष रूप से वातजनित पुराने दर्द जैसे गठिया, पीठ और जोड़ों के दर्द से पीड़ित 60 मरीजों पर शोध किया. ऐसे मरीजों का इलाज के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटियों और पंचकर्म विधियों का सहारा लिया गया. जिसमें पाया गया कि पंचकर्म से इलाज और नियमित आयुर्वेदिक दवाओं से मरीजों को दर्द से काफी राहत मिली. उन्होंने कहा कि शोध के दौरान आयुर्वेदिक उपचार खासकर उन रोगियों के लिए के फायदेमंद साबित हुआ, जो पुराने दर्द से जूझ रहे थे और अन्य पैथी के इलाज से उन्हें फायदा नहीं हुआ.

इन जड़ी-बूटियों से मिली राहतः डॉ. साची श्रीवास्तव ने बताया कि गुग्गुल और अश्वगंधा जैसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से सूजन कम हुई और दर्द में कमी आई. वहीं, पंचकर्म विधि जैसे बस्ती, स्वेदन और अभ्यंग से मांसपेशियों और नसों में शक्ति का विकास हुआ, जिससे लंबे समय तक दर्द में राहत मिली. उन्होंने बताया कि इस पद्धति में रासायनिक दवाओं के मुकाबले कोई प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला, जो इसे और सुरक्षित विकल्प बनाता है.

ये योगाभ्यास करने से मिलेगी तनाव से मुक्तिः वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय के योग ऐंड अल्टरनेटिव मेडिसिन की ओर से बुधवार को केजीएमयू के सरदार पटेल ग्राउंड में योग शिविर का आयोजन किया गया. इस मौके पर नए स्टूडेंट्स को एलयू की टीम ने योग कराकर स्ट्रेस मुक्त रहने का मंत्र दिया. छात्रों को बताया कि किन-किन आसनों से छात्र शरीर को स्वस्थ्य रख सकते हैं. छात्र-छात्राओं के शारीरिक संतुलन के लिए वृक्षासन और चक्रासन का अभ्यास कराया गया. एलयू के योग विभाग के को-ऑर्डिनेटर डॉ. अमरजीत यादव ने बताया कि रीढ़ की हड्डी के लिए धनुरासन एवं नौकासन का भी अभ्यास करना चाहिए. योगाभ्यास से तनाव, चिंता, डिप्रेशन में भी लाभ मिलता है. कार्यक्रम में योग प्रशिक्षक विवेक सिंह चौहान, मोनिका सिंह, प्रीती मनुज, सविता रंजन मौजूद रहें.

यूपी में बढ़े किडनी के मरीजः वहीं, डेंगू और मलेरिया के मामले लगातार मिल रहे हैं. ठीक होने के बावजूद ये बीमारियां भी किडनी संबंधी समस्याएं पैदा कर रही हैं. इंडियन जर्नल ऑफ नेफ्रोलॉजी जर्नल में प्रकाशित संजय गांधी पीजीआई के अध्ययन के मुताबिक स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार सुधार के बावजूद अभी भी किडनी संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए व्यवस्था नाकाफी है.

वर्तमान में एक लाख 92 हजार मरीजः रिपोर्ट के अनुसार सेप्सिस, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां एक्यूट किडनी इंजरी (गुर्दे को गंभीर नुकसान) की वजह बनते हैं. एक्यूट किडनी इंजरी स्थायी समस्या में बदल जाती है. वर्ष 2023 में केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य पर जीडीपी का सिर्फ 2.1 फीसदी खर्च हुआ. वहीं, प्रदेश में बजट का 7.2 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया. इसके बावजूद किडनी संबंधी समस्याओं के इलाज की हालत बहुत अच्छी नहीं है. इस समय प्रदेश में करीब एक लाख 92 हजार मरीज हैं और करीब 48 हजार बीमारी के अंतिम चरण में हैं. यह अध्ययन प्रो. नारायण प्रसाद, डॉ. जे कुमार मेयप्पन और वीरांकी वम्सीधर ने किया है.

नेफ्रोलॉजिस्ट की भारी कमीः रिपोर्ट के मुताबिक इस समय प्रदेश के 35 सरकारी और 32 निजी मेडिकल कॉलेजों में से सिर्फ आठ में ही किडनी विशेषज्ञ यानी नेफ्रोलॉजिस्ट की तैनाती है. कुल 45 नेफ्रोलॉजिस्ट में से ज्यादातर राजधानी लखनऊ में ही हैं. सिर्फ छह सरकारी संस्थानों में प्रत्यारोपण की व्यवस्थास्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक प्रदेश में प्रत्यारोपण के लिए कुल 23 केंद्र- सार्वजनिक क्षेत्र में सिर्फ 6 और निजी क्षेत्र में 17 हैं. इनमें भी 15 अकेले राजधानी में हैं. संजय गांधी पीजीआई और लोहिया संस्थान में यह सुविधा मौजूद है.

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