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होली में केमिकल रंगों से कीजिए तौबा! ले आइये, फल-फूल, पान पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से तैयार रंग-गुलाल

Herbal colors for Holi in Ranchi. रांची में होली के लिए रंगों का बाजार धीरे-धीरे सजने लगा है. बाजार में हर्बल रंग और गुलाल को लेकर मांग भी काफी है. इसमें खास है फल, फूल, पान का पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से बना हर्बल रंग और गुलाल. जानिए, कहां और किनके द्वारा किया जा रहा इन रंगों का निर्माण.

Herbal colors and Gulal from fruits flowers and Multani Mitti for Holi in Ranchi
रांची में होली के लिए फल फूल और मुल्तानी मिट्टी से हर्बल रंग और गुलाल का निर्माण
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 14, 2024, 8:34 PM IST

फल, फूल, पान का पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से बना हर्बल रंग और गुलाल, जानें इसकी खासियत

रांचीः रंगों का त्योहार होली बेहद करीब आ चुका है. होली में रंग और गुलाल का बहुत महत्व होता है. अब लोग हर्बल गुलाल और रंगों को पसंद कर रहे हैं ताकि होली के दौरान चेहरे में केमिकल का रिएक्शन न हो जाए. यही वजह है कि अब राजधानी रांची में भी फल, फूल, पान पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से बने रंग गुलाल बनाए जा रहे हैं. जिनकी मांग भी होली के बाजार में लगातार बढ़ रही है.

हाथों से रंग बनाकर शुरू किया था कारोबारः

रांची शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुपुदाना के साई मंदिर के पास आपको बेहद किफायती दर पर हर्बल रंग और गुलाल मिलेंगे. रांची के कारोबारी अंशुल गुप्ता ने पांच साल पहले फल, फूल, पान के पत्तो और मुल्तानी मिट्टी से रंग और गुलाल बनाना शुरू किया, जिसमें स्थानीय महिलाओं की बहुत ज्यादा भागीदारी रही. स्थानीय महिलाओं के इस के कारोबार से जुड़ने की वजह से अंशुल गुप्ता को लोकल फूल मिलने में काफी सहूलियत हुई. जब उनका कारोबार बढ़ा तो अब रंग-गुलाल बनाने के लिए मशीनें भी लगा ली गयी हैं, जिसके वजह से उत्पादन काफी बढ़ गया है. एक समय में कभी केवल रांची के बाजार में बिकने वाला रंग और गुलाल अब हरियाणा, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में भी बेची जा रही है.

बेहद सुरक्षित है हर्बल रंग और गुलालः

होली के अवसर पर कोई भी ऐसे रंग गुलाल का प्रयोग नहीं करना चाहता है, जिसकी वजह से उनका चेहरा खराब हो या फिर उसके केमिकल शरीर या त्वचा पर बुरा असर डाले. कारोबारी अंशुल गुप्ता और ग्रामीणों के सहयोग से जो हर्बल रंग गुलाल तैयार किया जा रहा है, वह पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों से बना हुआ है, इसमें किसी भी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं किया गया है. फल, फूल और पान पत्ते को गाद के रूप में बदलकर उन्हें बेहद बारीक तरीके से गुलाल में ढाला जाता है. इसके अलावा इसमें मुल्तानी मिट्टी का भी प्रयोग किया जाता है.

दिल्ली के कारोबारी राकेश राजदान बताते हैं कि रांची में बनने वाला हर्बल गुलाल बिल्कुल सुरक्षित हैं. यह अगर यह रंग और गुलाल मुंह के अंदर भी चला जाता है तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है बल्कि चेहरे के लिए तो यह पूरी तरह से सुरक्षित है. कारोबारी राकेश के अनुसार वे पिछले तीन सालों से रांची से ही गुलाल लेकर दिल्ली जाते हैं और वहां के बाजार में सप्लाई करते हैं.

स्थानीय महिलाओं को मिला रोजगारः

हर्बल रंग गुलाल के इस कारोबार में सबसे ज्यादा भागीदारी लोकल महिलाओं की है. गुलाल और रंग बनाने से लेकर उसकी पैकिंग तक की जिम्मेदीरी महिलाओं ने संभाल रखा है. हर्बल गुलाल बनाने वाली महिलाएं भी अपने घर में रोजगार पाकर काफी खुश हैं.

इसे भी पढ़ें- Palamu Herbal Holi: पालक साग और पलाश के फूल से मनेगी पलामू में होली, 30 लाख से ऊपर होगा हर्बल रंगें का कारोबार

इसे भी पढे़ं- होली पर दिल खोलकर खेलिए अबीर गुलाल, हजारीबाग की महिलाएं बना रहीं ऐसा हर्बल गुलाल जो नहीं करेगा चेहरा खराब

इसे भी पढ़ें- Holi 2023: होली को लेकर सज गए रांची के बाजार, मोदी मुखौटा खरीदने की मची होड़, रंग-गुलाल और पिचकारी की भी जमकर हो रही बिक्री

फल, फूल, पान का पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से बना हर्बल रंग और गुलाल, जानें इसकी खासियत

रांचीः रंगों का त्योहार होली बेहद करीब आ चुका है. होली में रंग और गुलाल का बहुत महत्व होता है. अब लोग हर्बल गुलाल और रंगों को पसंद कर रहे हैं ताकि होली के दौरान चेहरे में केमिकल का रिएक्शन न हो जाए. यही वजह है कि अब राजधानी रांची में भी फल, फूल, पान पत्ता और मुल्तानी मिट्टी से बने रंग गुलाल बनाए जा रहे हैं. जिनकी मांग भी होली के बाजार में लगातार बढ़ रही है.

हाथों से रंग बनाकर शुरू किया था कारोबारः

रांची शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुपुदाना के साई मंदिर के पास आपको बेहद किफायती दर पर हर्बल रंग और गुलाल मिलेंगे. रांची के कारोबारी अंशुल गुप्ता ने पांच साल पहले फल, फूल, पान के पत्तो और मुल्तानी मिट्टी से रंग और गुलाल बनाना शुरू किया, जिसमें स्थानीय महिलाओं की बहुत ज्यादा भागीदारी रही. स्थानीय महिलाओं के इस के कारोबार से जुड़ने की वजह से अंशुल गुप्ता को लोकल फूल मिलने में काफी सहूलियत हुई. जब उनका कारोबार बढ़ा तो अब रंग-गुलाल बनाने के लिए मशीनें भी लगा ली गयी हैं, जिसके वजह से उत्पादन काफी बढ़ गया है. एक समय में कभी केवल रांची के बाजार में बिकने वाला रंग और गुलाल अब हरियाणा, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में भी बेची जा रही है.

बेहद सुरक्षित है हर्बल रंग और गुलालः

होली के अवसर पर कोई भी ऐसे रंग गुलाल का प्रयोग नहीं करना चाहता है, जिसकी वजह से उनका चेहरा खराब हो या फिर उसके केमिकल शरीर या त्वचा पर बुरा असर डाले. कारोबारी अंशुल गुप्ता और ग्रामीणों के सहयोग से जो हर्बल रंग गुलाल तैयार किया जा रहा है, वह पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों से बना हुआ है, इसमें किसी भी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं किया गया है. फल, फूल और पान पत्ते को गाद के रूप में बदलकर उन्हें बेहद बारीक तरीके से गुलाल में ढाला जाता है. इसके अलावा इसमें मुल्तानी मिट्टी का भी प्रयोग किया जाता है.

दिल्ली के कारोबारी राकेश राजदान बताते हैं कि रांची में बनने वाला हर्बल गुलाल बिल्कुल सुरक्षित हैं. यह अगर यह रंग और गुलाल मुंह के अंदर भी चला जाता है तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है बल्कि चेहरे के लिए तो यह पूरी तरह से सुरक्षित है. कारोबारी राकेश के अनुसार वे पिछले तीन सालों से रांची से ही गुलाल लेकर दिल्ली जाते हैं और वहां के बाजार में सप्लाई करते हैं.

स्थानीय महिलाओं को मिला रोजगारः

हर्बल रंग गुलाल के इस कारोबार में सबसे ज्यादा भागीदारी लोकल महिलाओं की है. गुलाल और रंग बनाने से लेकर उसकी पैकिंग तक की जिम्मेदीरी महिलाओं ने संभाल रखा है. हर्बल गुलाल बनाने वाली महिलाएं भी अपने घर में रोजगार पाकर काफी खुश हैं.

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