शिमला: हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम को आदेश दिए हैं कि अपनी इकाइयों से जुड़ी सेवाओं या संपत्तियों को किसी भी निजी व्यक्ति या संस्था को तब तक नहीं देगा जब तक निगम को संबंधित संस्था या निजी व्यक्ति द्वारा देय अस्थायी राशि का कम से कम 80 फीसदी भुगतान ना हो जाए.
यह आदेश विवाह और पार्टियों के लिए संपत्तियों को किराये पर देने के मामलों में लागू होगा, ना कि मेहमानों के साथ दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि संबंधित इकाई के प्रभारी अधिकारियों में से कोई भी इस संबंध में गलती करता है, तो वह अधिकारी पर्यटन निगम के नुकसान की भरपाई करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा.
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने एचपीटीडीसी द्वारा संचालित सभी इकाइयों के विवरण भी अदालत के समक्ष पेश करने के आदेश दिए हैं. एचपीटीडीसी को यह आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा है कि यह इकाइयां चाहे होटल हों या रेस्तरां हों, इनके द्वारा अर्जित आय के बारे में न्यायालय को सूचित किया जाए.
कोर्ट ने पर्यटन निगम के होटलों के कमरों का विवरण और इनसे हुई आय का विवरण भी मांगा है. कोर्ट ने पर्यटन विकास निगम द्वारा रिटायर कर्मचारियों के सेवा लाभ देने में होने वाली देरी से जुड़े मामले में राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह 30 नवंबर तक निगम की सभी लंबित देनदारियों का भुगतान कर दे.
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि हिमाचल प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों ने 4 करोड़ 13 लाख 41 हजार 848 रुपये की बकाया राशि में से 1 करोड़ 68 लाख 22 हजार 370 रुपये की अदायगी निगम को कर दी है. कोर्ट को यह भी बताया गया कि निजी संस्थाओं ने पर्यटन निगम की बकाया राशि 1 करोड़ 6 लाख 28 हजार 422 में से 47 लाख 7 हजार 403 रुपये चुका दिए हैं. निगम द्वारा कोर्ट से आउटसोर्स पर नियुक्ति को लेकर लगाई रोक को हटाने की गुहार भी लगाई गई थी जिस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई के दिन विचार करने के आदेश जारी किए.
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