चंडीगढ़: हरियाणा में अगले महीने यानी सितंबर में विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने की संभावना है. इससे पहले सत्ताधारी बीजेपी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से कांटे की टक्कर के बाद उन सभी वर्गों को साधने में जुटी है जो लोकसभा चुनाव में खुलकर उसके विरोध में थे. खासतौर पर किसानों को साधने की बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है. वहीं अग्निवीरों के भविष्य को लेकर भी राज्य सरकार ने अपनी मंशास्पष्ट कर दी है. साथ ही नौकरियों का पिटारा खोलकर युवाओं को भी साधा जा रहा हैं.
किसानों और सरपंचों को साधने की कोशिश: लोकसभा चुनाव में ग्रामीण वोट बैंक का नुकसान खासतौर पर किसानों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ी थी. इस बात को पार्टी भी जानती है. यह नाराजगी विधानसभा चुनावों में भारी न पड़े इसके लिए सरकार अब किसानों पर फोकस कर रही है. इसी का परिणाम है कि प्रदेश सरकार ने दस और फसलों पर एमएसपी देने की बात कही है, और कैबिनेट में इसको मंजूरी भी मिल गई है. इसके साथ ही अबियाना को भी समाप्त किया गया है. टयूबवेल लगाने के मामले में भी सकारात्मक कदम उठाया गया है. इतना ही नहीं किसानों के मुआवजे की बकाया रकम भी सरकार जल्द जारी करने वाली है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सरपंचों की भी भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा था. विधानसभा चुनाव में इसका असर न हो, इसको लेकर पहले ही सरकार कदम उठा चुकी है. फिर चाहे बात सरपंचों की खर्च करने की पवार पांच लाख से 21 लाख करना हो या फिर उनके सम्मान की बात हो सरकार पहले ही इसको लेकर कदम उठा चुकी है.
नौकरियों के लिए लगातार हो रहे विज्ञापन जारी: विपक्ष लगातार हरियाणा में बेरोजगारी का मुद्दा उठाता रहा है. प्रदेश में विभिन्न विभागों में दो लाख पदों के खाली होने की बात करता रहा है. लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा भी सरकार पर भारी पड़ा. हालांकि प्रदेश सरकार हमेशा कहती रही है कि पूर्व की दस साल की हुड्डा सरकार से कई गुना ज्यादा रोजगार बीजेपी ने दस साल की सरकार में दिया, वो भी बिना पर्ची खर्ची के. बावजूद इसके सरकार जानती है कि यह मुद्दा विधानसभा चुनाव में उसको भारी पड़ सकता है. इसलिए अब जल्द से जल्द सरकार विभिन्न विभागों में भर्तियों के विज्ञापन निकाल रही है. साथ ही कई विभागों में तो नियुक्तियां भी शुरू हो गई है.
अन्य वर्गों को भी साधने की कोशिश: सरकार ने अग्निवीरो के लिए नौकरियों में आरक्षण को लेकर भी फैसला कर लिया है. इसके नियम कायदे तय करके कैबिनेट ने उसको मंजूरी भी दे दी है. इसके साथ ही बीते दिनों हरियाणा बैकवर्ड आयोग ने बीसी (बी) को शहरी निकायों और पंचायतों में आरक्षण देने को लेकर सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी. उसको भी सरकार ने मंजूर कर दिया है. प्रदेश की कई अन्य जातियों को भी लुभाने के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं. सीएम नायब सैनी ने कई अलग अलग धार्मिक संगठनों के कार्यक्रमों में शिरकत कर इस बात के संकेत दिए हैं कि बीजेपी का फोकस हर समाज के हर वर्ग पर है.
किसानों के मुद्दे पर सरकार के निशाने पर विपक्ष: हरियाणा सरकार जानती है कि उसका लक्ष्य क्या है? इसलिए किसानों की दस और फसल एमएसपी पर खरीदने के ऐलान के बाद सीएम आप और कांग्रेस दोनों को किसानों के नाम पर राजनीति करने पर लपेटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. सीएम नायब सैनी कहते हैं कि "मैं पंजाब सरकार से भी कहूंगा कि वह भी किसान की कुछ फसलें एमएसपी पर खरीदने का काम करे. कांग्रेस भी उसके शासित राज्यों में एमएसपी पर किसान की फसल खरीदने का काम करे. खाली राजनीति करने का कोई फायदा नही है."
विपक्ष कर रहा सरकार पर पलटवार: बेशक हरियाणा सरकार किसानों के हित में बड़े ऐलान कर रही हो लेकिन विपक्ष तो सरकार पर निशाने साध रहा है. कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला कहते हैं कि "हरियाणा में फसल पर एमएसपी नहीं मिलती. आप सरसों, बाजरा और आलू उगाने वाले किसान से पूछिए न भावंतर भरपाई होती है न एमएसपी मिलता है. बीजेपी सरकार बस शेखी बघारने वाली सरकार है." वहीं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी की हवा निकाल दी. जनता ने बता दिया है कि वो अब बीजेपी के किसी भ्रमजाल में नहीं फंसेगी और हरियाणा से इस सरकार का सफाया करके ही दम लेगी.
राजनीतिक विश्लेषकों की क्या है राय: सरकार की घोषणाओं को लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि "चुनाव से पहले अक्सर सभी सरकारें सत्ता में वापसी के लिए इस तरह की घोषणाएं करती है. लेकिन सवाल यह है कि जो घोषणाएं जमीनी स्तर पर उतर नहीं पाएंगी, उसका लाभ जनता को होगा या नहीं, मौजूदा सरकार पर उसका पॉजिटिव असर होगा या नहीं आंकलन करना भी आसान नहीं है. सरकार ने जैसे दस फसलों पर एमएसपी की बात की है, लेकिन अभी चुनाव से पहले तो इस तरह की कोई फसल न उगाई गई है और न ही अभी कोई खरीद होगी. इसलिए इसको किसान कैसे देखते हैं यह बड़ी बात होगी". इसके साथ ही वे कहते हैं कि अक्सर यह देखने में आता है कि चुनाव से पहले होने वाली इस तरह की घोषणाओं का मतदाता पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता है. क्योंकि जनता भी जानती है कि अब सरकार के पास वक्त कम रह गया है, ऐसे में आगे सरकार कौन सी आयेगी, जनता भी इसको लेकर दुविधा की स्थिति में रहती है. इसलिए इस तरह की घोषणाओं का चुनाव पर कोई ज्यादा असर होने की उम्मीद कम दिखाई देती है.
वहीं इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल कहते हैं कि सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले घोषणाएं करके गेंद विपक्ष के पाले में फेंक दी है. साथ ही कुछ घोषणाओं पर कैबिनेट ने मोहर भी लगा दी है. यानी भले ही वक्त सरकार के पास कम हो उसने अपनी मंशा को तो साफ कर दिया है. ऐसे में विपक्ष इसका कैसे जनता के बीच जवाब देता है, यह मायने रखता है. इसके साथ ही जनता सत्ता पक्ष की घोषणाओं और विपक्ष के उस पर जवाब पर किस तरह से प्रतिक्रिया देती यह अहम बात है. हालांकि वे इस पर कहते हैं कि जो घोषणाएं सरकार ने की हैं उसका बीजेपी राजनीतिक लाभ तो लेना चाहेगी ही, वहीं जनता पर भी किसी न किसी स्तर पर इसका असर होगा, लेकिन वह कितनों पर होगा इसका आंकलन करना संभव नहीं है. यह बात विधानसभा चुनाव के नतीजे स्पष्ट कर देंगे कि क्या जनता सरकार की घोषणाओं से सहमत है या नहीं.