चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में तीन महीने का वक्त बचा है. जिसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपना प्लान बना रखा है. विपक्ष जहां बेरोजगारी, महंगाई, किसान, सरपंचों और परिवार पहचान पत्र के साथ ही आम जनता से जुड़े मुद्दों को चुनाव में भुनाने के लिए पूरी ताकत लगा रहा है. वहीं सत्ता पक्ष भी अपनी कमियों को तेजी के साथ सुधारने में जुट गया है.
लोकसभा चुनाव में ये मुद्दे पड़े बीजेपी पर भारी? लोकसभा चुनाव में बीजेपी को विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस ने लोगों से जुड़े मुद्दे उठाकर कड़ी टक्कर दी. इसी का परिणाम रहा कि जो कांग्रेस हरियाणा में 2014 में 10 में से एक लोकसभा सीट पर जीती और 2019 में एक भी सीट नहीं जीत पाई, उसने 2024 में दस में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की. सत्ताधारी बीजेपी को मालूम है कि उसको किन मुद्दों ने लोकसभा चुनाव में नुकसान किया, इसलिए सीएम नायब सैनी लगातार उन मामलों काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं.
विपक्ष बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को लगातार घेर रहा है. इस सबके बीच हरियाणा कौशल रोजगार निगम के तहत होने वाली भर्तियों को लेकर सरकार पर हमलावर है. वहीं सामाजिक आर्थिक आधार पर पांच नंबर के मुद्दे पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी सरकार को परेशान किया है.
नायब सरकार ने खोला नौकरियों का पिटारा: राज्य सरकार ने हाल ही में एचकेआरएन के भर्ती किए गए पार्ट वन, टू और थ्री के कर्मचारियों के वेतनमान में आठ प्रतिशत वृद्धि की है, तो वहीं सामाजिक आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले पांच नंबर के बिना 15000 से अधिक भर्तियां करने के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है. करीब दस साल बाद जेबीटी के तहत 1200 के करीब भर्तियां करने की भी सरकार की तैयारी है. विधानसभा चुनाव से पहले नायब सैनी सरकार विभिन्न विभागों में बंपर भर्तियां करने जा रही है.
सरकार की सरपंचों को पाले में लाने की कोशिश: पूर्व सीएम मनोहर लाल के वक्त में सरपंचों को लेकर लिए गए फैसले से सरपंचों में गहरी नाराजगी थी. जिसके चलते लोकसभा चुनाव में खासतौर पर ग्रामीण इलाकों सरपंचों के विरोध का बीजेपी को सामना करना पड़ा. वहीं विपक्ष का भी उनको पूरा साथ मिला. यही वजह है कि नायब सैनी सरकार जानती है कि विधानसभा चुनाव में उनके लिए सरपंच सिरदर्द बन सकते हैं. इसलिए उनकी मांगों को हल करने के लिए सरकार आगे आई है. इसको देखते हुए मुख्यमंत्री नायब सैनी ने राज्य स्तरीय सरपंच सम्मेलन में कई बड़े ऐलान किए हैं."
"ई टेंडरिंग स्कीम के तहत सरपंच अब 21 लाख रुपये तक के विकास कार्य करवा सकते हैं. जिसकी पहले लिमिट 5 लाख रुपये थी. जो विकास कार्य सरपंच करवाता है और वहां कहीं पर मिट्टी का भरत किया जाता है, तो उसके पैसे भी अब सरकार देगी. किसी विकास कार्य के लिए जो एस्टीमेट सरपंच बनाकर पोर्टल पर अपलोड करते हैं, तो वो 10 दिन के अंदर पास हो जाएगा. जिससे काम में तेजी आएगी. वहीं सरपंचों को डीए भी मिलेगा. इसके साथ ही सरपंचों को लेकर सरकार ने कई ऐलान किए हैं."
सफाई कर्मचारियों को भी दिया तोहफा: मुख्यमंत्री नायब सैनी ने एक और बड़ा ऐलान किया है. उन्होंने ग्रामीण और शहरी सफाई कर्मचारियों के मानदेय को बढ़ाया है. नगर पालिका के सफाई कर्मचारियों का मानदेय 17000 किया गया है. ग्रामीण सफाई कर्मचारियों का मानदेय 16000 किया गया है.
स्टिल्ट प्लस चार मंजिल निर्माण पर भी फैसला: इस कड़ी में सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया है. जिससे हरियाणा बहुत बड़ी आबादी को फायदा मिलेगा. वो है स्टिल्ट प्लस चार मंजिल निर्माण को परमिशन देने का. जिस पर पहले रोक लग गई थी. इसकी वित्त मंत्री जेपी दलाल ने घोषणा की है कि अब स्टिल्ट प्लस चार मंजिल को कुछ नियम एंव शर्तों के आधार पर इजाजत दी गई है.
एमएसपी में वृद्धि से किसानों को साधने की कोशिश: किसानों की बात की जाए, तो वो लगातार सरकार का विरोध करते दिखाई देते हैं. किसानों के विरोध का सामना बीजेपी को लोकसभा चुनाव में करना पड़ा. इस बात को राज्य और केंद्र सरकार दोनों जानती है कि किसान उसके लिए चुनौती बने हुए हैं. इसी वजह से लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार भी एक्शन में दिखी और खरीफ सीजन के लिए 14 फसलों के एमएसपी को मंजूरी दी. वहीं हरियाणा सरकार भी प्रदेश में 14 फसलें एमएसपी पर खरीद रही है.
क्या सरकार के प्रयासों से बदल पाएगी चुनावी स्थिति? लोकसभा चुनाव में मिली कड़ी टक्कर और उसके बाद अब विधानसभा चुनाव के पास आते ही प्रदेश सरकार एक्शन मोड में दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव में जिन बातों का नतीजों में असर दिखा, सरकार उनको ठीक करने में जुटी है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या सरकार के कमियों को दुरुस्त करने की कोशिशों उसे विधानसभा चुनाव में लाभ मिल पाएगा? इस मामले में राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "अभी तक जहां भी चुनाव के ठीक पहले इस तरह की सरकार की घोषणाएं हुई हैं. उसका चुनाव पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला.
राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "हरियाणा में चुनाव आचार संहिता लगने के लिए करीब ढाई महीने का वक्त है. इतने कम समय में ये घोषणाएं जमीनी स्तर पर उतर भी पाएंगी? ये उम्मीद कम ही दिखाई देती है. सरकार की इन कोशिशों से जो लाभान्वित होने वाला वर्ग है. उसने बीते वक्त में जो देखा है. क्या वो वर्ग अब सरकार की इन कोशिशों से संतुष्ट हो जाएगा? ऐसा होने की उम्मीद कम ही दिखाई देती है. हालांकि सरकारी की इन कोशिशों के बाद जब चुनावी नतीजे सामने आएंगे, तो उस से भी इसका आकलन आसानी से हो जाएगा."
वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल ने कहा "सरकार के ये प्रयास तभी सफल हो पाएंगे जब ये जमीनी स्तर पर दिखाई देंगे. सिर्फ घोषणाओं से कोई बड़ा असर होगा, ऐसा उम्मीद करना बेइमानी होगी. चुनाव के लिए समय कम है और काम ज्यादा है. शायद इसलिए सीएम रोजाना कोई ना कोई बड़ी घोषणा कर रहे हैं, लेकिन बात सारी उसकी इंप्लीमेंटेशन की है. जब जमीनी स्तर पर ये घोषणाएं उतरेगी, लाभार्थी को उसका लाभ मिलेगा. तभी सरकार को भी उसका फायदा होगा. जनता भी मानती है कि चुनावी साल में सरकार लोक लुभावन घोषणाएं करती हैं, लेकिन उसका ज्यादा असर लोगों पर नहीं पड़ता.