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क्यों अभी तक उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं कर पाई बीजेपी और कांग्रेस, जानें दोनों पार्टी के सामने क्या हैं चुनौतियां - Haryana Assembly Election 2024

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है. दोनों ही दल अभी तक उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं कर पाई है. जानें क्या है दोनों दलों के सामने चुनौती.

Haryana Assembly Election 2024
Haryana Assembly Election 2024 (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 3, 2024, 5:45 PM IST

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है. दोनों दलों की तरफ से अभी तक उम्मीदवारों को लेकर मंथन जारी है. दस साल बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही बीजेपी अभी तक उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं कर पाई है. वहीं सत्ता में एंट्री का सपना देख रही कांग्रेस भी उम्मीदवारों के नाम पर मंथन कर रही है. दोनों ही पार्टियां अभी तक उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है. दोनों दलों यानी बीजेपी और कांग्रेस के लिए उम्मीदवार घोषित करना चुनौती बना हुआ है.

बीजेपी के सामने क्या है चुनौतियां? दस साल सत्ता में रहने वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव के बाद हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. सीईसी की बैठक होने के बाद उम्मीदवारों के नामों को लेकर चर्चा जैसे ही शुरू हुई, वैसे ही पार्टी के नेताओं की अलग-अलग आवाजें सामने आने लगी. जिसके बाद पार्टी ने उम्मीदवारों की सूची को होल्ड पर डाल दिया. ऐसा आखिर क्यों हुआ? क्यों पार्टी उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं करवाई? क्यों अभी भी पार्टी मंथन कर रही है?

बीजेपी नेताओं के बीच नाराजगी की आशंका! उम्मीद की जा रही थी कि 29 अगस्त को सीईसी की बैठक के बाद बीजेपी उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकती है, लेकिन मीडिया में बीजेपी उम्मीदवारों के नाम की सूची पर जैसे ही चर्चा शुरू हुई, उसके बाद पार्टी नेताओं के बयान आने शुरू हुए. इसके बाद पार्टी ने लिस्ट होल्ड कर दी. चर्चा होने लगी की नेताओं के बीच जिन नामों पर चर्चा हुई. इन पर नाराजगी है. इसके बाद पार्टी ने फिर से उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने और सभी नेताओं को साधने की कवायद शुरू कर दी.

बीजेपी के लिए दक्षिण हरियाणा बना चुनौती! बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बार दक्षिण हरियाणा बना हुआ है. दक्षिण हरियाणा और जीटी रोड बेल्ट ऐसे इलाके हैं. जहां से बीजेपी ने दो बार 2014 और 2019 में जीत दर्ज की. अगर पार्टी को तीसरी बार सत्ता में आना है, तो पार्टी को इन दोनों इलाकों में फिर से शानदार प्रदर्शन करना होगा. वहीं सीईसी की बैठक के बाद दक्षिण हरियाणा के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत की नाराजगी सामने आई. माना जा रहा है कि वो कम से कम 8 से 9 अपने करीबी नेताओं को चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं, लेकिन पार्टी के अंदर इसको लेकर नाराजगी भी है. खासतौर दक्षिण हरियाणा राव इंद्रजीत के साथ ही राव नरबीर और सुधा यादव जैसे नेताओं के बीच तालमेल बैठाना चुनौती बना हुआ है.

अपनों के लिए टिकट की मांग बनी चुनौती! बीजेपी के सामने इस बार हरियाणा में जहां एंटी इनकंबेंसी चुनौती बना है. वहीं दिग्गज नेताओं का अपने बेटा बेटियों के लिए टिकट की मांग भी बड़ी परेशानी बनी हुई है. एक तरफ केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत अपनी बेटी के लिए टिकट मांग कर रहे हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर बेटे के लिए दांव लगा रहे हैं. किरण चौधरी बेटी के लिए, तो नवीन जिंदल मां और पत्नी, वहीं कुलदीप बिश्नोई बेटे, भाई और करीबी के लिए टिकट मांग रहे हैं. ऐसे में बीजेपी का टिकट मंथन चुनौती बना हुआ है.

सुरक्षित सीट की तलाश में नेता: हरियाणा में दस साल से बीजेपी सत्ता में बनी हुई है. ऐसे में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का डर बना हुआ है. माना जा रहा है कि पार्टी के कई नेता अपनी मौजूदा सीट से जीत को लेकर भी आश्वस्त नहीं है. जिसकी वजह से पार्टी के कई नेता अपनी सीटों में भी बदलाव चाह रहे हैं, लेकिन पार्टी के लिए ऐसे नेताओं को एडजस्ट करना भी आसान नहीं है. जिसको लेकर पार्टी लगातार मंथन कर रही है.

टिकट कटने वालों से नाराजगी का डर: माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट पर कैंची चला सकती है. माना जा रहा है कि जिन नेताओं को उनकी टिकट कटने का डर है. वो बगावती रुख अपना सकते हैं. इसकी वजह से भी पार्टी अपनी सूची को जारी नहीं कर रही है. ऐसे में कहीं उनकी नाराजगी पार्टी को भारी ना पड़े, उसका खतरा पार्टी नहीं उठाना चाह रही है.

कांग्रेस का टिकट मंथन जारी: दस साल से हरियाणा की सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस को इस बार उम्मीद है कि उसका इन चुनाव में शानदार प्रदर्शन रहने वाला है. इसकी वजह लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं. जिसमें पार्टी के दस में से पांच सांसद लोकसभा पहुंचे हैं. फिलहाल पार्टी भी उम्मीदवारों को लेकर मंथन कर रही है. वो भी अभी कोई नाम घोषित नहीं कर पाई है.

'एक अनार, सौ बीमार' बड़ी चुनौती: हरियाणा कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद के साथ ही इस बार दावेदारों की संख्या करीब 2600 है, जोकि पार्टी के लिए खुशी और गम दोनों हिसाब से बराबर दिखाई देती है. दावेदारों की संख्या जहां पार्टी की तरफ लोगों का रुझान बता रही है. वहीं इनमें से 90 उम्मीदवार तय करना भी पार्टी के लिए चुनौती से कम नहीं है. पार्टी एक या दो दिनों में उम्मीदवार घोषित करेगी. ऐसा उम्मीद कम है. क्योंकि ऐसा होने पर टिकट ना मिलने पर नाराज नेता चुनौती बन सकते हैं.

नेताओं के बीच संतुलन बैठना चुनौती: ये बात किसी से छुपी नहीं है कि हरियाणा कांग्रेस में खेमे की सियासत खत्म नहीं हो पाई है. एक तरफ हुड्डा गुट और दूसरी तरफ कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता. इन खेमों के बीच संतुलन बैठकर उम्मीदवार तय करना भी पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वहीं लोकसभा सांसद बनने के बाद भी कुमारी सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता रही हैं. ये बात बताती है कि वे खुद को सीएम की दौड़ में रखना चाह रही हैं. ऐसे में पार्टी के लिए खेमों का संतुलन बनाना जरूरी हो गया है.

जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा की जंग: कांग्रेस को ये बात पता है कि उसकी कमजोर कड़ी जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा है. जहां से बीजेपी दो बार लगातार हरियाणा की सत्ता में काबिज होने में कामयाब हुई है. कांग्रेस को इन क्षेत्रों में उन मजबूत चेहरों को तलाश है. जो इन इलाकों में कांग्रेस को मजबूत स्थिति में ला सके. इसको लेकर भी पार्टी को बड़े स्तर पर मंथन करना पड़ रहा है.

बीजेपी की कांग्रेस और कांग्रेस की बीजेपी की लिस्ट पर नजर: बीजेपी और कांग्रेस दोनों के अभी तक उम्मीदवारों के नामों पर मंथन को देखकर लग रहा है कि दोनों ही दल चाह रहे हैं कि पहले उनके विरोधी अपने उम्मीदवारों को सूची जारी करें, ताकि अगर किसी सीट पर समीकरणों के मुताबिक बदलाव करना पड़े, तो वो आसानी से कर सके. ऐसे में लग रहा है कि बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों चार नवंबर से पहले कोई सूची जारी नहीं करने वाले हैं. हालांकि बीजेपी को लेकर ये चर्चा जरूर है कि एक दो-दिनों में वो अपनी सूची जारी कर सकती है.

क्या कह रहे हैं राजनीतिक मामलों के जानकार? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि अभी तक दोनों दलों द्वारा कोई सूची जारी ना करना इनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. शायद दोनों दल चाह रहे हैं कि पहले उनके विरोधी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करें, ताकि वो फिर उसके मुताबिक अपने उम्मीदवार तय कर सकें. उन्होंने कहा कि दोनों दलों को ये भी खतरा लग रहा है कि उम्मीदवार घोषित करते ही कहीं किसी नेता की नाराजगी की वजह से उन्हें नुकसान ना उठाना पड़े. इसलिए भी शायद दोनों को सूची जारी करने में वक्त लग रहा है. वहीं दिग्गज नेताओं की इच्छाओं को पूरा करना भी दोनों दलों के लिए चुनौती से कम नहीं है.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में आप पार्टी से गठबंधन करेगी कांग्रेस? सीटों के बंटवारे पर फंसा पेंच! - Haryana election 2024

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चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है. दोनों दलों की तरफ से अभी तक उम्मीदवारों को लेकर मंथन जारी है. दस साल बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही बीजेपी अभी तक उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं कर पाई है. वहीं सत्ता में एंट्री का सपना देख रही कांग्रेस भी उम्मीदवारों के नाम पर मंथन कर रही है. दोनों ही पार्टियां अभी तक उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है. दोनों दलों यानी बीजेपी और कांग्रेस के लिए उम्मीदवार घोषित करना चुनौती बना हुआ है.

बीजेपी के सामने क्या है चुनौतियां? दस साल सत्ता में रहने वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव के बाद हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. सीईसी की बैठक होने के बाद उम्मीदवारों के नामों को लेकर चर्चा जैसे ही शुरू हुई, वैसे ही पार्टी के नेताओं की अलग-अलग आवाजें सामने आने लगी. जिसके बाद पार्टी ने उम्मीदवारों की सूची को होल्ड पर डाल दिया. ऐसा आखिर क्यों हुआ? क्यों पार्टी उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं करवाई? क्यों अभी भी पार्टी मंथन कर रही है?

बीजेपी नेताओं के बीच नाराजगी की आशंका! उम्मीद की जा रही थी कि 29 अगस्त को सीईसी की बैठक के बाद बीजेपी उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकती है, लेकिन मीडिया में बीजेपी उम्मीदवारों के नाम की सूची पर जैसे ही चर्चा शुरू हुई, उसके बाद पार्टी नेताओं के बयान आने शुरू हुए. इसके बाद पार्टी ने लिस्ट होल्ड कर दी. चर्चा होने लगी की नेताओं के बीच जिन नामों पर चर्चा हुई. इन पर नाराजगी है. इसके बाद पार्टी ने फिर से उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने और सभी नेताओं को साधने की कवायद शुरू कर दी.

बीजेपी के लिए दक्षिण हरियाणा बना चुनौती! बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बार दक्षिण हरियाणा बना हुआ है. दक्षिण हरियाणा और जीटी रोड बेल्ट ऐसे इलाके हैं. जहां से बीजेपी ने दो बार 2014 और 2019 में जीत दर्ज की. अगर पार्टी को तीसरी बार सत्ता में आना है, तो पार्टी को इन दोनों इलाकों में फिर से शानदार प्रदर्शन करना होगा. वहीं सीईसी की बैठक के बाद दक्षिण हरियाणा के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत की नाराजगी सामने आई. माना जा रहा है कि वो कम से कम 8 से 9 अपने करीबी नेताओं को चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं, लेकिन पार्टी के अंदर इसको लेकर नाराजगी भी है. खासतौर दक्षिण हरियाणा राव इंद्रजीत के साथ ही राव नरबीर और सुधा यादव जैसे नेताओं के बीच तालमेल बैठाना चुनौती बना हुआ है.

अपनों के लिए टिकट की मांग बनी चुनौती! बीजेपी के सामने इस बार हरियाणा में जहां एंटी इनकंबेंसी चुनौती बना है. वहीं दिग्गज नेताओं का अपने बेटा बेटियों के लिए टिकट की मांग भी बड़ी परेशानी बनी हुई है. एक तरफ केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत अपनी बेटी के लिए टिकट मांग कर रहे हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर बेटे के लिए दांव लगा रहे हैं. किरण चौधरी बेटी के लिए, तो नवीन जिंदल मां और पत्नी, वहीं कुलदीप बिश्नोई बेटे, भाई और करीबी के लिए टिकट मांग रहे हैं. ऐसे में बीजेपी का टिकट मंथन चुनौती बना हुआ है.

सुरक्षित सीट की तलाश में नेता: हरियाणा में दस साल से बीजेपी सत्ता में बनी हुई है. ऐसे में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का डर बना हुआ है. माना जा रहा है कि पार्टी के कई नेता अपनी मौजूदा सीट से जीत को लेकर भी आश्वस्त नहीं है. जिसकी वजह से पार्टी के कई नेता अपनी सीटों में भी बदलाव चाह रहे हैं, लेकिन पार्टी के लिए ऐसे नेताओं को एडजस्ट करना भी आसान नहीं है. जिसको लेकर पार्टी लगातार मंथन कर रही है.

टिकट कटने वालों से नाराजगी का डर: माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट पर कैंची चला सकती है. माना जा रहा है कि जिन नेताओं को उनकी टिकट कटने का डर है. वो बगावती रुख अपना सकते हैं. इसकी वजह से भी पार्टी अपनी सूची को जारी नहीं कर रही है. ऐसे में कहीं उनकी नाराजगी पार्टी को भारी ना पड़े, उसका खतरा पार्टी नहीं उठाना चाह रही है.

कांग्रेस का टिकट मंथन जारी: दस साल से हरियाणा की सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस को इस बार उम्मीद है कि उसका इन चुनाव में शानदार प्रदर्शन रहने वाला है. इसकी वजह लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं. जिसमें पार्टी के दस में से पांच सांसद लोकसभा पहुंचे हैं. फिलहाल पार्टी भी उम्मीदवारों को लेकर मंथन कर रही है. वो भी अभी कोई नाम घोषित नहीं कर पाई है.

'एक अनार, सौ बीमार' बड़ी चुनौती: हरियाणा कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद के साथ ही इस बार दावेदारों की संख्या करीब 2600 है, जोकि पार्टी के लिए खुशी और गम दोनों हिसाब से बराबर दिखाई देती है. दावेदारों की संख्या जहां पार्टी की तरफ लोगों का रुझान बता रही है. वहीं इनमें से 90 उम्मीदवार तय करना भी पार्टी के लिए चुनौती से कम नहीं है. पार्टी एक या दो दिनों में उम्मीदवार घोषित करेगी. ऐसा उम्मीद कम है. क्योंकि ऐसा होने पर टिकट ना मिलने पर नाराज नेता चुनौती बन सकते हैं.

नेताओं के बीच संतुलन बैठना चुनौती: ये बात किसी से छुपी नहीं है कि हरियाणा कांग्रेस में खेमे की सियासत खत्म नहीं हो पाई है. एक तरफ हुड्डा गुट और दूसरी तरफ कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता. इन खेमों के बीच संतुलन बैठकर उम्मीदवार तय करना भी पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वहीं लोकसभा सांसद बनने के बाद भी कुमारी सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता रही हैं. ये बात बताती है कि वे खुद को सीएम की दौड़ में रखना चाह रही हैं. ऐसे में पार्टी के लिए खेमों का संतुलन बनाना जरूरी हो गया है.

जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा की जंग: कांग्रेस को ये बात पता है कि उसकी कमजोर कड़ी जीटी रोड बेल्ट और दक्षिण हरियाणा है. जहां से बीजेपी दो बार लगातार हरियाणा की सत्ता में काबिज होने में कामयाब हुई है. कांग्रेस को इन क्षेत्रों में उन मजबूत चेहरों को तलाश है. जो इन इलाकों में कांग्रेस को मजबूत स्थिति में ला सके. इसको लेकर भी पार्टी को बड़े स्तर पर मंथन करना पड़ रहा है.

बीजेपी की कांग्रेस और कांग्रेस की बीजेपी की लिस्ट पर नजर: बीजेपी और कांग्रेस दोनों के अभी तक उम्मीदवारों के नामों पर मंथन को देखकर लग रहा है कि दोनों ही दल चाह रहे हैं कि पहले उनके विरोधी अपने उम्मीदवारों को सूची जारी करें, ताकि अगर किसी सीट पर समीकरणों के मुताबिक बदलाव करना पड़े, तो वो आसानी से कर सके. ऐसे में लग रहा है कि बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों चार नवंबर से पहले कोई सूची जारी नहीं करने वाले हैं. हालांकि बीजेपी को लेकर ये चर्चा जरूर है कि एक दो-दिनों में वो अपनी सूची जारी कर सकती है.

क्या कह रहे हैं राजनीतिक मामलों के जानकार? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि अभी तक दोनों दलों द्वारा कोई सूची जारी ना करना इनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. शायद दोनों दल चाह रहे हैं कि पहले उनके विरोधी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करें, ताकि वो फिर उसके मुताबिक अपने उम्मीदवार तय कर सकें. उन्होंने कहा कि दोनों दलों को ये भी खतरा लग रहा है कि उम्मीदवार घोषित करते ही कहीं किसी नेता की नाराजगी की वजह से उन्हें नुकसान ना उठाना पड़े. इसलिए भी शायद दोनों को सूची जारी करने में वक्त लग रहा है. वहीं दिग्गज नेताओं की इच्छाओं को पूरा करना भी दोनों दलों के लिए चुनौती से कम नहीं है.

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