ग्वालियर। ग्वालियर-आगरा हाइवे पर गुजरती गाड़ियां ग्वालियर शहर से 7 किलोमीटर दूर बने तलवार वाले हनुमान जी के मंदिर पर रुक जाती हैं. यहां श्रद्धालु हनुमानजी के दर्शन को पहुंचते हैं. हनुमान जयंती के दिन तो मंदिर में भारी भीड़ रहती है क्योंकि हर श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन की एक झलक पाने के लिए सुबह से ही पहुंचना शुरू हो जाते हैं. यहां विराजमान भगवान हनुमान की प्रतिमा बड़ी अनोखी है. हनुमान जी के हाथ में उनके अस्त्र गदा की जगह तलवार है. हनुमान जी के इस अनोखे स्वरूप की व्याख्या रामायण में भी की गई है.
तलवार वाले हनुमानजी का मंदिर 500 वर्ष पुराना
तलवार वाले हनुमान जी का यह मंदिर करीब 500 वर्ष पुराना है. पहले यहां भगवान हनुमान एक गुमठी में बैठे हुए थे, लेकिन समय के साथ-साथ श्रद्धालुओं के समर्पण भाव से इसका विस्तार हुआ. यहां अब भव्य मंदिर है. वैसे तो हर शनिवार और मंगलवार के दिन यहां 8 से 10 हजार श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं लेकिन हनुमान जयंती के मौके पर यह संख्या बढ़कर 25 से 30 हजार तक हो जाती है.
अहिरावण के वध के लिए उठायी थी तलवार
तलवार वाले हनुमान जी के मंदिर में सेवा कर रहे मंदिर के महंत लखन दास महाराज इस अनोखे स्वरूप के बारे में बताते हैं "हनुमान जी का यह रूप उनके पाताल लोक के दौरान घटित हुई लीला का समरूप है. जब महर्षि विश्रवा का पुत्र अहिरावण आराधिका महामाया के लिए भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण का वध करने के लिए तैयार था. तब राम भक्त हनुमान ने अहिरावण और उनकी सेना का संहार कर भगवान राम और लक्ष्मण की रक्षा की थी. हनुमान जी ने पाताल लोक में तलवार से अहिरावण का वध किया था. मंदिर में हनुमान जी इसी सदृश्य रूप में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं. "
500 वर्ष पहले ज़मीन से प्रकट हुई थी प्रतिमा
मंदिर महंत लखन दास महाराज कहते "हनुमान जी कि यह 500 वर्ष पुरानी एवं स्वयंभू प्रतिमा है. यानी यह स्थापित नहीं बल्कि भूमि से प्रकट हुई प्रतिमा है. हनुमान जी की इस मूर्ति की एक और खास बात है कि उनके चेहरे पर सिर्फ एक पट दिखाई देता है अर्थात सिर्फ उनकी एक आंख दिखाई पड़ती है." इसी अनोखे स्वरूप के लिए भक्त उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़े चले आते हैं. हनुमान जयंती का दिन भी मंदिर ट्रस्ट और भक्त मिलकर धूमधाम से मनाते हैं. हनुमान जयंती के मौके पर हनुमान पाठ होता है छप्पन प्रकार की मिठाइयां प्रसाद में चढ़ाई जाती हैं. गाय के शुद्ध दूध से विशेष रूप से तैयार कराया गया केक बनवाया जाता है और शाम में जिस तरह बच्चों का जन्मदिन मनाया जाता है, ठीक उसी तरह हनुमान जी का भी केक कटवाया जाता है.
15 हजार श्रृद्धालुओं के लिए बनाया प्रसाद
मंदिर ट्रस्ट के सदस्य और पुजारी बताते हैं "हनुमान जयंती पर विशेष कर भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें इस वर्ष विशाल भंडारा आयोजित किया जा रहा है. जिसमें करीब 15 हजार श्रद्धालु प्रसादी पाएंगे. उन्होंने बताया कि जब अहिरावण प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी को साथ ले गया था और हनुमान जी ने उसका वध कर दिया था और भगवान राम और लक्ष्मण को लेकर लौटे थे, तब वह माता की चंडी में पहुंचे तो उनके पास दो शक्तियां थीं. एक स्वयं हनुमान जी की और दूसरी चंडी की शक्ति." उनका यही एकमात्र रूप है जो यहां विराजमान है और इसके प्रमाण सालासर में भी देखने को मिलते हैं. सालासर में अंदर हनुमान जी के अनेक पीतल के बने हुए चित्र हैं उनमें एक चित्र यह भी मौजूद है.
भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं तलवार वाले हनुमानजी
हनुमानजी की महिमा को लेकर कई क़िस्से श्रद्धालुओं के पास हैं लेकिन कहा जाता है कि हनुमान जी यहां सबकी इच्छा पूरी करते हैं. खासकर निःसंतान और ऐसे लोग जिनके विवाह नहीं होते यहां जाकर मन्नत मांगते हैं और अपने भक्तों पर हमेशा तलवार वाले हनुमानजी की कृपा रही है. उनकी इच्छाएं पूरी हुई हैं. यहां निःसंतानों को संतान और कुंवारों को विवाह सुख की प्राप्ति भगवान की कृपा से होती है. इसी प्रकार पुराने जमाने में राजा महाराजा भी जब युद्ध करने जाते थे तो हनुमान जी से जीत की मन्नत मांगते थे और युद्ध जीत कर लौट कर आते तो यहां तलवार चढ़ाते थे.
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पन्ना जिले के सिद्ध स्थल हनुमान भाटे में हनुमान जन्मोत्सव
बुंदेलखंड में प्रसिद्ध पन्ना जिले के सिद्ध स्थल हनुमान भाटे में हनुमान जन्मोत्सव पर्व उत्साह के साथ मनाया गया. मंगलवार सुबह 4 बजे से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला प्रारंभ हो गया. जो देर रात तक जारी रहा. परिसर में कन्या भोज, विशाल भंडारे सहित धार्मिक अनुष्ठान हुए. कन्या भोज के बाद 31000 कन्याओं को वस्त्र दान किए गए. उल्लेखनीय है कि हनुमान भाटे धाम में चंदेल कालीन पाषाण आदमकद प्रतिमा के रूप में स्वयं श्री हरि नरसिंह भगवान, महाकाल भगवान और सिद्ध स्वरूप श्री हनुमान जी महाराज अति भव्य निर्जन स्थान पर विराजमान हैं. इस हनुमान पहाड़ी में ग्यारह सौ सीढ़ी चढ़कर भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं.