प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि रूठी हुई पत्नी की घर वापसी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है. कोर्ट ने कहा कि पति वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए पारिवारिक न्यायालय में वाद दाखिल कर सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. वाईके श्रीवास्तव ने बरेली के सुनील कुमार की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
याचिका के अनुसार, सुनील कुमार का जयश्री के साथ जनवरी 2019 में विवाह हुआ था. लगभग तीन वर्ष बाद दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हुई तो 24 जुलाई 2023 को पत्नी ने पति का घर छोड़ दिया. पति ने चार दिन तक पत्नी की तलाश के बाद इज्जत नगर थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने पत्नी को खोजकर दोनों के बीच थाने में सुलह भी कराई. सुलह के बाद दोनों साथ रहने लगे. कुछ समय बाद दोबारा खटास पैदा हो गई तो पत्नी आगरा निवासी अपने मामा प्रीतम दास के घर चली गई. इसके बाद पति ने उसकी घर वापसी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की.
याची का कहना था कि पुलिस के अभिलेखों में सुलह के बाद पत्नी याची के साथ रह रही है. जबकि उसने 27 नवंबर 2023 को बिना वैध कारण के याची को छोड़ दिया है. वह आगरा में अपने मामा के कब्जे में है, जबकि पति उसका वैध संरक्षक है. सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से स्पष्ट है कि मामला एक दूसरे से नाराज पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंधों को पुनर्स्थापना का है. इसके लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है और न ही हाईकोर्ट इनके पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करने को बाध्य है. याची हिंदू विवाह अधिनियम के तहत वैवाहिक संबंधों की बहाली के लिए पारिवारिक न्यायालय में वाद दाखिल कर सकता है.
इसे भी पढ़ें-बच्ची के साथ अपहरण कर दुष्कर्म करने वाले को 10 साल की सजा