ग्वालियर: मध्य प्रदेश की जीवाजी यूनिवर्सिटी के कुलगुरु पर बड़ा एक्शन हुआ है. उनके साथ 17 प्रोफेसर के खिलाफ फर्जी कॉलेज मामले ईओडब्ल्यू की कार्रवाई के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया है. राज्यपाल मंगूबाई पटेल ने धारा 52 का उपयोग करते हुए जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर अविनाश तिवारी को उनके पद से बर्खास्त कर दिया है. अविनाश तिवारी पर आरोप है कि अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए फर्जी कॉलेज को मान्यता दी थी.
झुंडपुरा कॉलेज मामले में दर्ज हुई थी FIR
दरअसल, यह कार्रवाई झुंडपुरा गांव के शिव शक्ति कॉलेज के मामले में की गई है. कागजों के मुताबिक झुंडपुरा गांव में शिव शक्ति नाम से एक कॉलेज चल रहा था, जबकि जमीनी हकीकत इससे एकदम उलट थी. शिव शक्ति कॉलेज का जमीन पर कोई नामों निशान नहीं था, लेकिन इसके बाद भी पिछले कई वर्षों से जीवाजी विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता दी जा रही थी.
यह खुलासा ईओडब्ल्यू द्वारा की गई जांच में हुआ था. जांच में यह बात भी सामने आई थी कि संबद्धता और मान्यता के लिए बनाई कमेटी ने आर्थिक लाभ लेकर गलत रिपोर्ट के आधार पर फर्जी तरीके से लाभ पहुंचाया था. इसी कमेटी के 17 सदस्यों के खिलाफ जनवरी में ईओडब्ल्यू ने जांच के बाद FIR की थी. जिसमें जीवाजी विश्विद्यालय के कुलगुरु अविनाश भी शामिल थे.
छात्र संगठनों ने भी खोल दिया था मोर्चा
इस फर्जीवाड़े के खुलासे और एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही कुलगुरु के खिलाफ छात्र संगठनों ने मोर्चा खोल रखा था. उठापटक के बीच विश्विद्यालय में धारा 52 लगाते हुए कुलगुरु अविनाश तिवारी की बर्खास्तगी के आदेश राज्यभवन से जारी कर दिए गए. जीवाजी विश्विद्यालय के रजिस्ट्रार अरुण चौहान ने बताया, "राज्यभवन द्वारा विश्विद्यालय में धारा 52 लगाई गई है और कुलगुरु प्रो अविनाश तिवारी को बर्खास्त कर दिया गया है."
डॉ. राजकुमार आचार्य होंगे नए कुलगुरु
राज्य भवन की ओर से जारी आदेश के अनुसार अब जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु पद की जिम्मेदारी रीवा यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलगुरु डॉ. राजकुमार आचार्य को सौंपी गई है. ऐसे में माना जा रहा है कि जल्द ही फर्जी कॉलेजों की जांच की कार्रवाई तेज होगी.
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जेयू में कब-कब लागू हुई धारा-52?
जीवाजी विश्विद्यालय में धारा 52 पहली नहीं तीसरी बार लगाई गई है. सबसे पहले साल 1994 में तत्कालीन कुलगुरु रहे प्रो. पीएस बिसेन के कार्यकाल के दौरान उन्हें बर्खास्त किया गया था. इसके दो साल बाद दूसरी बार 1996 में भी तत्कालीन कुलगुरु डॉ. राधारमण दास को भी धारा 52 लागू कर हटाया गया था.